इमरान खान को गिरफ्तार कर लिया गया है। यानी पाकिस्तान के सबसे बड़े सियासी दल के नेता को जेल में डाल दिया गया है। उन पर कुछ समय पहले जानलेवा हमला हो चुका है। प्रधानमंत्री पद से हटने के बाद वे लगभग नाम-निहाद सुरक्षा के साथ जनता के बीच जा रहे थे। यकीनन उनका इस तरह से भीड़ को चीरते हुये दायें-बायें घूमना भय पैदा कर रहा था। उनके समर्थक उनके करीब आने की हरचंद कोशिशें करते हैं। बेशक, उस वक्त कुछ भी हो सकता है। कौन जाने उनमें कोई सिरफिरा भी हो। फिलहाल पाकिस्तान में सरकार नाम की कोई चीज नहीं है। इसलिए लोकप्रिय इमरान खान के दुश्मनों के लिए यह सुनहरा मौका है कि वे उन पर हमला बोलें। यह हो चुका है। अब उन्हें गिरफ्तार भी कर लिया गया है। वे खुद भी बार-बार कहते रहे हैं कि पर उनकी जान को खतरा है।
इमरान खान पर हमले की गुत्थी भी कभी नहीं सुलझेगी। यह तो मान लीजिए। वहां पर पहले भी दो प्रधानमंत्री नवाबजादा लियाकत अली खान तथा बेनजीर भुट्टो के कत्ल की गुत्थी अनसुलझी ही रही। सबको पता है कि इमरान खान लगातार सेना के रोल पर बेखौफ होकर बोल रहे हैं। पाकिस्तान में सेना की इमेज तार-तार हो चुकी है। उसके करप्शन से मुल्क वाकिफ हो चुका है। इन सब कारणों के चलते सेना के बड़ी मुंछों और मोटी तोंद वाले अफसर परेशान हैं। इमरान खान पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई को भी नहीं छोड़ रहे हैं। मुमकिन है कि सेना और आईएसआई इमरान खान के खिलाफ कोई गहरी साजिश रच ही रहे हों। हाल ही में पाकिस्तान के एक पत्रकार अरशद शरीफ की केन्या में हुई हत्या में आईएसआई को दोषी माना जा रहा है। अरशद शरीफ लगातार इमरान खान के हक में तथा सेना के खिलाफ लिख-बोल रहे थे।
कत्ल दो प्रधानमंत्रियों का
पाकिस्तान पर नजर रखने जानते हैं कि वहां के पहले प्रधानमंत्री साहिबजादा लियाकत अली खान की 16 अक्तूबर, 1951 को रावलपिंडी में उस वक्त हत्या कर दी गई थी जब वे एक सभा को संबोधित करने ही वाले थे। उन्होंने मंच पर आकर बोलना शुरू ही किया था कि उनके भाषण को सुनने आया एक शख्स अपनी जगह से उठा और उसने लियाकत अली खान को गोली मार दी। यह घटना रावलपिंडी के कंपनी बाग में हुई थी। उसे तब ईस्ट इंडिया कंपनी बाग भी कहा जाता था। हत्यारे का नाम सैद अकबर खान था। वह अफगान मूल का था। उसे भी वहां ही सुरक्षा कर्मियों ने मार डाला। इसलिए पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री के कत्ल की गुत्थी कभी सुलझी ही नहीं। हालांकि लियाकत अली खान के कत्ल में सेना का रोल भी माना जाता है। इसकी वजह यह है कि हत्यारा वहां पर बैठा था जहां पर क्राइम इनवेस्टिगेशन डिपार्टमेंट (सीआईडी) के अफसरों को बैठना था। वह वहां कैसे बैठा, किसने बिठाया? कहने वाले यह भी कहते हैं कि जिन्होंने हत्यारों को मारा था उन्हें आगे चलकर सैनिक तानाशाह अयूब खान ने सम्मानित भी किया। जिन पुलिस वालों ने प्रधानमंत्री की हत्या की गुत्थी को सुलझने नहीं दिया उन्हें सम्मानित करने मतलब क्या हो सकता है? अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में पढ़े अयूब खान पर मोहम्मद अली जिन्ना की बहन फातिमा जिन्ना को 1967 में भी मरवाने के आरोप लगे थे। साहबजादा