जापान में चल रहे जी—7 देशों के शिखर सम्मेलन से चीन इतना चिढ़ा बैठा है कि उसकी प्रतिक्रिया में उसने अपने यहां पांच मध्य एशियाई देशों के नेताओं को बुलाकर अपनी थानेदारी का रौब झाड़ने की कोशिश की है। जी—7 के जवाब में कम्युनिस्ट चीन के शियान शहर में कल से एक शिखर सम्मेलन का आयोजन चल रहा है।
चीन के अलावा शियान के इस सम्मेलन में भाग लेने वाले मध्य एशियाई देश हैं कजाखिस्तान, उज्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, किर्गिस्तान तथा ताजिकिस्तान। इन देशों के राष्ट्रपतियों को चीन ठीक उसी तारीख को न्योता जब जापान के ऐतिहासिक हीरोशिमा शहर में जी—7 का सम्मेलन चल रहा है।
इसमें किसी जानकार को संदेह नहीं है कि चीन ने योजनाबद्ध तरीके से जी—7 को टक्कर देने के लिए मध्य एशियाई देशों का गुट जैसा दिखाने का नाटक रचाया है। यूक्रेन ओर रूस के बीच छिड़ी जंग की वजह से दो धड़ों में बंटती दिख रही दुनिया में चीन ‘अपने गुट’ का झांसा देने की ही कोशिश कर रहा है।
हीरोशिमा का जवाब है शियान, ऐसा आभास देते चीन की अगुआई में चल रहे शिखर सम्मेलन में भाग ले रहे कजाखिस्तान, उज्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, किर्गिस्तान तथा ताजिकिस्तान के राष्ट्रपतियों की चर्चा का घोषित एजेंडा तो क्षेत्र में सहयोग और समन्वय को बढ़ाना है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह सिर्फ चीन की एक गुट बनाकर दिखाने की कोशिश ही है। कल बीजिंग में कम्युनिस्ट चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने इस सम्मेलन का बाकायदा उद्घाटन किया।
जिनपिंग ने कहा कि दुनिया में स्थितियां जितनी भी बदलें, पर चीन तथा मध्य एशिया के देश आपस में एक—दूसरे की इज्जत करते रहने वाले हैं। इनकी दोस्ती बनी रहेगी। ये देश ऐसा आपसी सहयोग करेंगे कि जिससे सबका फायदा होगा। जानकारों का कहना है कि चीन चाहता है इस सम्मेलन के माध्यम से जी-7 देश देख लें कि बीजिंग दूसरे देशों के साथ बराबरी के रिश्ते बनाता है, चीन सभी देशों के हितों को एक जैसा महत्वपूर्ण मानता है।
बीजिंग के सरकारी ‘सूत्रों के अनुसार, चीन किसी योजना के तहत ‘जी—7 सम्मेलन के वक्त ही शियान के सम्मेलन का आयोजन नहीं किया है’। लेकिन उनका यह मानना है कि बेशक, दोनों ही शिखर सम्मेलन विश्व को एक दूसरे से उलट ही संदेश दे रहे हैं। चीनी सरकारी सूत्र कहते हैं कि शीत युद्ध की पहले वाली भाषा ही जी—7 में सुनाई दे रही है। जबकि इसके उलट ‘चीन-मध्य एशिया शिखर सम्मेलन में वार्ता सहयोग तथा विकास के एजेंडे’ पर ही रहने वाली है।
सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए जिनपिंग ने कहा कि दुनिया में स्थितियां जितनी भी बदलें, पर चीन तथा मध्य एशिया के देश आपस में एक—दूसरे की इज्जत करते रहने वाले हैं। इनकी दोस्ती बनी रहेगी। ये देश ऐसा आपसी सहयोग करेंगे कि जिससे सबका फायदा होगा। सम्मेलन के मौके पर चीन के राष्ट्रपति ने अपने देश में आए मध्य एशियाई देशों के पांचों राष्ट्रपतियों के संग अलग से द्विपक्षीय चर्चा भी की। कुछ जानकारों का कहना है कि चीन चाहता है इस सम्मेलन के माध्यम से जी-7 देश देख लें कि बीजिंग दूसरे देशों के साथ बराबरी के रिश्ते बनाता है, चीन सभी देशों के हितों को एक जैसा महत्वपूर्ण मानता है।
जैसा माना जा रहा था, शियान सम्मेलन के बहाने कजाखिस्तान, किर्गिजिस्तान तथा ताजिकिस्तान के साथ चीन ने व्यापार, ऊर्जा और बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) को लेकर कई करार किए। चीन का सरकारी मीडिया खूब बढ़—चढ़कर इस सम्मेलन की शान में कसीदे काढ़ रहा है। वहां छापा जा रहा है कि ‘सम्मेलन में आए मुस्लिम बहुल देशों ने सिंक्यांग को लेकर चीन के मत का हर तरह से समर्थन दिया है। लेकिन पश्चिमी देश बेवजह इसे लेकर चीन पर आरोप लगाते हैं।’ दुनिया जानती है और तथ्य बताते हैं कि चीन के उइगर मुस्लिम बहुल सिंक्यांग प्रांत में ड्रैगन उइगर मुसलमानों को यातनाएं दे रहा है।
चीन के सरकारी भोंपू कहे जाने वाले अखबार ग्लोबल टाइम्स ने छापा है कि ‘चीन मध्य एशियाई देशों को खास रणनीतिक महत्त्व का मानता है। ऐसे समय में जब अमेरिका अपने साथी पश्चिमी देशों के साथ चीन के विरुद्ध गुटबंदी कर रहा है, चीन के महत्वपूर्ण है कि मध्य एशिया में स्थिरता बनी रहे। मध्य एशिया में सुरक्षा की जो स्थिति है उसका चीन के उत्तर-पूर्वी भाग पर दूरगामी असर पड़ने की संभावना है।
चीन के एक विश्लेषक झाओ का कहना है कि यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद से दुनिया दो गुटों में बंछती नजर आ रही है। ऐसे में बेशक चीन और मध्य एशियाई देशों के बीच निकटता और सहयोग इस क्षेत्र में शांति और स्थिरता ही लाएगा। चीन के सम्मेलन पर अमेरिकी पोर्टल ब्लूमबर्ग ने लिखा है कि दोनों ही सम्मेलन कई खेमों में बंटी दुनिया में विकासशील देशों को उनके लिए खास रणनीतिक सहयोगी बनने को आकर्षित कोशिश करते दिखते हैं।
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