इस समय बिहार की राजधानी पटना में सेकुलर खेल चल रहा है। यहां के प्रसिद्ध अशोक राजपथ पर दो मंदिरों का बलिदान सिर्फ इसलिए दिया जा रहा है, क्योंकि अंजुमन इस्लामिया हॉल का मुख्य द्वार अपनी जगह पर बना रहे। इस्लामिया हॉल के लिए करोड़ों रुपए का अनुदान देने वाली सरकार निजी जमीन पर बने मंदिर को भी हटाने पर आमदा है।
दरअसल, यह सारा विवाद मेट्रो स्टेशन के निर्माण को लेकर है। अशोक राजपथ कभी पटना का मुख्य मार्ग हुआ करता था। समय के साथ पटना का विस्तार होता गया और नए—नए मार्ग बनते गए। परंतु पीएमसीएच, पटना विश्वविद्यालय व उसके कॉलेज तथा पटना मार्केट के कारण इसकी प्रमुखता बनी रही। जनसंख्या बढ़ने के कारण इस मार्ग पर दबाव भी बढ़ा। सघन आबादी और निजी जमीन के कारण अशोक राजपथ को चौड़ा करना संभव नहीं था। अतः राज्य सरकार ने इसके ऊपर मेट्रो चलाने का निर्णय लिया। मेट्रो के साथ फ्लाई ओवर भी रहेगा। इस प्रकार यह डबल डेकर फ्लाई ओवर है। मेट्रो स्टेशन बनाने की बात भी हुई। पहले प्रस्तावित मेट्रो स्टेशन अंजुमन इस्लामिया हॉल के मुख्य द्वार के पास था। अंजुमन इस्लामिया हॉल (1885) का इतिहास 138 वर्ष पुराना है। इसके बाद मुसलमानों ने दबाव डाला कि वहां से स्टेशन को हटाया जाए, क्योंकि इसके लिए मुख्य द्वार की संरचना बदलनी पड़ती। दबाव में आई सरकार ने आनन—फानन में मेट्रो का मार्ग बदल दिया। इस बदले मार्ग में 2 मंदिर आ रहे हैं। इसमें एक 300 वर्ष पुराना ब्रह्मस्थान मंदिर है और दूसरा 211 वर्ष पुराना श्री राधाकृष्ण मंदिर।
पटना कॉलेज के पास स्थित है ब्रह्मस्थान मंदिर। स्थानीय लोगों की इस मंदिर पर काफी आस्था है। मंदिर में कभी नेताओं की भीड़ लगी रहती थी। पटना विश्वविद्यालय से निकले नेता चाहे वे नीतीश कुमार हों या लालू प्रसाद, यहां आशीर्वाद लेने आते रहे हैं।
इसी प्रकार 211 वर्ष पुराना मंदिर राधा-कृष्ण मंदिर है। नागर शैली में बने इस मंदिर के स्वामी राधा-कृष्ण हैं। इस मंदिर की स्थापना 1812 ईस्वी में एक निजी जमीन पर हुई थी। 1925 ई. में पीएमसीएच की स्थापना हुई। अंग्रेजों ने भी पीएमसीएच के लिए इस मंदिर को नहीं तोड़ा। मंदिर से जुड़े राज किशोर का कहना है कि यह मंदिर बिहार राज्य धार्मिक न्यास बोर्ड के अंतर्गत निबंथित है। पुरानी प्रोजेक्ट रिपोर्ट में मंदिर के बगल में अंजुमन इस्लामिया हॉल के पास मेट्रो स्टेशन बनाने का प्रस्ताव था। लेकिन सरकार ने अचानक प्रोजेक्ट में बदलाव कर दिया और इसमें मंदिर स्थल पर ही स्टेशन बनाने की बात कही जा रही है। पटना मेट्रो और जिला प्रशासन द्वारा मंदिर हटाने का मौखिक आदेश दिया जा रहा है। जबकि मेट्रो ने इस मंदिर को वर्तमान स्थान से 100 मीटर की दूरी पर अशोक राजपथ पर ही सम्मानपूर्वक स्थानांतरित करने का समझौता मंदिर प्रबंधन से किया है। लेकिन अब अपने समझौते के अनुरूप मेट्रो या जिला प्रबंधन मंदिर को हटाने की बात नहीं कर रहा है। इस बारे में मंदिर प्रबंधन द्वारा लगातार पत्र लिखा गया है। परंतु उसका कोई नतीजा नहीं निकला। अंततः उन लोगों को सड़कों पर उतर कर संघर्ष और आमरण—अनशन करना पड़ रहा है।
मंदिर बचाने को लेकर हो रहे संघर्ष से जुड़े समाजसेवी संजय सिंह कहते हैं, “हम विकास के विरोधी नहीं हैं, लेकिन सरकार से निवेदन है कि हमारी आस्था का भी ख्याल रखा जाए। निर्माण कार्य से जुड़े इंजीनियर का कहना है कि बिना मंदिर तोड़े भी नक्शा में थोड़ा बदलाव करते हुए कार्य हो सकता है, जिससे मंदिर भी बच जाएगा और डबल डेकर पुल भी आसानी से बन जाएगा। हम माता रानी से प्रार्थना करते हैं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को सद्बुद्धि दें, ताकि वे मंदिर तोड़ने के निर्णय को बदल लें।”
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