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2 साल के बच्चे को उम्रकैद में डाला, सनकी उत्तर कोरिया में बाइबिल रखने की सजा

वहां स्कूलों में बच्चों को बताया जाता है कि 'ईसाई मिशनरी बहुत खराब काम करते हैं, वे बलात्कार करते हैं, खून पीते हैं, इंसान के अंगों की तस्करी करते हैं, हत्या तथा जासूसी जैसे अपराध करते हैं'

by WEB DESK
May 29, 2023, 12:00 pm IST
in विश्व
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उत्तर कोरिया में सनकी तानाशाह के राज में मासूम नागरिकों पर जो बीत रही है उसका अंदाजा तक लगाना मुश्किल है। मानवाधिकार किसको कहते हैं, यह शायद वहां के नागरिकों को पता तक नहीं चलने दिया जाता। शेष दुनिया से उन्हें काटकर ही इसलिए रखा जाता है जिससे वे सनकी किम की सरकार के फरमानों और सनक के सामने मुंह न खोल सकें। और ​जो भी मुंह खोलने की हिम्मत करता है उसे मौत के घाट उतारने में वहां पल भर देर नहीं की जाती। एक रिपोर्ट ने वहां बरपाई जा रही हैवानियत को एक बार फिर सबके सामने रखा है।

तानाशाह किम बाएं के राज में बाइबिल रखने की सजा उम्रकैद

इस अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट में उल्लेख है कि उस देश में ‘ईसाइयों का दमन किया जा रहा है’। बताया गया है कि दो साल के एक बच्चे को तहज इस अपराध में परिवार सहित उम्रकैद में डाल दिया गया क्योंकि उसके मां-पिता ने अपने घर में बाइबिल रखी हुई थी! यह रिपोर्ट अमेरिका के विदेश विभाग ने तैयार की है और इसका शीर्षक है ‘इंटरनेशनल रिलीजियस फ्रीडम रिपोर्ट’। यानी अगर रिपोर्ट सही है तो दुनिया का कौन सा कानून इतना निर्दयी होगा कि दो साल के बच्चे को उम्रकैद की सजा दी जाए और अपराध भी ऐसा?

प्योंगयोंग स्थित चिलगोल प्रोटेस्टेंट चर्च में जमा ईसाई (फाइल चित्र)

कम्युनिस्ट चीन से सटे और उससे ही संपर्क में रहने वाले उत्तर कोरिया के अंदर बताया जाता है करीब 4 लाख ईसाई बसे हैं। इनमें से 70000 ऐसे हैं जो जेल की सजा काट रहे हैं। हालत यहां तक खराब है कि ये ईसाई अपने बच्चों तक को नहीं बताते कि उनका मजहब क्या है। ‘ओपन डोर यूएसए’ नाम की एक गैरसरकारी संस्था का कहना है कि वह देश ईसाइयों के लिए किसी मायने में सुरक्षित नहीं है।

बताया गया है कि उत्तर कोरिया में ईसाइयों को काफी प्रताड़ित किया जा रहा है। वहां उन्हें एक खास तरह से यातना दी जाती है जिसे वे कहते हैं ‘पिजन टॉर्चर’। इसमें आदमी के दोनों हाथों को पीछे पीठ की तरफ मोड़कर बांध देते हैं। और इस हालत में उसे कई दिन तक खड़ा रखते हैं। इस सजा को भोग चुके एक व्यक्ति का रिपोर्ट उल्लेख करती है। उस आदमी ने कहा कि ये सजा इतनी दुखदाई थी कि उसे लगा था, इससे अच्छा मौत आ जाए। रिपोर्ट के अनुसार, साल 2020 में भी एक महिला को जेल में डाला तो गया लेकिन उसे वहां सोने की मनाही थी। आखिरकार परेशान होकर उसने खुद को ही मार लिया।

कम्युनिस्ट चीन से सटे और उससे ही संपर्क में रहने वाले उत्तर कोरिया के अंदर बताया जाता है करीब 4 लाख ईसाई बसे हैं। इनमें से 70000 ऐसे हैं जो जेल की सजा काट रहे हैं। हालत यहां तक खराब है कि ये ईसाई अपने बच्चों तक को नहीं बताते कि उनका मजहब क्या है। ‘ओपन डोर यूएसए’ नाम की एक गैरसरकारी संस्था का कहना है कि वह देश ईसाइयों के लिए किसी मायने में सुरक्षित नहीं है। इसी तरह ‘कोरिया फ्यूचर’ नाम के संगठन का कहना है कि वहां स्कूलों में बच्चों को बताया जाता है कि ‘ईसाई मिशनरी बहुत खराब काम करते हैं, वे बलात्कार करते हैं, खून पीते हैं, इंसान के अंगों की तस्करी करते हैं, हत्या तथा जासूसी जैसे अपराध करते हैं’ आदि।

उत्तर कोरिया के पाठ्यक्रमों में ऐसी किताबें हैं जिनमें पढ़ाया जाता है कि ‘ईसाई पादरी बच्चों को चर्च के एक कोने में ले जाकर उनका खून निकालते हैं’। आखिर उत्तर कोरिया में किम की सत्ता को ईसाइयों से इतनी चिढ़ क्यों है? इसकी वजह ये है कि किम को लगता है कि ये ईसाई उनकी सरकार के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं। अगर कोई गलती से चर्च के पास से गुजर भी जाए तो उसे घेरकर कैद कर दिया जाता है। चर्च से किसी भी तरह का वास्ता रखने वाले को कहीं का नहीं छोड़ा जाता। ऐसे स्थिति में अनेक ईसाई संगठनों ने कहा कि उत्तर कोरिया में ईसाई खतरे में हैं जिन्हें धीरे धीरे खत्म किया जा रहा है। दरअसल उत्तर कोरिया किसी मजहब को नहीं मानता, वह अपने का अधिकांशत: ‘अनिश्वरवादी’ ही कहता है।

Topics: northdictatorjailबाइबिलचर्चkoreachurchChristiansउत्तर कोरियाkimchildतानाशाहcampspyongyongtortureSyllabusoppressionchristvetican
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