यह भविष्य की अकल्पनीय संभावनाओं की ओर तो संकेत करती ही है, एलन मस्क जैसे आलोचकों की उस धारणा की तरफ भी ध्यान खींचती है कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता बहुत खतरनाक चीज हो सकती है।
क्या आप जानते हैं कि चैटजीपीटी अब तक का सबसे लोकप्रिय, सर्वाधिक प्रयुक्त और चर्चित कृत्रिम बुद्धिमत्ता चैटबॉट है, और शायद सबसे शक्तिशाली भी। आप इससे न सिर्फ सवाल पूछ सकते हैं बल्कि इसे कुछ काम करने का निर्देश भी दे सकते हैं और राय भी ले सकते हैं।
उदाहरण के तौर पर यह बता सकता है कि ब्लैक होल कैसे बनते हैं या सर्वाधिक लोकप्रिय ऐतिहासिक चरित्र कौन से हैं। आप इसे सोशल मीडिया पोस्ट तैयार करने को भी कह सकते हैं और यह आपकी कंपनी का स्लोगन बनाने में भी मदद कर सकता है। यह आपके अगले कैरियर कदम के बारे में भी सलाह दे सकता है तो कंप्यूटर की प्रोग्रामिंग तक कर सकता है।
इसका प्रयोग करने के लिए किसी प्रकार की तकनीकी दक्षता की आवश्यकता नहीं है क्योंकि यह इंसानी भाषा में दिए गए सामान्य निर्देशों को समझ सकता है। चैटजीपीटी ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का कुछ ऐसा दृश्य साकार किया है जो हमारी कल्पनाओं से बाहर था। लेकिन वास्तव में चैटबॉट पूरी तरह से नई घटना नहीं है।
चैटजीपीटी के आगमन से पहले भी आपने किसी वेबसाइट पर कोई न कोई चैटबॉट अवश्य देखा होगा। वहां वेबपेज के नीचे दाईं ओर एक छोटी सी पॉपअप विंडो उभर आती है जिसमें सवाल होता है, ‘क्या मैं आपकी मदद कर सकता हूं?’ यह एक बॉट है। हालांकि यह सीमित क्षमताओं वाला पारंपरिक चैटबॉट रहा होगा। वह हमारे साथ बातचीत करने, हमारे सवालों को समझने और कुछ हद तक सटीक जानकारी देने में सक्षम था लेकिन इसकी क्षमताएं सीमित थीं।
गूगल के मुख्य कार्यकारी अधिकारी सुंदर पिचाई ने तो सीबीएस टेलीविजन के ‘60 मिनिट्स’ नामक कार्यक्रम में यह कहकर लोगों को भौंचक कर दिया है कि उनकी कंपनी की कृत्रिम बुद्धिमत्ता को बांग्ला भाषा सिखाई नहीं गई थी लेकिन उसने खुद ही यह भाषा सीख ली और अब स्थिति यह है कि वह बांग्ला में जितना चाहे अनुवाद कर सकती है।
यह सिर्फ पाठ आधारित सवालों को समझ सकता था। दूसरी ओर अमेजॉन का एलेक्सा, गूगल असिस्टेंट, ऐप्पल का सिरी और माइक्रोसॉफ्ट का कोटार्ना ध्वनि आधारित चैटबॉट और वर्चुअल सहायक हैं जो एक ही समय पर लाखों उपयोगकर्ताओं के साथ लगभग उसी तरह से बातचीत कर सकते हैं जैसे वे इंसान ही हों।
कल के चैटबॉट एक प्रोग्राम या छोटे सॉफ़्टवेयर हुआ करते थे जो पहले से सहेजे प्रश्नोत्तर, प्रतिक्रियाओं, डेटाबेस और ज्ञानकोश के आधार पर पूर्व-परिभाषित कार्यों का संचालन कर सकते थे। चैटजीपीटी सहित एआई आधारित आधुनिक चैटबॉट्स का उद्भव एक अविश्वसनीय परिवर्तन का संकेत देता है। ये चैटबॉट कृत्रिम बुद्धिमत्ता की शक्तियों को आम आदमी तक पहुंचाने का सबसे सामान्य माध्यम बनकर उभरे हैं और अद्भुत क्षमताओं से युक्त हैं।
वे सामान्य इंसानों वाली बातचीत समझने में भी सक्षम हैं। वे आपसे प्रश्नोत्तर भी कर सकते हैं और संदर्भ को भी समझते हैं कि पहले आपसे क्या बात हुई है। वे नई बातें सीखने में भी सक्षम हैं। हाल ही में गूगल के मुख्य कार्यकारी अधिकारी सुंदर पिचाई ने तो सीबीएस टेलीविजन के ‘60 मिनिट्स’ नामक कार्यक्रम में यह कहकर लोगों को भौंचक कर दिया है कि उनकी कंपनी की कृत्रिम बुद्धिमत्ता को बांग्ला भाषा सिखाई नहीं गई थी लेकिन उसने खुद ही यह भाषा सीख ली और अब स्थिति यह है कि वह बांग्ला में जितना चाहे अनुवाद कर सकती है।
यह भविष्य की अकल्पनीय संभावनाओं की ओर तो संकेत करती ही है, एलन मस्क जैसे आलोचकों की उस धारणा की तरफ भी ध्यान खींचती है कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता बहुत खतरनाक चीज हो सकती है।
(लेखक माइक्रोसॉफ़्ट में निदेशक- भारतीय भाषाएं
और सुगम्यता के पद पर कार्यरत हैं)
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