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नशे के मद में डगमगाई कांग्रेस

कांग्रेस नेताओं ने बाकायदा गंगाजल हाथ में लेकर शराबबंदी आदि का वादा करके सत्ता हासिल की थी। लेकिन फिर उन्होंने ही शराब की नदियां बहा दीं। शराब घोटाले के प्रकाश में आने के बाद ‘भूपेश बघेल सरकार’ कठघरे में है। ईडी ने न्यायालय में ऐसे तमाम साक्ष्य प्रस्तुत किए हैं, जिसमें मुख्यमंत्री कार्यालय का बार-बार जिक्र आया है

पंकज झा by पंकज झा
May 26, 2023, 08:15 am IST
in भारत, विश्लेषण, छत्तीसगढ़
शराब घोटाला सामने आने के बाद भूपेश बघेल सरकार राज्य की जनता के निशाने पर

शराब घोटाला सामने आने के बाद भूपेश बघेल सरकार राज्य की जनता के निशाने पर

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कांग्रेस की सरकार आने के छह-आठ महीने बाद ही घपले-घोटालों की बात ढके-छिपे बाहर तो आने लगी थी। लेकिन नए निजाम में शराब का कारोबार देखते ही देखते फलने-फूलने लगा। शराब के अवैध धंधे शासकीय दुकानों में खुलेआम शुरू हो गए।

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार आने के छह-आठ महीने बाद ही घपले-घोटालों की बात ढके-छिपे बाहर तो आने लगी थी। लेकिन नए निजाम में शराब का कारोबार देखते ही देखते फलने-फूलने लगा। शराब के अवैध धंधे शासकीय दुकानों में खुलेआम शुरू हो गए। तब थोड़ा बहुत मीडिया की नजर इस पर गई थी। एक दैनिक ने पहले पेज पर इससे संबंधित रिपोर्ट छापी भी लेकिन फिर बाद में सब कुछ ‘मैनेज’ कर लिया गया। जिस सरकार ने बाकायदा गंगाजल हाथ में लेकर शराबबंदी आदि का वादा करके सत्ता हासिल की थी, उसने फिर शराब की नदियां बहा दीं। कोरोना के समय जहरीली शराब पीने से हुई मौतों को बहाना बना कर, शराब की सरकारी तौर पर ‘होम डिलीवरी’ सेवा तक शुरू कर दी थी।

ऐसा इसलिए हो रहा था, क्योंकि कांग्रेस सरकार ने शराब के कारोबार की एक समानांतर व्यवस्था तैयार कर ली थी। ऐसी व्यवस्था में सरकारी दुकानों में ही दो तरह के काउंटर शुरू हो गए थे। उन काउंटर में से एक में ऐसी शराब बिकती थी, जिसका राजस्व (हालांकि अवैध कमीशन आदि इसमें भी सत्ता से जुड़े लोगों का होता ही था) सरकार को मिलता था, लेकिन दूसरे वाले काउंटर पर डिस्टलरी से शराब सीधे दुकानों में पहुंचती थी और इससे प्राप्त सारी सारी अवैध कमाई, जैसा कि ईडी ने अपनी प्रेस रिलीज आदि में बताया है, रायपुर के कांग्रेसी महापौर एजाज ढेबर के भाई अनवर ढेबर के पास जाती थी।

यह घोटाला वास्तव में इतना योजनाबद्ध था कि शायद ही कभी केन्द्रीय एजेंसियों तक साक्ष्य के साथ इसकी जानकारी पहुंच पाती। हालांकि प्रदेश की जनता सीधे तौर पर इस गोरखधंधे को समझ रही थी और विपक्ष के रूप में गाहे-ब-गाहे भाजपा भी इस मुद्दे को उठाती रहती थी। लेकिन ऐसी तमाम आवाज साक्ष्य के अभाव में कुंद नजर आती थी। साक्ष्य हासिल करने का ऐसा मौका भी अनायास ही केन्द्रीय एजेंसियों को हासिल हो गया।

