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बुद्धि के बूते बनाई पहचान

गत दिनों नई दिल्ली में सम्पन्न स्टार्टअप महाकुंभ में देश के विभिन्न क्षेत्रों में अनूठा काम करने वाले प्रतिभाशाली युवा जुटे। इन्होंने श्रम और बुद्धि के बूते लिखी नई कहानी। प्रस्तुत है ऐसे ही कुछ युवाओं की सफलता की गाथा

by अश्वनी मिश्र and अरुण कुमार सिंह
May 16, 2023, 08:17 am IST
in भारत, उत्तर प्रदेश
अनंत वैश्य

अनंत वैश्य

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कानपुर के 24 वर्षीय अनंत वैश्य असाध्य बीमारी के कारण पराश्रित हैं। उन्होंने कंप्यूटर साइंस में बीटेक की उपाधि ली है। वे एक विदेशी कंपनी में नौकरी करते हैं और स्टार्टअप भी चलाते हैं

अंगुली से तेज चलती है नाक

क्या आपने किसी को मोबाइल पर नाक से टाइप करते देखा है, वह भी बहुत तेज? शायद नहीं! लेकिन कानपुर के अनंत वैश्य नाक से ही टाइप करते हैं। उनका दावा है कि वे दुनिया में सबसे तेज नाक से टाइप करने वालों में से एक हैं। वे 150 अक्षर प्रति मिनट लिखते हैं। उनकी नाक ही उंगलियों का काम करती है। अब उन्होंने गिनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड्स में आवेदन किया है, जो अभी लंबित है। अनंत की कहानी इसलिए खास नहीं है, क्योंकि वे सिर्फ नाक से टाइप कर लेते हैं। उनकी कहानी इसलिए खास है क्योंकि वे जन्म से दिव्यांग हैं और इसके बावजूद कई अनूठे काम करके अपने जैसे बच्चों के जीवन को ऊंचा उठाने में जुटे हैं।

दिल्ली में स्टार्टअप महाकुंभ में आए 24 साल के अनंत अपने बारे में बताते हैं कि वे ‘आर्थोपेडिक मल्टीप्लेक्स कंजनाइटा’ नामक बीमारी से पीड़ित हैं। इस बीमारी में शरीर की मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं और हड्डियां किसी भी दिशा में मुड़ सकती हैं। इस बीमारी का कोई ठोस इलाज नहीं है। हां, फिजियोथेरेपी से कुछ आराम जरूर मिलता है। इसके चलते अनंत के हाथ-पैर बिल्कुल काम नहीं करते।

चेहरे पर मंद मुस्कान लिए व्हील चेयर पर बैठकर ही सारे काम करने वाले अनंत का हौसला देखते ही बनता है।

यहां तक कि वे किसी के सहारे के बिना दैनिक कार्य भी नहीं कर सकते। वे बताते हैं, ‘‘जब मेरा जन्म हुआ तो अपने मम्मी-पापा के लिए मैं सामान्य बच्चों की ही तरह था, लेकिन बाहर के लोग मेरी दिव्यांगता को लेकर बात करते रहते थे। इसके बावजूद मेरे माता-पिता विचलित नहीं हुए और उन्होंने दृढ़ता के साथ कहा कि जो भी हो जाए, वे इसी बच्चे को पढ़ा-लिखाकर आगे बढ़ाएंगे। इस कारण मेरे माता-पिता सदैव मेरे भविष्य को लेकर गंभीर रहे। जो पढ़ना चाहता था, वह पढ़ाया।’’ अनंत बताते हैं, ‘‘12वीं की परीक्षा के दौरान ही मैंने तय किया कि मुझे अपने पैरों पर खड़ा होना है।

मैंने टी शर्ट बनाने वाली एक कंपनी में नौकरी की, लेकिन मेरा सपना तो इंजीनियरिंग करने का था। इसलिए मैंने लिखने वाले एक सहायक के माध्यम से जेईई की परीक्षा दी और उसमें सफलता भी मिली। मुझे लखनऊ में बहुत अच्छा कॉलेज मिला, लेकिन वहां रहना मेरे लिए संभव नहीं था।

फिर मैंने दूसरी परीक्षा दी और कानपुर के ही एक कॉलेज में दाखिला लिया। वहीं से मैंने पिछले वर्ष ही कंप्यूटर साइंस एंड इंजीनियरिंग में बीटेक की पढ़ाई पूरी की है। मेरे पिता जी व्यवसायी हैं, लिहाजा मेरी भी इस क्षेत्र में रुचि रही है। इस कारण मैंने 2018 में अपना स्टार्टअप शुरू किया। यह स्टार्टअप चुनाव आयोग की देखरेख में राजनीतिक चंदे पर निगरानी रखता था, लेकिन किसी कारणवश 2020 में उसे बंद कर दिया गया।’’