लियाकत अली खान 1946 में पंडित जवाहर लाल नेहरु के नेतृत्व में बनी अंतरिम सरकार के वित्त मंत्री भी थे। वे देश के बंटवारे के बाद पाकिस्तान चले गए थे। लियाकत अली खान का दिल्ली, यूपी तथा हरियाणा स गहरा रिश्ता था। वे राजधानी के एंग्लो एरेबिक स्कूल की प्रबंध समिति के भी प्रमुख रहे। वैसे उनकी पैतृक संपत्ति करनाल और मुजफ्फरनगर में भी थी। वे मुजफ्फरनगर से यूपी एसेंबली के लिए चुनाव भी लड़ते थे। लियाकत अली खान की पत्नी गुल-ए-राना दिल्ली यूनिवर्सिटी के आईपी कॉलेज में अंग्रेजी की टीचर थीं। पंडित नेहरू के नेतृत्व में 1946 में बनी अंतरिम सरकार में लियाकत अली खान वित्त मंत्री थे। उन्होंने 2 फरवरी,1946 को अंतरिम बजट पेश किया। वे बजट पेपर अपने हार्डिंग लेन (अब तिलक मार्ग) के घर से संसद भवन लेकर गए थे। लियाकत खान पर हिन्दू विरोधी बजट पेश करने के आरोप लगे थे। उन्होंने व्यापारियों पर एक लाख रुपये के कुल मुनाफे पर 25 प्रतिशत कर लगाने का प्रस्ताव रखा। कॉरपोरेट टैक्स को दो गुना कर दिया। चाय के निर्यात पर भी एक्सपोर्ट ड्यूटी को दो गुना कर दिया। गृह मंत्री सरदार पटेल की राय थी कि लिय़ाकत अली खान हिन्दू व्यापारियों जैसे घनश्यामदास बिड़ला,जमनालाल बजाज और वालचंद के खिलाफ सोची-समझी रणनीति के तहत कार्रवाई कर रहे हैं। सरदार पटेल और बाबू जगजीवन राम भी उस अंतरिम सरकार में थे। दुर्भाग्यवश लियाकत अली खान के बजटीय प्रस्तावों के बाद देश के विभाजन को टालने की सभी संभावनाएं खत्म हो गईं।
खैर, लियाकत अली खान के कत्ल के बाद बेनज़ीर भुट्टो की हत्या रावलपिंडी में 27 दिसंबर, 2007 को हुई। बेनजीर भुट्टो पर हमला करने वाले आत्मघाती हमलावर की पहचान सईद बिलाल के रूप में हुई थी। लेकिन, उस केस का सच भी कभी सामने नहीं आया। हालांकि आरोप लगे थे तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ बेनजीर भुट्टो को मरवाना चाहते थे।
हां, इमरान खान एरोगेंट हैं। पर पाकिस्तान का नौजवान उन्हें इसलिए पसंद करता है क्योंकि उनके ऊपर अठन्नी करप्श्न करने के भी आरोप नहीं हैं। ये उनकी ताकत है। उनके सामने शरीफ बंधु, आसिफ अली जरदारी और सेना हैं। ये सब करप्शन में ऊपर से नीचे तक डूबे हुए हैं। इन सबसे एक साथ इमरान लड़ रहे हैं। जाहिर है, उनकी जान को खतरा है। वह सुरक्षित नहीं हैं। इमरान खान को बिना ठोस सुरक्षा के जलसों में जाने से बचना होगा। कौन जाने कि उस भीड़ में सैद अकबर खान या सईद बिलाल जैसा हत्यारे भी हो। इन्होंने ही तो लियाकत अली खान तथा बेनजीर भुट्टो को मारा था।
कहते ही हैं कि पड़ोसी के घर में कलह-क्लेश का असर आसपास रहने वालों पर भी पड़ता है। पाकिस्तान फिलहाल घोर राजनीतिक-आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है। वहां पर जनता कष्ट में है। सरकार नाम की कोई चीज है नहीं। जो सरकार पर काबिज हैं उन पर अवाम का भरोसा नहीं है। इमरान खान को गिरफ्तार करने से पाकिस्तान में अराजकता और बढ़ने की आशंका है। यानी भारत को पड़ोस में हो रही हलचल पर नजर रखनी होगी क्यों वहां अराजकता बढ़ेगी।
(पूर्व संपादक सोमाया पब्लिकेशंस, लेखक गांधीज दिल्ली)
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