खबर है कि इसके आगे वह अपने सबसे बड़े ‘पॉलिटिकल मास्टर’ के पास हिस्सा काट कर पहुंचा देता था। घोटालों की यह रकम कितनी बड़ी थी, इसका पूरा आकलन खुद जांच एजेंसी अभी तक नहीं कर पायी है। उसने इस तमाम घोटाले का एक हिस्सा पकड़ पाने में फिलहाल सफलता हासिल की है, जो बकौल ईडी 2 हजार करोड़ रुपया होता है। इसके अलावा कोयला ट्रांसपोर्ट घोटाला, सीमेंट, आयरन पैलेट्स आदि में अवैध वसूली का भी फिलहाल 5 सौ करोड़ के आसपास की रकम का ब्योरा ईडी के हाथ लगा है, जिस मामले में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की सबसे करीबी अफसर उनकी उपसचिव सौम्या चौरसिया, आईएएस अधिकारी समीर विश्नोई समेत अनेक लोग फिलहाल जेल में हैं। किसी भी मामले में किसी भी अभियुक्त को जमानत नहीं मिलने के कारण यह तो कहा ही जा सकता है कि प्रथम दृष्टया सभी के खिलाफ पुख्ता साक्ष्य हैं।

इस घोटाले में ‘मुखिया’ के निर्देश पर अनवर ढेबर द्वारा एक संगठित आपराधिक सिंडिकेट का निर्माण किया गया था, जिसके अंतर्गत भ्रष्टाचार का पूरा सिंडिकेट विभिन्न भागों में चलता रहा। इसी आड़ में वैध बिक्री में कमीशन, दूसरा पूरी तरह अवैध बिक्री वाले पैसे का प्रबंधन और तीसरा एफएल-10 लाइसेंस के नाम पर विदेशी कम्पनियां, जो सीधे तौर पर रिश्वत नहीं दे सकती थीं, उनके लिये एक अलग रास्ता निकलना शामिल है। ये तमाम काम इतने शातिराना ढंग से होते थे कि इस पर एक अच्छी बेव सीरीज बनाई जा सकती है।

आरोपियों को बचाने के लिए एसआईटी का गठन किया गया, जिसमें आरोपियों को मौका दिया गया कि अपने खिलाफ साक्ष्य को कमजोर कर सकें। एसआईटी प्रमुख पर दबाव डाल कर किस तरह आरोपियों को बचाने की कोशिश प्रदेश की सर्वोच्च सत्ता द्वारा की गयी, इसके साक्ष्य विस्तार से दर्ज हुए हैं

ईडी के बयान में साफ कहा गया है कि अनवर इस घोटाले का सरगना अवश्य है, लेकिन वह रकम का अंतिम लाभार्थी नहीं है। अपना कमीशन काट कर ये लोग शेष रकम को ‘पॉलिटिकल मास्टर’ को भेज देते थे। सीधी सी बात है कि छत्तीसगढ़ में ‘पॉलिटिकल मास्टर’ ही इस सिंडिकेट का सरगना है। इंतजाम ऐसे पुख्ता थे कि ऐसे व्यवसाय का ‘तरीका’ समझने के लिए बाकायदा झारखंड सरकार ने 3 करोड़ फीस चुका कर छत्तीसगढ़ से इन लोगों को अपने यहां बुलाया था।

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल लगातार भ्रष्टाचारियों को संरक्षण दे रहे हैं, उन्होंने दोषी अधिकारियों तक पर कोई कार्रवाई नहीं की है। जिस तरह वे तमाम घोटालों में लिप्त कांग्रेसियों को बचाते रहे हैं, उससे साबित होता है कि यह ‘पोलिटिकल मास्टर’ वास्तव में ‘मुखिया’ ही हो सकते हैं। ईडी ने आरोपियों के व्हाट्सएप चैट आदि साक्ष्य अदालत में पेश किए हैं, उसमें साफ तौर पर मुख्यमंत्री कार्यालय का जिक्र अनेक बार आया है।