वे आगे बताते हैं, ‘‘स्टार्टअप के दौरान मेरे मन में एक विचार आया कि मेरे जैसे बहुत से बच्चे हैं, जो शारीरिक अक्षमता के चलते किसी न किसी कारण से पढ़ नहीं पाते। क्यों न ऐसे बच्चों के लिए कुछ काम किया जाए। इसी को ध्यान में रखकर मैंने एक कंपनी बनाई यूफिलिटी प्राइवेट लिमिटेड। इसे बनाने के पीछे मेरा जोर इस बात पर था कि दिव्यांग बच्चों की सामाजिक-शारीरिक समस्याओं का हल आईटी के जरिए निकाला जाए, उनका समाधान किया जाए। मैंने पिछले साल एक एप्लीकेशन ‘द स्पेशल स्कूल’ के नाम से बनाई। यह एप्लीकेशन उन बच्चों की मदद करती है, जो शारीरिक रूप से अक्षम हैं।

अनंत फ्रांस की एक कंपनी में साइबर सुरक्षा इंजीनियर के रूप में काम करते हैं। फिर जो समय मिलता है, उसमें अपने स्टार्टअप के लिए काम करते हैं। अनंत का मुख्य काम अपनी कंपनी में एक तरह से पुलिस का है। वे हंसते हुए कहते हैं, ‘‘मैं वेब सर्विस के तहत अपनी कंपनी का पुलिस हूं। दरअसल, कंपनी के जितने भी कर्मचारी दुनिया में इंटरनेट के माध्यम से कुछ भी क्रिया-कलाप करते हैं, या मेल से फाइल इधर-उधर भेजते हैं, उस सबको मैं ट्रैक करता हूं। इसलिए मैं कहता हूं कि मैं अपनी कंपनी का पुलिस हूं।

हम इसके माध्यम से उन्हें पढ़ाई करवाते हैं। इसे पूरी तरह से एनसीईआरटी के पाठ्यक्रम को ध्यान में रखकर बनाया गया है। जितने भी तरीके की पढ़ाई होती है, हमने उसे खेल, एनिमेशन या अन्य तरीकों में बदल दिया है। इसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) की बहुत ज्यादा मदद ली है। अभी हम सिर्फ कक्षा छह तक की पढ़ाई की व्यवस्था कर पाए हैं, लेकिन मेरा सपना है कि आगे चलकर उच्च शिक्षा में डॉक्टर, इंजीनियर की पढ़ाई भी इसी एप्लीकेशन के माध्यम से उपलब्ध हो। छह महीने पहले शुरू की इस एप्लीकेशन में 250 बच्चे हमारे साथ जुड़ गए हैं।’’

यह एप्लीकेशन अभी पूरी तरह मुफ्त है, लेकिन अनंत कहते हैं कि इस एप्लीकेशन को चलाने के लिए आगे चलकर कुछ शुल्क लिया जाएगा।

इन दिनों अनंत फ्रांस की एक कंपनी में साइबर सुरक्षा इंजीनियर के रूप में काम करते हैं। फिर जो समय मिलता है, उसमें अपने स्टार्टअप के लिए काम करते हैं। अनंत का मुख्य काम अपनी कंपनी में एक तरह से पुलिस का है। वे हंसते हुए कहते हैं, ‘‘मैं वेब सर्विस के तहत अपनी कंपनी का पुलिस हूं। दरअसल, कंपनी के जितने भी कर्मचारी दुनिया में इंटरनेट के माध्यम से कुछ भी क्रिया-कलाप करते हैं, या मेल से फाइल इधर-उधर भेजते हैं, उस सबको मैं ट्रैक करता हूं। इसलिए मैं कहता हूं कि मैं अपनी कंपनी का पुलिस हूं। मुुझे लगभग 8,00,000 रुपये सालाना मिलते हैं।’’ ये सब काम करने लायक ऊर्जा कहां से मिलती है?

इस पर वे कहते हैं, ‘‘जब मैं देखता हूं कि हर तरीके से ठीक लोग भी थोड़ी सी समस्या पर विचलित हो जाते हैं। ऐसा लगता है कि उनसे ज्यादा इस दुनिया में कोई परेशान नहीं है। बस, यहीं से मुझे ताकत मिलती है और मैं काम में जुट जाता हूं। मैं सबसे ज्यादा आटो से यात्रा करता हूं। इस दौरान कई आटो वाले कहते हैं, भाई आपको तो बहुत दिक्कत होती होगी चलने में। तो मैं कहता हूं भाई आप दो पैरों से चल लेते हो फिर भी परेशानी में रहते हो। लेकिन मुझे तो ऐसी स्थिति में भी सब कुछ मिल जाता है। इस पर वे लोग हंसने लगते हैं। इसलिए सच कहूं तो मुझे खुद से प्रेरणा मिलती है। मेरा एक ही लक्ष्य रहता है कि मैं अपने काम से मां-पापा का नाम रोशन करूं, क्योंकि आज जो कुछ भी कर पा रहा हूं, उनकी ही बदौलत कर रहा हूं।’’

अरुण कुमार सिंह
समाचार संपादक at पाञ्चजन्य | Website

समाचार संपादक, पाञ्चजन्य | अरुण कुमार सिंह लगभग 25 वर्ष से पत्रकारिता में हैं। वर्तमान में साप्ताहिक पाञ्चजन्य के समाचार संपादक हैं।

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