बिहार सरकार के फैसले को पहले पटना उच्च न्यायालय ने स्थगन दे दिया था, और अब सर्वोच्च न्यायालय ने वह स्थगन हटाने से फिलहाल इनकार कर दिया है। प्रथम दृष्टि में यह संतोषजनक घटनाक्रम नजर आता है और एक अकारण-निरर्थक विवाद से समाज बच गया है। लेकिन अगर थोड़ा गहराई से देखें, तो कहानी आने वाले समय में और रोचक हो सकती है।
जाति आधारित जनगणना कराने के बिहार सरकार के फैसले को पहले पटना उच्च न्यायालय ने स्थगन दे दिया था, और अब सर्वोच्च न्यायालय ने वह स्थगन हटाने से फिलहाल इनकार कर दिया है। प्रथम दृष्टि में यह संतोषजनक घटनाक्रम नजर आता है और एक अकारण-निरर्थक विवाद से समाज बच गया है। लेकिन अगर थोड़ा गहराई से देखें, तो कहानी आने वाले समय में और रोचक हो सकती है।
पटना उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में स्पष्ट कहा था कि जनगणना कराना केंद्र सरकार का काम है, राज्य सरकार का नहीं। राज्य सरकारें अपनी विशिष्ट आवश्यकताओं के लिए स्थानीय स्तर पर सर्वेक्षण वगैरह करवा सकती हैं, लेकिन उसे जनगणना नहीं कहा जा सकता। इसके बावजूद यह नहीं कहा जा सकता है कि जिस नीयत से जातिगत जनगणना का शिगूफा छेड़ा गया था, वह नीयत अब शांत हो जाएगी। उस नीयत का संविधान आदि से कोई संबंध भी नहीं था।
उदाहरण के लिए यह अनुमान लगाया जा सकता है कि अब बिहार विधानसभा इस आशय का कोई प्रस्ताव पारित करे, वह प्रस्ताव नए सिरे से अदालतों के गलियारों में घूमे और यह सारा नाटक कम से कम 2024 तक चलता रहे। अलग-अलग विषयों को लेकर इस तरह की कोशिशें कई विधानसभाएं करती रही हैं, जो स्पष्ट रूप से सिर्फ चंद पलों तक सुर्खियों में बने रहने के लिए होती हैं।
जाति आधारित जनगणना का राजनीतिक प्रभाव तो फिर भी सीमित है, लेकिन जिस तरह की घटनाएं अभी सिर्फ एक राज्य के चुनाव को प्रभावित करने के लिए रची गई हैं, उनसे तो लगता है कि 2024 के चुनाव पूरे होने तक पूरे भारत में बहुत उथल-पुथल, संघर्ष, टकराव, वैमनस्य पैदा करने वाला विरोध और तरह-तरह की अशांति संगठित स्तर पर कराई जा सकती है।
वास्तव में इसमें अनुमान लगाने जैसा भी कुछ नहीं है। भारत की जनता और राजनीति को इस तरह के हथकंडों का पर्याप्त अभ्यास हो चुका है। टूलकिट क्या होती हैं, यह आम जनमानस अच्छी तरह समझ चुका है। लेकिन चूंकि आने वाला समय कुछ राजनीतिक संगठनों के लिए अस्तित्व रक्षा की परीक्षा हो सकता है, इसलिए इस बार यह चिंता गहरी हो जाती है। इसी प्रकार पिछले 9 वर्ष में भारत ने विश्व पटल पर जिस प्रकार अपने आप को स्थापित किया है, उससे हमारी अंतरराष्ट्रीय प्रतिद्वंद्विता भी बढ़ी है।
कोई मानव समाज उनसे परे कैसे हो सकता है? लेकिन जब उन्हीं को चौड़ा करने का प्रयास हो, तो एक राष्ट्र के रूप में हमारा कर्तव्य उनसे अपने राष्ट्र और समाज की रक्षा करना हो जाता है। जिस तरह के विभेदों को उत्पन्न करने का प्रयास हाल में किया गया है, इससे लगता है कि आने वाले समय में बहुत सारे गैर-राजनीतिक समूहों को एजेंडा संचालित विरोधों के लिए इस्तेमाल किया जाएगा।
इस बीच, अब विध्वंसकारी एजेंडा भी बढ़ा है, उस पर लगे दांव भी बढ़े हैं और उसमें निहित तत्वों की बेचैनी भी बढ़ी है। सिर्फ माफिया तत्वों के विदेशों से संचालित आतंकवादी गिरोहों से संबंध पर हाल ही में हुई कार्यवाही इस बात के संकेत देती है कि भारत के खिलाफ चल रहे षड्यंत्र किस स्तर पर थे। षड्यंत्र शांत हो जाएंगे, यह कल्पना करना बेमानी है। चुनाव के मौके पर वे अपना हिसाब वसूलने का प्रयास नहीं करेंगे यह मानना और भी बेमानी होगा।
भ्रंशरेखाएं (Fault lines) तो धरती में भी होती हैं, कोई मानव समाज उनसे परे कैसे हो सकता है? लेकिन जब उन्हीं को चौड़ा करने का प्रयास हो, तो एक राष्ट्र के रूप में हमारा कर्तव्य उनसे अपने राष्ट्र और समाज की रक्षा करना हो जाता है। जिस तरह के विभेदों को उत्पन्न करने का प्रयास हाल में किया गया है, इससे लगता है कि आने वाले समय में बहुत सारे गैर-राजनीतिक समूहों को एजेंडा संचालित विरोधों के लिए इस्तेमाल किया जाएगा।
सामाजिक उत्तेजना पैदा करने के प्रयास होंगे और इसमें सोशल मीडिया का फिर वैसे ही दुरुपयोग होगा, जैसा हाल के समय में लगभग हर चुनाव के ठीक पहले होता रहा है। भारत के सामाजिक तानेबाने के बारे में कल्पित कहानियां विश्व पटल पर पेश करने की कोशिशें होंगी। भारत की वास्तविक उपलब्धियों को नकारने के लिए कहानियां गढ़ना किस दृष्टि से राजनीति माना जा सकता है? लेकिन राजनीति के नाम पर यह हो चुका है।
ऐसे में भारत की जनता को अतिरिक्त सावधानी बरतनी होगी। हमें सावधान रहना होगा कि कोई हमारे पहचानगत प्रतीकों, क्षेत्रीय प्रतीकों, क्षेत्रीय भाषाओं, खान-पान, पहनावे, परिपाटी आदि के आधार पर किसी तरह का विद्वेष पैदा न कर सके। कोई एक राष्ट्र के तौर पर हमारा मनोबल कमजोर करने का प्रयास न कर सके।
@hiteshshankar
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