मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता सिद्धारमैया की एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग के बीच लोकप्रियता भी इस वोट स्थानांतरण का एक बड़ा कारण बनी। हमेशा सहयोगी की भूमिका निभाने वाले जेडीएस को राजनीतिक रूप से प्रासंगिक बने रहने के लिए अब नई रणनीति तलाशनी होगी। नि:संदेह, इस चुनाव में सियासी समीकरण ध्वस्त होते हुए दिखाई दिए।
कर्नाटक विधानसभा चुनाव में न तो कांग्रेस के रणनीतिकारों को इतनी बड़ी जीत की उम्मीद थी और न ही भाजपा को ऐसी हार की। पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा ने भी यह नहीं सोचा था कि इस बार उनकी पार्टी जनता दल सेक्युलर यानी जेडीएस औंधे मुंह गिरेगी। देवेगौड़ा और उनके बेटे राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री कुमारस्वामी किंगमेकर बनने की उम्मीद लगाए बैठे थे लेकिन चुनाव परिणामों ने जेडीएस की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। यह ऐसे किंगमेकर की हार है जिसका पतन अपनी कीमत पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कांग्रेस को बढ़ावा देने के चलते हुआ। नतीजे जेडीएस के खराब प्रदर्शन और उसकी पारंपरिक जमीन हारने का सबसे बड़ा सबूत हैं। इस चुनाव में कांग्रेस ने 224 सदस्यों वाली विधानसभा में 136 सीटों पर कब्जा जमाया है जबकि सत्ताधारी भाजपा को सिर्फ 65 सीटों से संतोष करना पड़ा। राज्य में तीसरे प्रमुख दल जेडीएस का प्रदर्शन सबसे खराब रहा और वह केवल 19 सीटों पर ही जीत हासिल कर सका।
सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री और शिवकुमार को उपमुख्यमंत्री बनाने के ऐलान से दलित समुदाय आहत हुआ है। स्पष्ट है कि राज्य में मिली भारी-भरकम जीत एकजुटता के लिहाज से कांग्रेस के लिए चुनौती भी है। राज्य में हार भाजपा के लिए सबक है और मंथन का मौका भी।
-जी. परमेश्वर, कर्नाटक
मुस्लिम मतदाताओं की गोलबंदी
कर्नाटक के जनादेश को लेकर कांग्रेस, भाजपा और जेडीएस का हार-जीत पर अपना-अपना चिंतन हो सकता है, अपने-अपने मुद्दे भी हो सकते हैं और रणनीति भी। लेकिन दो पहलू ऐसे हैं जिन्होंने कर्नाटक की चुनावी राजनीति और समीकरणों को बदल कर रख दिया। मसलन कर्नाटक में कांग्रेस की जीत का एक बड़ा पक्ष जेडीएस का वोट बैंक सरकना रहा है। कांग्रेस ने जेडीएस के वोट बैंक में जबरदस्त सेंधमारी की है।
एक और महत्वपूर्ण पहलू मुस्लिम मतों का कांग्रेस के पक्ष में गोलबंद होना भी है। कर्नाटक के कुल मतदाताओं में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या करीब 13 प्रतिशत है। कांग्रेस ने मुसलमानों के लिए चार प्रतिशत आरक्षण बहाल करने का वादा किया था जिसे पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने खत्म कर दिया था। राज्य में हिजाब को लेकर हुए विवाद और केंद्र सरकार के इस्लामिक संगठन पॉपुलर फ्रंट आॅफ इंडिया (पीएफआई) पर पांच साल का प्रतिबंध लगाए जाने के बाद राज्य में यह पहला विधानसभा चुनाव था।
कांग्रेस द्वारा मुस्लिम आरक्षण बहाल करने और बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने के वादे ने मुस्लिम वोट बैंक का ध्रुवीकरण कांग्रेस के पक्ष में कर दिया। जेडीएस के वोट बैंक में लगभग 5 प्रतिशत की गिरावट आई है और यही 5 प्रतिशत वोट कांग्रेस को गया है
चुनाव परिणाम मुस्लिम मतों की गोलबंदी को प्रमाणित करते हैं। कांग्रेस ने 15 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया और उनमें से नौ विजयी हुए। वहीं जेडीएस ने 23 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था लेकिन कोई भी जीत हासिल नहीं कर सका। असदुद्दीन ओवैसी की आल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुसलमीन ने दो सीटों पर चुनाव लड़ा था पर उसे दोनों ही सीटों पर जोरदार हार मिली। एसडीपीआई का भी कुछ ऐसा ही हश्र हुआ क्योंकि उसके 16 उम्मीदवारों में से कोई भी खाता नहीं खोल सका। कांग्रेस को 2018 के मुकाबले में 2023 में मुस्लिम प्रभाव वाली 55 सीटों पर जीत मिली हैं।
