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श्रद्धा वॉकर की हत्या का एक वर्ष: फेमिनिज्म निर्मित प्यार की आजादी का शिकार, परिवार की महत्ता पर फिर से हो बात

श्रद्धा वॉकर, जिसकी हत्या का रहस्य तब पता चला जब उसके टुकड़े-टुकड़े मिले। उसकी लाश के टुकड़े यूंही पड़े रहते, जानवर खाते रहते यदि उसके पिता के दिल में बार-बार अपनी बेटी का विचार न आता ।

सोनाली मिश्रा by सोनाली मिश्रा
May 20, 2023, 05:40 pm IST
in भारत, विश्लेषण
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श्रद्धा वॉकर, जिसकी हत्या 20 मई 2022 को हुई थी, परन्तु उसकी हत्या का रहस्य तब पता चला जब उसके टुकड़े-टुकड़े मिले। उसकी लाश के टुकड़े यूंही पड़े रहते, जानवर खाते रहते यदि उसके पिता के दिल में बार-बार अपनी उस बेटी का विचार न आता जो उसे साथ रहने की आजादी अर्थात लिव इन में रहने के नाम पर छोड़कर चली गयी थी।

श्रद्धा वॉकर की हत्या आफताब के हाथों हुई थी, वह लव जिहाद की श्रेणी में आएगी या नहीं, कह नहीं सकते, परन्तु यह बात अवश्य है कि वह उस जहर के कारण अवश्य हुई थी, जिसे वामपंथी फेमिनिज्म कहते हैं। जो आपको परिवार के खिलाफ जाकर खड़ा कर देता है और परिवार को आपका सबसे बड़ा दुश्मन बना देता है।

श्रद्धा की जो भी तस्वीरें हमें इंटरनेट पर मिलती हैं, उसमें वह एक आत्मविश्वास से भरी हुई लड़की दिखाई देती है। परन्तु वह आत्मविश्वास तभी तक था, जब तक वह अपने परिवार के साथ थी। आफताब के साथ आने के बाद तो आफताब पर निर्भरता ही दिखाई देती है। वह भी इस सीमा तक निर्भरता कि आफताब के घरवालों ने जब उसके पिता का अपमान किया, कि वह लोग उसके साथ आफताब की शादी नहीं करेंगे, तो भी वह आफताब के साथ रिश्ते में बनी रही और लिव इन में रहते हुए दिल्ली तक चली आई।

श्रद्धा वॉकर के पिता विकास ने कहा था कि जब उन्होंने इस लिव इन रिलेशन का विरोध किया था तो श्रद्धा ने कहा था कि वह 25 वर्ष की है और उसे अपने फैसले लेने का पूरा अधिकार है। उसे आफताब के साथ लिव इन में रहना है और फिर कहा था “मैं आज से आपकी बेटी नहीं!”

एक पिता के लिए इससे बड़ा झटका कुछ नहीं हो सकता कि उसकी बेटी न केवल उनका अपमान बर्दाश्त करे बल्कि उन्हें छोड़कर बिना विवाह के रहने चली जाए। मगर वामपंथी फेमिनिज्म बेटियों के मन में परिवार के प्रति यही विष भरता है। श्रद्धा वॉकर, जो एक पत्रकार बनना चाहती थी, जैसा उसके दोस्त की बात से पता चला था, वह आखिर उस विचार का शिकार कैसे हो गयी जिसने उसे आफताब पर इतना निर्भर कर दिया?
श्रद्धा जिस bumble app के माध्यम से आफताब से मिली थी, वह कथित रूप से फेमिनिस्ट एप है, जो महिलाओं के लिए आगे बढ़कर बात करना सुगम बनाता है। वह महिलाओं को सशक्त करता है कि महिलाएं अपने आप डेटिंग के लिए बात करें। इस एप पर ब्लैक लाइव मैटर्स जैसे मामलों को लेकर भी एक्टिविज्म हुआ था। यह एप डेटिंग को रोमांटिसाइज़ करता है और यहीं पर आफताब पूनावाला खुद को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत करता है, जिसके दिल में महिलाओं के लिए आदर है।

https://bumble.com/en-in/

आफताब की सोशल मीडिया प्रोफाइल से पता चलता है कि कैसे वह हिन्दू त्योहारों पर पटाखे न चलाएं, और कथित प्रगतिशीलता की बातें करता था।

आफताब की फेसबुक प्रोफाइल से कुछ तस्वीरें

फिर श्रद्धा एक ऐसे जाल में फंसती है, जहां से वह टुकड़े टुकड़े होकर ही निकल कर बाहर आई। डेटिंग एप से पाए हुए व्यक्ति पर श्रद्धा इतनी निर्भर हो गयी कि उसने अपने परिवार से ही नाता तोड़ लिया? न जाने कितने ऐसे मामले सामने आते हैं, जिनमें परिवार से नाता तोड़ने के बाद लड़कियां देह व्यापार तक के जाल में फंस जाती हैं और अपने आप अपरिपक्वता में, शीघ्रता से कदम उठाने के कारण विवाह तक टूटने की स्थिति में पहुँच जाती हैं।
श्रद्धा वॉकर ने यदि अपने पिता और परिवार की बात पर विश्वास किया होता, तो आज वह जीवित होती। श्रद्धा वॉकर के पिता ने उससे आफताब के साथ लिव इन में जाने को लेकर अपनी अस्वीकृति व्यक्त की थी, जिसे श्रद्धा ने शायद उस आजादी के नारे के तले दबा दिया, जो नारा उसे bumble app ने दिया था, कि डेटिंग में केवल आदमी ही क्यों पहल करें, औरतों के पास आजादी होनी चाहिए!

