भारतीय सेना के परमवीर सैनिक अनसुइया प्रसाद ने सन 1971 में भारत पाकिस्तान युद्ध के समय पाकिस्तानी सेना को विस्मित करते हुए भयानक आत्मघाती हमला किया था। हुतात्मा अनुसूया प्रसाद केवल 18 साल की आयु में भारतीय सेना के अदम्य साहस और शौर्य का परिचय कराते हुए मातृभूमि की रक्षार्थ बलिदान देकर देश में सबसे कम आयु के भारतीय सेना सर्वोच्च सैन्य अलंकरण महावीर चक्र के विजेता बने थे। भारत पाकिस्तान सन 1971 युद्ध में जिन सैनिकों ने अभूतपूर्व पराक्रम का प्रदर्शन किया था, उनमें से अनुसूया प्रसाद की वीरता और साहस की पराकाष्ठा अब तक भी भारतीय सेना के लिए किवदंती बनी हुई है।
जन्म – 19 मई 1953 ग्राम नन्ना, चमोली, उत्तराखण्ड.
बलिदान पर्व – 30 नवंबर सन 1971, ईस्टर्न फ्रंट ऑपरेशन, भारत-पाक युद्ध.
अनुसूया प्रसाद का जन्म 19 मई सन 1953 को पिता दयानन्द एवं माता उखा देवी के घर ग्राम नन्ना, चमोली, उत्तराखंड में हुआ था। अनुसूया प्रसाद केवल 18 वर्ष की आयु में सन 1971 में भारतीय सेना में भर्ती हुए थे। अनसूया प्रसाद ने अपनी रेजिमेंट के सबसे युवा सैनिक होने के बाद भी भारत-पाक युद्ध के समय बेहद सक्रिय भूमिका निभाई थी। भारत का पाकिस्तान से युद्ध वास्तव में 3 दिसंबर सन 1971 को प्रारम्भ हुआ था किन्तु भारतीय सीमा पर पाकिस्तान सेना से झड़पें बहुत पहले चल रही थीं। अनुसूया प्रसाद की बटालियन 29/30 नवंबर सन 1971 को ऐसे ही एक ऑपरेशन में शामिल थी। भारतीय सेना की महार रेजीमेंट की एक यूनिट तत्कालीन पश्चिमी पाकिस्तान की सीमा पर तैनात की गई थी जिसमें सिपाही अनुसुइया प्रसाद भी शामिल थे। भारतीय सेना की इस सैन्य यूनिट को पश्चिमी पाकिस्तान सीमा पर तैनात हुए अभी 9 दिन भी नहीं हुए थे कि भारतीय सेना के उच्च सैन्य अफसरों से आदेश मिला कि वर्तमान बांग्लादेश के चितलापुर के मौलवी बाजार शमेशरपुरा में पाकिस्तानी सेना के आक्रमण का उचित जवाब देना है।
29 नवंबर सन 1971 को भारतीय सेना की सैन्य यूनिट जब वहां पहुंची तो पाकिस्तानी सैनिक एक भारतीय चौकी ताबड़तोड़ फायरिंग कर रहे थे। बेहद विपरीत परिस्थितियों में निर्णय लिया गया कि कुछ भारतीय जवान आत्मघाती हमलावर के रूप में इस चौकी पर पहुंचे और उसे ग्रेनेड से उड़ा दें। आत्मघाती हमलें पर अभी भारतीय सेना विचार विमर्श कर रही थी कि सिपाही अनुसुइया प्रसाद ने आगे बढ़कर कहा कि उक्त कार्य को वह अकेले करना चाहते हैं। लगातार गम्भीर होती परिस्थितियां और बेहद कम उम्र का अनुभवहीन सैनिक अंततः अनुमति मिलने के बाद अनुसूया प्रसाद हाथ में ग्रेनेड लिए दुश्मन के ठिकाने की तरफ़ आगे बढ़ चले। उस सैन्य चौकी के नजदीक पहुंचने से पूर्व ही दुश्मन ने उनकी उपस्थिति को देखकर भयानक एकीकृत आक्रमण कर दिया जिसमें उनके दोनो पैरो में गोलियां लग गई थी और वह बेहद गम्भीर रुप से घायल हुए। हुतात्मा अनुसुया अटल संकल्प के साथ किसी तरह लड़खड़ाकर कुछ और आगे पहुंचे ही थे कि दुश्मन की मशीनगन ने पुनः उनको लक्षित कर आक्रमण किया। उक्त हमलें में अनेकों गोलियों ने उनके कंधे सहित शरीर को छलनी कर दिया था। अनुसूया प्रसाद गम्भीर घायलावस्था में भी अपने लक्ष्य से नहीं डिगे और सरकते-सरकते दुश्मन की चौकी तक जा पहुंचे थे। उन्होंने लक्ष्य साधकर ग्रेनेड को चौकी के अन्दर खिड़की के रास्ते फेंक दिया जिसके कारण चौकी तबाह हो गई जिसने दुश्मन को बर्बाद कर दिया था। दुश्मन सैनिक बर्बाद चौकी को छोड़कर भाग निकले, अंततः भारतीय सेना को आगे बढ़ने का रास्ता मिल गया था।
हुतात्मा अनुसूया प्रसाद ने गम्भीर रुप से घायलावस्था में लक्ष्य को बर्बाद कर मातृभूमि की सेवार्थ अपने प्राणों का सर्वोच्च बलिदान किया। उनके असाधारण शौर्य और पराक्रम से थर्राए दुश्मन सैनिक जो शमशेरपुरा शहर की रक्षा कर रहे थे, ने 17 दिसंबर सन 1971 को भारतीय सेना के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। सिपाही अनुसूया प्रसाद ने अपनी सैन्य बटालियन के साथ केवल 11 दिन देश की सेवा की थी जिसमें उन्होनें अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा की परवाह न करते हुए उत्कृष्ट साहस का परिचय दिया था। हुतात्मा अनुसूया प्रसाद के साहसिक कार्य ने युद्ध की दिशा ही बदल दी थी, जिस कारण भारतीय सेना की निर्णायक जीत सुनिश्चित हुई थी। अनुसूया प्रसाद को वीरता, शौर्य, पराक्रम के लिए देश के सर्वोच्च सैन्य अलंकरण महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। मध्यप्रदेश के सागर में परेड ग्राउंड का नाम सिपाही अनुसूया प्रसाद के नाम पर रखा गया है। उनकी सैन्य यूनिट के सामने इस बहादुर सैनिक की प्रतिमा स्थापित की गई है, जो वर्तमान में अमर बलिदानी सैनिक द्वारा दिखाए गए असाधारण साहस के सम्मान में अनुसूया प्रसाद बटालियन के रूप में प्रसिद्ध है।
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