जेडीएस के वोटबैंक में सेंध
कर्नाटक के ओल्ड मैसूर इलाके को जेडीएस का गढ़ माना जाता है और इस इलाके में विधानसभा की 55 सीटें हैं। वोक्कालिंगा और मुस्लिम मतदाता ही इन सीटों पर जीत-हार का फैसला करते आए हैं। ये दोनों ही समुदाय जेडीएस के ठोस वोट बैंक माने जाते रहे हैं लेकिन कांग्रेस के बजरंग दल पर बैन लगाने के वादे और भाजपा द्वारा इसे बजरंगबली के अपमान से जोड़ने की मुहिम ने मुस्लिम वोट बैंक का ध्रुवीकरण कांग्रेस के पक्ष में कर दिया।
जेडीएस के वोट बैंक में लगभग 5 प्रतिशत की गिरावट आई है और यही 5 प्रतिशत कांग्रेस को ज्यादा मिला है। 2018 के पिछले विधानसभा चुनाव में 18.3 प्रतिशत मतों के साथ जेडीएस ने 37 सीटों पर जीत हासिल की थी, वहीं 38.1 प्रतिशत मत के साथ कांग्रेस को 80 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। लेकिन इस बार के विधानसभा चुनाव में जेडीएस के वोट बैंक का एक बड़ा हिस्सा कांग्रेस को स्थानांतरित हो गया है।
पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता सिद्धारमैया की एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग के बीच लोकप्रियता भी इस वोट स्थानांतरण का एक बड़ा कारण बनी। हमेशा सहयोगी की भूमिका निभाने वाले जेडीएस को राजनीतिक रूप से प्रासंगिक बने रहने के लिए अब नई रणनीति तलाशनी होगी। नि:संदेह, इस चुनाव में सियासी समीकरण ध्वस्त होते हुए दिखाई दिए। यह राज्य का सबसे बड़ा क्षेत्र है और एकमात्र ऐसा क्षेत्र है जिसे जेडीएस का गढ़ माना जाता है। लेकिन इस बार कांग्रेस पार्टी ने जेडीएस से बेहतर प्रदर्शन किया और 42 प्रतिशत वोट हासिल किए जो 2018 की तुलना में सात प्रतिशत अधिक हैं।
इस क्षेत्र में कांग्रेस ने सबसे अधिक 43 विधानसभा सीटें भी जीतीं। दूसरी ओर जेडीएस यहां की 64 विधानसभा सीटों में से 26 प्रतिशत वोटों के साथ केवल 14 सीटें जीतने में कामयाब रही। पार्टी को इस क्षेत्र में नौ प्रतिशत वोटों का नुकसान हुआ। भाजपा को इस इलाके में दो प्रतिशत अधिक वोट मिले लेकिन फिर भी उसे यहां 11 सीटों का नुकसान हुआ। बेंगलुरु क्षेत्र में भाजपा ने अच्छा प्रदर्शन किया और 2018 के चुनावों की तुलना में अपनी स्थिति में भी सुधार किया है। 2018 के विधानसभा चुनाव में 11 सीटों की तुलना में उसने 16 सीटों पर कब्जा जमाया है।
जीत के बाद कांग्रेस में कलह
कर्नाटक में कांग्रेस को विशाल जनादेश मिला है इसके बावजूद कांग्रेस में कुर्सी के लिए कलह भी शुरू हो गई। हालांकि कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व ने इस कलह को ढकने की, संभालने की कोशिश की और राज्य के नेताओं से मंथन कर मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए नाम तय कर दिया। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक, कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल के अनुसार कांग्रेस पार्टी ने सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला किया है, वहीं डीके शिवकुमार उपमुख्यमंत्री होंगे।
डीके 2024 लोकसभा चुनाव तक कर्नाटक के प्रदेश अध्यक्ष बने रहेंगे। हालांकि कांग्रेस के एक और बड़े नेता ने इस फॉर्मूले पर सवाल उठाए हैं। कर्नाटक के पूर्व उप मुख्यमंत्री जी. परमेश्वर ने कहा कि सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री और शिवकुमार को उपमुख्यमंत्री बनाने के ऐलान से दलित समुदाय आहत हुआ है। स्पष्ट है कि राज्य में मिली भारी-भरकम जीत एकजुटता के लिहाज से कांग्रेस के लिए चुनौती भी है। राज्य में हार भाजपा के लिए सबक है और मंथन का मौका भी।
राज्य के भाजपा
नेताओं की आपसी खींचतान पार्टी के लिए नुकसानदायक साबित हुई। वहीं गुजरात और पंजाब में अपना विस्तार करने वाली मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी कोई करिश्मा नहीं दिखा पाई।
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