यह घोटाला वास्तव में इतना योजनाबद्ध था कि शायद ही कभी केन्द्रीय एजेंसियों तक साक्ष्य के साथ इसकी जानकारी पहुंच पाती। हालांकि प्रदेश की जनता सीधे तौर पर इस गोरखधंधे को समझ रही थी और विपक्ष के रूप में गाहे-ब-गाहे भाजपा भी इस मुद्दे को उठाती रहती थी। लेकिन ऐसी तमाम आवाज साक्ष्य के अभाव में कुंद नजर आती थी। साक्ष्य हासिल करने का ऐसा मौका भी अनायास ही केन्द्रीय एजेंसियों को हासिल हो गया।

फरवरी/ मार्च, 2020 में सरकार से जुड़े कुछ लोगों के यहां आयकर छापे पड़े जिसमें सौम्या चौरसिया, विवेक ढांड, अनिल टुटेजा समेत सरकारी अधिकारी, व्यवसायी और कांग्रेस के कुछ करीबी लोग शामिल थे। कहने को तो वह आयकर छापा था, लेकिन अनायास पड़े इस छापे में विभाग को ऐसे-ऐसे साक्ष्य मिले जिससे वास्तव में एजेंसी भी सकते में आ गयी। उसमें अनेक साक्ष्यों के अलावा सबसे संवेदनशील व्हाट्सएप चैट मिले हैं, जिसमें बाकायदा चावल घोटाले के एक पुराने मामले में आरोपी अधिकारियों जो इन दिनों मुख्यमंत्री बघेल के काफी करीबी हैं, को बचाने के लिए न्यायिक अफसरों, आरोपी, मुख्यमंत्री कार्यालय और सरकारी वकील आदि के बीच लगातर सौदों को अंजाम दिया जा रहा था।

सर्वोच्च न्यायालय में प्रस्तुत किए साक्ष्य

आरोपियों को जमानत मिलने के बाद न्यायिक लोगों को उपकृत करने समेत ऐसे तमाम साक्ष्य ईडी द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में प्रस्तुत किये गए जिसका एक अंश ही पब्लिक डोमेन में है। ये इतने संवेदनशील हैं, जिससे ऐसा लगता है मानो सरकार नहीं कोई अंडरवर्ल्ड इसे संचालित कर रहा था। अलग-अलग दस्तावेजों के अनुसार, बाकायदा कोयला पर प्रति टन 25 रुपए, तो आयरन पैलेट्स पर 100 रुपए, ऐसी वसूली संस्थागत रूप से सरकार द्वारा की जाती थी। खनिज विभाग में चलती आॅनलाइन प्रणाली को किस तरह घोटालों के लिए दबाव देकर बदलवाया गया, इसका भी साक्ष्य विस्तार से उस बातचीत में मिले। उसी मामले में मुख्यमंत्री की उपसचिव सौम्या चौरसिया समेत अनेक अफसर अभी जेल में हैं और ईडी इस जद्दोजहद में है कि इसके असली सरगना, जो छत्तीसगढ़ के सबसे प्रभावशाली व्यक्ति हो सकते हैं, तक पहुंचा जा सके।

आरोपियों पर नरमी

आरोपियों को बचाने के लिए एसआईटी का गठन किया गया, जिसमें आरोपियों को मौका दिया गया कि अपने खिलाफ साक्ष्य को कमजोर कर सकें। एसआईटी प्रमुख पर दबाव डाल कर किस तरह आरोपियों को बचाने की कोशिश प्रदेश की सर्वोच्च सत्ता द्वारा की गयी, ये सभी साक्ष्य विस्तार से दर्ज हुए हैं। आरोप यह भी है कि घोटाले की रकम हवाला आदि के माध्यम से विदेश भेजी गई है। बड़ी संख्या में ऐसी कच्ची और देसी शराब प्रदेश भर की 800 दुकानों में खपाई गई है, जिसे वैध तरीके से भी बेचा नहीं जा सकता। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव ने मांग की है कि छत्तीसगढ़ में हुए घोटाले से संबंधित सभी मामलों की फास्ट ट्रैक में सुनवाई हो। बहरहाल, आगे यह मामला चाहे जो भी मोड़ ले, लेकिन चुनावी वर्ष में छत्तीसगढ़ में यह प्रदेश का सबसे बड़ा मुद्दा होगा, इसका अनुमान प्रेक्षक लगा ही रहे हैं। 

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