नए संसद भवन के उद्घाटन की घड़ी अब आ गई है। शीघ्र ही नया संसद भवन एक नए वैभव के साथ विश्व के सम्मुख आने वाला है। अब इसे लेकर राजनीति तेज हो गई है। राजनीति इसलिए तेज हो गई है क्योंकि भारत के विपक्षी दलों को यह सहन नहीं हो पा रहा है कि इसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों होने जा रहा है और कांग्रेस समेत कई दलों का कहना यह है कि यह राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का अपमान है, यह एक वनवासी महिला का अपमान हैआदि !
इस संबंध में कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड्गे का कहना है कि मोदी सरकार ने केवल चुनावी कारणों से ही द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाया है, जबकि उन्हें आमंत्रित नहीं किया गया है। मल्लिकार्जुन खड़गे का कहना है कि वह भारत की प्रथम नागरिक हैं, इसलिए इस भवन का उद्घाटन उनके द्वारा ही होना चाहिए,
It looks like the Modi Govt has ensured election of President of India from the Dalit and the Tribal communities only for electoral reasons.
While Former President, Shri Kovind was not invited for the New Parliament foundation laying ceremony…
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— Mallikarjun Kharge (@kharge) May 22, 2023
और इसी बात को लेकर कांग्रेस सहित 19 विपक्षी दलों ने इस भवन के उद्घाटन के बहिष्कार का ऐलान कर दिया। इनका कहना है कि द्रौपदी मुर्मू जी को ही इस भवन के उद्घाटन का अधिकार है।
19 opposition parties have collectively resolved to boycott the inauguration of the new Parliament building.
Parliament is sacrosanct, and as the Head of State, Hon’ble President of India Smt. Droupadi Murmu ji is the only authority that can preside over the solemn occasion of… pic.twitter.com/cw6TDKqrqu
— K C Venugopal (@kcvenugopalmp) May 24, 2023
इस बहिष्कार को लेकर अब राजनीति जिस प्रकार तेज हुई है, वह कांग्रेस के दोहरे रवैये को प्रदर्शित करती है और इसका सबसे बड़ा विरोध किया बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती ने, उन्होंने महामहिम द्रौपदी मुर्मू के नाम पर हो रही राजनीति पर प्रश्न करते हुए कहा कि
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू जी द्वारा नए संसद का उद्घाटन नहीं कराए जाने को लेकर बहिष्कार अनुचित। सरकार ने इसको बनाया है इसलिए उसके उद्घाटन का उसे हक है। इसको वनवासी महिला सम्मान से जोड़ना भी अनुचित। यह उन्हें निर्विरोध न चुनकर उनके विरुद्ध उम्मीदवार खड़ा करते वक्त सोचना चाहिए था।
यही वह बिंदु है जो तमाम विरोध की कलई खोलकर रखता है। यह बिंदु स्पष्ट करता है कि दरअसल यह विरोध पूरी तरह से खिसियाहट भरा हुआ है, क्योंकि यदि कांग्रेस सहित अन्य दलों को, जो महामहिम राष्ट्रपति के नाम पर इस भवन के उद्घाटन का विरोध कर रहे हैं, वनवासी, दलित या महिला राष्ट्रपति जैसे शब्दों के प्रति आदर होता तो वह उन्हें निर्विरोध चुनते। वह उनके विरुद्ध उन यशवंत सिन्हा को खड़ा नहीं करते जिनकी राजनीति मात्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विरोध पर ही आकर टिक गई है।
आज जिन द्रौपदी मुर्मू को वह वनवासी बता रही हैं, उन्हीं द्रौपदी मुर्मू के विषय में कांग्रेस के नेता अजॉय कुमार ने कहा था कि श्री यशवंत सिन्हा एक अच्छे प्रत्याशी हैं। द्रौपदी मुर्मू एक शालीन व्यक्ति हैं, परन्तु वह भारत की “ईविल फिलोसोफी” का प्रतिनिधित्व करती हैं। हमें उन्हें “वनवासियों” का प्रतीक नहीं बनाना चाहिए!”
