जी-20 की अध्यक्षता करते हुए भारत ने वसुुधैव कुटुम्बकम् के अपने ध्येय वाक्य को व्यवहार में उतारकर भी दिखाया है। भारत की सफल कूटनीति की वजह से ही आज दुनिया की जी-5 की ताकतें और संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद भारत के प्रस्तावों पर कान देने लगी हैं। राष्ट्र का हित सर्वोपरि रखते हुए, दुनिया के सामने उपस्थित चुनौतियों से सीधे टकराने की भारत सरकार की आक्रामक नीति अपना असर दिखा रही है।
भारत की कूटनीति का आज दुनिया लोहा मान रही है तो इसके पीछे उचित कारण भी हैं। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की सलाह को ही प्रमुखता से नहीं सुना जाने लगा है, बल्कि जी-20 की अध्यक्षता करते हुए भारत ने वसुुधैव कुटुम्बकम् के अपने ध्येय वाक्य को व्यवहार में उतारकर भी दिखाया है। भारत की सफल कूटनीति की वजह से ही आज दुनिया की जी-5 की ताकतें और संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद भारत के प्रस्तावों पर कान देने लगी हैं। राष्ट्र का हित सर्वोपरि रखते हुए, दुनिया के सामने उपस्थित चुनौतियों से सीधे टकराने की भारत सरकार की आक्रामक नीति अपना असर दिखा रही है।
जी-20, भारत की कूटनीति, वसुुधैव कुटुम्बकम्, संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद, राष्ट्र का हित सर्वोपरि, सरकार की आक्रामक नीति, अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की सलाह, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार डोवल, अमेरिका की भूमिका, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, वैश्विक नेता
इसी नीति की एक झलक पिछले दिनों पश्चिम एशिया में दिखाई दी। भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवल गत 8 मई को सऊदी अरब में थे। वहां उन्होंने अमेरिका, सऊदी अरब और यूएई के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों के साथ एक विशेष मुद्दे पर वार्ता की। चारों के बीच जिस विषय पर बात हुई है वह न सिर्फ इसमें शामिल उक्त चार देशों में आपसी व्यापारिक सुगमता की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि ये भारत की दृष्टि से एक रणनीतिक कामयाबी की ओर भी संकेत करती है। चारों देशों के एनएसए ने एक ऐसी योजना पर सहमति जताई है, जो अपनी बीआरआई परियोजना की मद में दुनिया पर हावी होने को उतावले चीन को बगलें झांकने पर मजबूर कर देगी।
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार डोवल ने खाड़ी तथा अरब देशों में एक रेलवे संजाल खड़ा करने का खाका तैयार किया है। जानकारी के अनुसार, एनएसए अजीत डोवल ने पश्चिमी एशिया में भारतीय दक्षता का डंका बजाते हुए सऊदी अरब और यूएई को रेल संजाल के माध्यम से आपस में जोड़ने तथा इलाके को समुद्री गलियारे के जरिए दक्षिण एशिया से जोड़ने की तैयारी की है। बताया गया है कि उक्त प्रस्ताव को तैयार करने में अमेरिका की बड़ी भूमिका है।
चालाक चीन और ‘मिशन क्रीप’
पश्चिम एशिया क्षेत्र में चीन अपना दबदबा बढ़ाने के लिए कसमसा रहा है। दिसम्बर 2022 में चीन के राष्टÑपति शी जिनपिंग सऊदी अरब में वहां के नेताओं से मिलने गए थे। उसके बाद उन्होंने ‘अपनी मध्यस्थता’ में सऊदी अरब और ईरान के बीच दूरियां खत्म करने की बात खूब प्रचारित की। ध्यान रहे कि चीन की इच्छा मध्य पूर्व में बेल्ट एंड रोड परियोजना को बेखटके बढ़ाने की है। यह अभी बहस का विषय है कि शी जिनपिंग का सऊदी अरब का दौरा कितना सफल रहा। लेकिन रूस-यूकेन युद्ध के माहौल में दो धड़ों में बंटती दिख रही दुनिया में चीन अपने पक्ष को वजनदार बनाने की मुहिम चलाए हुए है।
7 साल बाद दो इस्लामी देश, सऊदी अरब और ईरान अपने कूटनीतिक रिश्ते बहाल करने को राजी हुए हैं। चीन की इस ‘पहल’ को हिंद-प्रशांत क्षेत्र के आईने में देखना जरूरी है। यह क्षेत्र है जहां कम्युनिस्ट ड्रैगन काफी अकेला पड़ता जा रहा है। अमेरिका की अगुआई में पश्चिमी देश चीन की तरफ तलवारें भांज ही रहे हैं। ऐसे में राष्ट्रपति शी का पश्चिम एशिया जाना यह संकेत देने की कवायद माना गया कि वह वहां अमेरिका को चुनौती देने की स्थिति में है।
