चीन की अमेरिका विरोधी एक साजिश का खुलासा होने के बाद अमेरिकी सैन्य प्रतिष्ठान सतर्क हो गया है। पता चला है कि चीन के हैकर प्रशांत इलाके में अमेरिकी संचार को बाधा पहुंचाने की कोशिश में जुटे हैं। चीनी हैकरों की इस शरारत की न सिर्फ अमेरिका ने पुष्टि की है, बल्कि ब्रिटेन सहित कुछ दूसरे सहयोगी देशों ने भी इस हरकत को प्रमाणों पर परखा है। कयास लगाया जा रहा है कि हैकरों की इस हरकत के पीछे ताइवान के संबंध में चीन की कोई नई शरारत हो सकती है।
जानकारी के अनुसार, चीन चाहता है कि प्रशांत इलाके में कम्युनिकेशन में अड़चन डाली जाए, इसके लिए उसने हैकरों को काम पर जुटाया है। इस हरकत के जरिए पश्चिमी प्रशांत सागर में मौजूद अमेरिका तथा गुआम सैन्य चौकी के संचार और आईटी तंत्र को निशाना पर लेने की कोशिश का पता चला है। इस हैकिंग को सबसे पहले माइक्रोसॉफ्ट ने पकड़ा है, जिसकी पुष्टि अमेरिका, ब्रिटेन तथा कुछ अन्य सहयोगी देशों ने की है। माइक्रोसॉफ्ट का कहना है कि चीनी हैकिंग समूह ‘वोल्ट टाइफून’ से जुड़े हैकर इस साजिश में जुटे हैं।
चीन प्रायोजित हैकर सरकार, संचार, विनिर्माण, और आईटी संस्थानों को निशाना बनाने की कोशिश कर रहे हैं। इनमें सबसे खास है अमेरिका तथा गुआम में मौजूद सैन्य चौकी। इस पर हैकर हमला बोल भी चुके थे। इन के अलावा भी कई संस्थानों पर हैकरों की नजर हो सकती है, लेकिन वे कौन से हैं इसका पता लगाया जा रहा है। अमेरिका के नौसेना सचिव कार्लोस डेल का कहना है कि देश की नौसेना पर भी हैकरों की दखल का असर पड़ा है। विशेषज्ञों का मानना है कि चीनी हैकर संवेदनशील अमेरिकी तानेबाने तक पहुंच बनाने से पीछे नहीं हटेंगे।
आईटी कंपनी माइक्रोसॉफ्ट ने कहा है कि चीन की ओर से ऐसी कोशिशें पहले भी हुई हैं। दरअसल, अमेरिकी सैन्य चौकी की हैकिंग का सामने आना इस मायने में भी खास माना जा रहा है कि कहीं चीन ताइवान के विरुद्ध कोई सैन्य कार्रवाई की योजना बना रहा हो सकता है। ऐसी आशंका इसलिए क्योंकि यह कोई छुपी बात नहीं है कि ताइवान पर किसी भी तरह की आक्रामक गतिविधि से पहले चीन ऐसी चाल चल सकता है।
आईटी कंपनी माइक्रोसॉफ्ट ने कहा है कि चीन की ओर से ऐसी कोशिशें पहले भी हुई हैं। दरअसल, अमेरिकी सैन्य चौकी की हैकिंग का सामने आना इस मायने में भी खास माना जा रहा है कि कहीं चीन ताइवान के विरुद्ध कोई सैन्य कार्रवाई की योजना बना रहा हो सकता है। ऐसी आशंका इसलिए क्योंकि यह कोई छुपी बात नहीं है कि ताइवान पर किसी भी तरह की आक्रामक गतिविधि से पहले चीन ऐसी चाल चल सकता है। क्योंकि ऐसा पहली बार नहीं देखने में आया है कि चीन की तरफ से ऐसी हैकिंग की कोशिश की गई हो। पहले भी चीन पर जासूसी का आरोप अमेरिका लगा ही चुका है।
उल्लेखनीय है कि चीन के हैंकर पहले कई मौकों पर इस तरह की हैकिंग करते देखे गए हैं। 2015 में पर्सनल मैनेजमेंट कार्यालय के डाटा में दखल दी गई थी। फिर 2017 में इक्वीफैक्स से जुड़ी हैकिंग देखने में आई थी।
इस मामले रप गूगल की सहायक कंपनी ‘मैंडिएंट इंटेलिजेंस’ का भी कहना है कि क्योंकि यह वर्तमान हैंकिंग चीन द्वारा ताइवान पर किसी तरह की सैन्य कार्रवाई से पूर्व की शरारत हो सकती है इसलिए अमेरिका, ब्रिटेन आदि देशों ने इस हैंकिंग की सार्वजनिक तौर पर पुष्टि की है।
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