आज यदि आफताब जेल में है तो वह उसी पिता और उसी परिवार के कारण, जिसे प्यार के विमर्श में सबसे बड़ा खलनायक बनाकर प्रस्तुत किया जाता है। श्रद्धा के टुकड़े कुत्ते ही खाते रहते, यदि पिता के दिल में अपनी बेटी की खैर खबर की लालसा न होती। पिता के मन में यह पीड़ा नहीं होती कि आखिर मेरी बेटी के साथ हुआ क्या है? वह सोशल मीडिया पर क्यों नहीं दिख रही?

क्या परिवार की भूमिका मात्र बच्चों के लालन पालन तक ही सीमित है? या फिर उनके विवाह के मामले में भी परिवार की भूमिका महत्वपूर्ण है? यह प्रश्न इसलिए उभर कर आया कि क्योंकि दो दिन पहले ही माननीय उच्चतम न्यायालय ने एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात कही है और वह यह कि अधिकतर तलाक प्रेम विवाहों से सामने आ रहे हैं!

https://twitter.com/lawyerkushagra/status/1658777161434816513

यह बहुत महत्वपूर्ण अवलोकन है! यही वह कड़ी है जो भारत की परिवार परम्परा की महत्ता को पुनर्स्थापित करती है कि माता-पिता अपनी संतान के लिए हर प्रकार से योग्य जीवनसाथी चुनते हैं। विवाह या कहें जब दो लोग साथ होते हैं, तो जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए परिवार का साथ चाहिए होता है। यदि आफताब को यह विश्वास होता कि श्रद्धा अपने परिवार के साथ है, श्रद्धा अपने पिता से प्यार करती है, उन पर विश्वास करती है तो वह भी शायद उसके साथ इतना क्रूर व्यवहार न करता!

आफताब ने उसे मारना पीटना बहुत पहले से शुरू कर दिया था। फिर ऐसे में प्रश्न उठता है कि यदि डेटिंग एप से औरतों को डेट के लिए प्रस्ताव भेजने की आजादी मिलती है, तो वह ताकत क्यों नहीं मिलती जिससे वह इस अपमानित करने वाले और शोषण करने वाले रिश्ते से बाहर आ सकें? क्यों वह पिटाई झेलती रहती हैं? इसका एक बहुत बड़ा उत्तर है कि उनके पास परिवार का साथ नहीं होता, आजादी के नाम पर परिवार का साथ ये एप और कथित क्रान्ति छुड़वा देती है।

यह नहीं कहा जा सकता कि परिवार द्वारा निर्धारित किए गए विवाहों में समस्याएं नहीं होतीं या वहां पर लड़की के साथ कुछ गलत नहीं होता, होता होगा और जब कई लोग साथ रहते हैं तो वैचारिक मतभेदों के चलते कई बार विवाद होते भी हैं, परन्तु उन तमाम विवादों को थामने के लिए या फिर पति एवं पत्नी के मध्य मनमुटाव को हल्का करने के लिए तमाम ऐसे लोग होते हैं, जिन्होनें जीवन के उतार-चढ़ाव देखे होते हैं। जो विवाह के टूटने की मानसिक पीड़ा को समझते हैं। जो यह जानते हैं कि सम्बन्ध टूटने के दुष्परिणाम क्या होते हैं।

आज जब उच्चतम न्यायायलय का यह अवलोकन सामने आया है, और श्रद्धा वॉकर की हत्या को एक वर्ष हुआ है, तो बेटियों को बचाने के लिए परिवार एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में सामने आ रहा है, कि यदि परिवार का साथ होगा तो मनमुटाव कैसे कम होंगे और कैसे व्यक्ति अपने उस साथी पर हाथ उठाने से भी डरेगा, जिसका परिवार उसके साथ है।

क्योंकि जहां वामपंथी फेमिनिज्म परिवार को शोषण की प्रथम कड़ी मानता है तो वहीं समाजशास्त्र के अनुसार परिवार समाज की मौलिक एवं मूल इकाई है। परिवार को सामाजिक नियंत्रण के लिए सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। और परिवार का निर्माण विवाह नामक संस्था से होता है।
श्रद्धा वॉकर की हत्या का चार महीने बाद इसीलिए पता चल सका क्योंकि वह उस मूलभूत इकाई से टूटकर एक ऐसे जाल में फंस गयी थी, जहाँ पर वह एकदम अकेली थी। इसी अकेलेपन ने उसे मारपीट करने वाले आफताब पर मानसिक रूप से निर्भर कर दिया था।
परिवार की महत्ता पर पुन: बात हो! केरल स्टोरी में भी यह दिखाया है कि कैसे परिवार ही बेटी की खैर खबर के लिए व्याकुल है और जाल में फंसाने वाले नए शिकार की तलाश में!

Topics: आफताबश्रद्धा वॉकरOne year of Shraddha Walkers murderफेमिनिज्मफेमिनिज्म निर्मित प्यारShraddha WalkersShraddha Walkers murderश्रद्धा वाकर हत्याकांड
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