"Yashwant Sinha is a good candidate. Droupadi Murmu is a decent person but she represents evil philosophy of India. We shouldn't make her symbol of tribals…Ram Nath Kovind is President but what about atrocities on SCs?": Congress leader Ajoy Kumar | reported by news agency ANI pic.twitter.com/azbJH9APXm
— NDTV (@ndtv) July 13, 2022
नए संसद भवन के प्रधानमंत्री द्वारा उद्घाटन के विरोध में राष्ट्रीय जनता दल भी सम्मिलित है। परन्तु यह वही राष्ट्रीय जनता दल है, जिसने यशवंत सिन्हा का समर्थन करते हुए महामहिम द्रौपदी मुर्मू को एक मूर्ति बताया था।
एएनआई से बात करते हुए राष्ट्रीय जनता दल के तेजस्वी यादव ने कहा था कि
“राष्ट्रपति भवन में हमें मूर्ति नहीं चाहिए। आपने यशवंत सिन्हा को तो बोलते हुए सुना होगा, मगर केंद्र के राष्ट्रपति प्रत्याशी को नहीं! अभी तक उन्होंने एक बार भी प्रेस से बात नहीं की है!”
#WATCH | You don't need a 'Murti' (statue) in Rashtrapati Bhawan…You must have heard Yashwant Sinha Ji speaking, but not Centre's Presidential candidate… not a single presser by her since her candidature was announced: Tejashwi Yadav, RJD (16.07) pic.twitter.com/VKn38nNi9r
— ANI (@ANI) July 17, 2022
आम आदमी पार्टी जो कि महामहिम द्रौपदी मुर्मू के अपमान की बात कह रही है, उसने भी यशवंत सिन्हा को ही राष्ट्रपति चुनावों के समय द्रौपदी मुर्मू पर प्राथमिकता दी थी। यही बात लोग पूछ रहे हैं।
जब कुछ माह पहले हुए राष्ट्रपति चुनावों से यह तमाम तथ्य सामने आ रहे हैं तो अब प्रश्न यह उठता है कि क्या कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी दलों का माननीय राष्ट्रपति महोदया को समर्थन भी इस आधार पर दिया जाएगा कि कैसे सरकार पर निशाना साधा जा सकता है? जो बातें अभी कांग्रेस उठा रही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी वनवासी, दलित एवं महिला विरोधी हैं क्योंकि वह महामहिम द्रौपदी मुर्मू के हाथों इस भवन का उद्घाटन नहीं करा रहे हैं, तो यह प्रश्न तो पूछा ही जाना चाहिए कि यदि उनके दिल में आदरणीय राष्ट्रपति महोदया के प्रति इतना आदर है तो उन्होंने उनके विरुद्ध चुनावों में मोदी विरोधी यशवंत सिन्हा को अपना साझा उम्मीदवार क्यों बनाया था? आखिर क्या कारण था कि वह वनवासी, दलित एवं महिला प्रत्याशी द्रौपदी मुर्मू को अपना समर्थन नहीं सके सके?
क्यों वह उस समय उन्हें ईविल फिलोसोफी का प्रतिनिधित्व करने वाली कह रहे थे या फिर उन्हें डमी राष्ट्रपति कह रहे थे? आखिर क्या कारण था? क्या अब देश के सर्वोच्च पद के लिए भी राजनीतिक एजेंडे के अनुसार ही विमर्श चलेगा? या जब देश के विपक्ष का मन होगा वह महामहिम के पद के लिए समर्थन देने के नाम पर अपमान करेगा, स्वयं उनके विरुद्ध प्रत्याशी खड़ा करके उन्हें हराने का प्रयास करेगा या फिर इस कृत्य से यह प्रमाणित करेगा कि दरअसल वह इस प्रत्याशी को राष्ट्रपति पद के योग्य नहीं मानता है और फिर उनका विरोध अपशब्दों की हर सीमा पार करके करेगा और जब मन आएगा तो प्रधानमंत्री को नीचा दिखाने के लिए उन्हीं महामहिम के उस सम्मान का सहारा लेगा, जो दरअसल उसने कभी किया ही नहीं था?
प्रश्न यही उठता है कि क्या संवैधानिक पदों के प्रति आदर भी मनमाने आधार पर विपक्ष द्वारा किया जाएगा? जब मन होगा उन्हें अपशब्दों से नवाजा जाएगा और जब मन होगा तो आदर का नाटक? परन्तु भारत का यह दुर्भाग्य है कि यहाँ के लोकतंत्र में सरकार का विरोध ही कथित विपक्ष का एकमात्र एवं विशेषाधिकार है, फिर चाहे वह नए संसद भवन का उद्घाटन हो या फिर राष्ट्रपति चुनाव, इस समय के विपक्ष का एजेंडा मात्र संवैधानिक पदों का मनचाहा विरोध एवं समर्थन है!
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