स्वातंत्र्य वीर सावरकर एक महान क्रांतिकारी के साथ-साथ गहन चिंतक तथा भविष्य द्रष्टा भी थे।
गत दिनों अ. भा. साहित्य परिषद, सिरमौर इकाई द्वारा सीएम राइज विद्यालय में 12वीं व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया। ‘स्वाधीनता संग्राम में सावरकर की भूमिका’ विषय पर मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित मध्य प्रदेश जन अभियान परिषद के उपाध्यक्ष डॉ जितेंद्र जामदार ने कहा कि स्वातंत्र्य वीर सावरकर एक महान क्रांतिकारी के साथ-साथ गहन चिंतक तथा भविष्य द्रष्टा भी थे।
उनके जीवन का प्रत्येक क्षण मातृभूमि के प्रति समर्पण का रहा। एक ऐसा व्यक्तित्व जो बड़ी बेबाकी के साथ अपनी बात को कहने-लिखने में संकोच नहीं रखता था। कोई भी ऐसा विषय नहीं छूटा जिस पर सावरकर जी ने अपने प्रखर शब्दों में अपने विचार ना रखे हों। उन्होंने कहा कि अंग्रेजों के विरुद्ध सैनिकों ने बंदूकें उठाई, सेनानियों ने तलवार उठाईं और उनको निकाल बाहर करने की क्रांति की।
अथर्ववेद के श्लोक ‘माता भूमि पुत्रोहं पृथिव्या’ के विचार को सब पढ़ते हैं, परंतु समझा सिर्फ वीर सावरकर जी ने-प्रो.मिथिला प्रसाद त्रिपाठी, पूर्व कुलपति
इस क्रांति में शामिल सैनिकों को अंग्रेजों ने दंगाई कहा, सैनिकों का विरोध कहा। वीर सावरकर ने इसके पूरे साहित्य को खंगाला और फिर एक पुस्तक लिखी ‘1857 का स्वातंत्र्यसमर’। इसमें उन्होंने इस पूरी क्रान्ति की वस्तुस्थिति लिखी।
व्याख्यानमाला में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित अ. भा. वनवासी कल्याण आश्रम के क्षेत्रीय सह संगठन मंत्री सुभाष बडोले ने वीर सावरकर के कृतित्व और व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला। साथ ही सिरमौर इकाई को कार्यक्रम आयोजन हेतु बधाई दीं।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में मध्य प्रदेश के अ. भा. साहित्य परिषद के अध्यक्ष एवं पूर्व कुलपति प्रो.मिथिला प्रसाद त्रिपाठी ने कहा कि अथर्ववेद के श्लोक ‘माता भूमि पुत्रोहं पृथिव्या’ के विचार को सब पढ़ते हैं, परंतु समझा सिर्फ वीर सावरकर जी ने। कार्यक्रम का संचालन अखिल भारतीय साहित्य परिषद महाकौशल प्रांत संयोजक धर्मेंद्र पांडेय ने किया।
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