चीन के इस कदम के फौरन बाद, बीजिंग में तैयार बैठे कम्युनिस्ट दुष्प्रचार तंत्र ने हरकत में आते हुए दुनिया भर के मीडिया में यह आभास देना शुरू कर दिया था कि खाड़ी देशों में चीन का प्रभाव बढ़ने लगा है।
भारत के कूटनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि लंबे समय से चीन ‘मिशन क्रीप’ नाम की जिस योजना पर काम कर रहा है, उसमें भारत को लेकर एक नकारात्मक विमर्श को नए रूप में प्रचारित करना भी शामिल है। इसके साथ ही, दुनिया में जहां भी भारत के अपना असर बढ़ाने की संभावनाएं हों उन्हें पहचानकर वहां, विशेष रूप से हिन्द प्रशांत क्षेत्र में, अपने हित को आगे रखने को चीन बहुत तेजी से प्रयास कर रहा है।
भारत के पड़ोसी देशों पर अपने पैसे का रौब डालकर उन्हें कर्जदार बनाकर वहां के राजनय को अपने दबदबे में रखना और उन उन देशों में भारत के हितों पर चोट करवाना भी चीन की चालाक चालों में प्रमुखता से देखा जा सकता है।
अब भारत के एनएसए के प्रयासों और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के वैश्विक नेताओं से संपर्क की वजह से चीन के लिए खाड़ी की राह उतनी आसान नहीं रहने वाली है। सऊदी अरब और यूएई पश्चिम एशिया में अपना खास प्रभाव रखते हैं। वे जानते हैं कि चीन अपने यहां सिंक्यांग में उइगर मुस्लिमों का कितना उत्पीड़न कर रहा है। ऐसे में बीआरआई की काट करने वाली रेल परियोजना अरब जगत में भारत की तकनीकी मेधा का परचम जरूर लहराएगी।
एक बड़ा प्रयास
इस संबंध में नई दिल्ली में अधिकारियों का कहना है कि डोवल भारतीय उपमहाद्वीप और पश्चिम एशिया के बीच सुगम रेल, समुद्र और सड़क संपर्क बनाने के लिए विस्तृत पैमाने पर प्रयास कर रहे हैं, उक्त देशों की उनकी वह यात्रा इसी संदर्भ में एक बड़ा प्रयास मानी जा रही है।
अमेरिका की भूमिका
उल्लेखनीय है कि अमेरिका की नजर से भी यह परियोजना महत्वपूर्ण है, शायद इसीलिए सबसे पहले अमेरिका की न्यूज वेबसाइट ‘एक्सियोस’ ने इसकी जानकारी जारी की। कहा गया कि यह उन कुछ खास पहलों में से एक है जो व्हाइट हाउस की मध्य पूर्व योजना को लेकर चल रही हैं। लेकिन मुद्दे की बात यह है कि इस परियोजना के माध्यम से विस्तारवादी कम्युनिस्ट चीन के पर कतरने की तैयारी है। ‘एक्सियोस’ का कहना है कि अब वह दिन दूर नहीं लगता जब खाड़ी और अरब देशों में भारतीय रेलवे की दक्षता का सदुपयोग होगा और एक महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा खड़ा होगा। माना जा रहा है कि भारत मध्य पूर्व के बंदरगाहों से नौवहन मार्गों के जरिए संपर्क में बना रहेगा। सूत्रों के अनुसार, भारत स्वयं इस परियोजना में हिस्सेदारी को बहुत महत्व दे रहा है। इसकी वजह यह है कि इस काम से भारत के कई रणनीतिक उद्देश्य पूरे होंगे।
नई दिल्ली जिसे ‘मिशन क्रीप’ योजना के तौर पर जानती है वह और कुछ नहीं, बीजिंग की पश्चिमी एशियाई देशों में अपना राजनीतिक रसूख बढ़ाने की कवायद ही है। भारत जानता है कि चीन पश्चिम एशिया में उसके हितों को चोट पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ने वाला है। लेकिन अब नई रेल और समुद्र परियोजनाओं से भारत का मध्य पूर्व से जुड़ाव बढ़ने पर कच्चे तेल को और सुगमता से लाया जा सकेगा जिससे भारत का खर्च कम होगा। कहा यह भी जा रहा है कि इस निकट जुड़ाव से मध्य पूर्व के देशों में बसे करीब 80 लाख मूलत: भारतीयों को भी संबल मिलेगा जो खाड़ी में काम—काज कर रहे हैं।
अब भारत के एनएसए के प्रयासों और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के वैश्विक नेताओं से संपर्क की वजह से चीन के लिए खाड़ी की राह उतनी आसान नहीं रहने वाली है। सऊदी अरब और यूएई पश्चिम एशिया में अपना खास प्रभाव रखते हैं। वे जानते हैं कि चीन अपने यहां सिंक्यांग में उइगर मुस्लिमों का कितना उत्पीड़न कर रहा है। ऐसे में बीआरआई की काट करने वाली रेल परियोजना अरब जगत में भारत की तकनीकी मेधा का परचम जरूर लहराएगी।
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