खलीफा ए पाकिस्तान याने फौज एक तरफ है, और दूसरी तरफ “रियासत ए मदीना” का नारा लगाते, फौज के कंधे पर बैठकर कभी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने इमरान खान। खलीफा ने प्यादे को कंधे से उतार दिया है, और अब अपने बूट से उसे कुचलना चाहता है। पाकिस्तान सरकार खलीफा का हुक्म बजा रही है। दृश्य कुछ ऐसे शुरू हुआ।
पाकिस्तान का पूर्व प्रधानमंत्री इस्लामाबाद उच्च न्यायालय के भवन में बैठा है। आरोप हैं, पेशी पर आया है। तभी पाक फौज के रेंजर्स खिड़कियाँ तोड़कर आतंकित करने वाले अंदाज़ में अंदर घुस आते हैं। इमरान खान के सुरक्षा कमांडो लहुलुहान होने तक पीटे जाते हैं। इमरान के वकील पीटे जाते हैं। 70 साल के इमरान खान को मारा जाता है। सर पर चोट आती है। पहले से जख्मी पैर से खून बहने लगता है। इमरान के वकील ने अदालत में कहा कि नैब की हिरासत में इमरान की जान को खतरा है। हत्या हो सकती है। गंभीर चोटें आई हैं। वो लगभग बेसुध थे। प्रहसन शुरू हो जाता है। इमरान को गिरफ्तार करके पाक खुफिया एजेंसी, बदनाम आईएसआई के कार्यालय में रखा गया। बताया गया कि उन्हें अल कादिर ट्रस्ट केस में नैब (एनएबी) ने गिरफ्तार किया है।
पाकिस्तानी पत्रकार कह रहे हैं कि गिरफ्तारी की योजना तो महीनों पुरानी है, गिरफ्तार करने का तरीका खोजा जा रहा था। इमरान भी लगातार बयान दे रहे थे कि किसी मामूली सी बात की आड़ लेकर उनकी गिरफ्तारी हो सकती है। उनकी जान को ख़तरा हो सकता है। जिस तरह से पूरे पाकिस्तान में इमरान समर्थक एक साथ सड़कों पर उतरे, उससे पता चलता है कि इमरान की आशंकित पार्टी, पीटीआई ने अपने काडर को सचेत करके रखा था।
शहर दर शहर प्रदर्शन हो रहे हैं। इमरान की जान को खतरे की अफवाहें सुनकर उनके समर्थक उग्र प्रदर्शन कर, पाकिस्तानी एस्टब्लिशमेंट पर दबाव बना रहे हैं। रावलपिंडी में फौज के मुख्यालय पर उग्र भीड़ आ धमकी। इमरान समर्थक, लाहौर के कोर कमांडर के घर में गुस गए और तोड़फोड़ की। कोर कमांडर पेशावर के घर के बाहर प्रदर्शन हुआ। खैबर पख्तूनख्वा जो इमरान का गढ़ है, और तालिबान की पनाहगाह, में पाकिस्तान तहरीक ए इंसाफ के समर्थकों ने विशाल जंगी रैली निकाली। पेशावर विश्वविद्यालय में इमरान समर्थकों ने उग्र प्रदर्शन किया। कराची, इस्लामाबाद, रावलपिंडी , सब तरफ अफरातफरी मच गई। इमरान ने जिहाद का वास्ता दिया है, ला इलाहा इल्लल्लाह, और नारा ए तकबीर के नारे गूँज रहे हैं।
फौज ने इमरान से पूरी तरह निपटने का मन बना लिया है। इमरान खान ज्यादा मुखर हो रहे थे। उन्होंने एक शीर्ष फौजी का नाम लेकर आरोप लगाने शुरू कर दिए थे। इमरान एक कोर कमांडर को निशाने पर लिए हैं, ये फौज को सहन नहीं हुआ। फौज के मीडिया संस्थान आइएस पीआर ने बयान दिया कि एक अफसर पर हमला, पूरी फौज पर हमला है। योजना तैयार थी।
पाकिस्तान के गृहमंत्री राणा सनाउल्लाह ने पत्रकार वार्ता की और इमरान पर अंगार बरसाए, उन्होंने कहा-
“हमने इमरान खान नियाज़ी को चुनौती दी थी कि तुमने अल कादिर ट्रस्ट में जो भ्रष्टाचार किया है उसका जवाब दो। ये ट्रस्ट रिश्वत को छिपाने के लिए बनाया गया, इसमें दो ही ट्रस्टी हैं। इमरान खान नियाज़ी और उसकी अहिलिया मोहतरमा (पत्नी) …240 कनाल जमीन, जो बनीगाला में है, 5 से 7 अरब रुपये की है।”
प्रदर्शनों का अंदेशा फौज को पहले से था, इसलिए इमरान के समर्थकों में खौफ फैलाने के लिए हिंसक अंदाज में गिरफ्तारी की गई, और मीडिया को दिखाते हुए इमरान को गर्दन पकड़कर गाड़ी में बैठाया गया। 24 घंटे बीतते-बीतते पीटीआई के नेताओं की धरपकड़ शुरू हुई। अदालत में याचिका लगाने पहुँचे पीटीआई नेताओं को भी धर लिया गया।
फौज का संदेश –
इमरान को फौज के खिलाफ जाने की सजा मिल रही है। वो नवाज़ शरीफ का उदाहरण भूल गए। नवाज़ शरीफ़ को भी भ्रष्टाचार के ही मामले में निपटाया गया था। मामला भ्रष्टाचार का न होकर तकनीकी था। नवाज़ ने फौज की बनाई हद से ज़रा सा पाँव बाहर निकालने की कोशिश की थी। तो, कोर कमांडर बैठक हुई, जिसमें हाथ के बाहर जा चुके इमरान की गिरफ्तारी का आदेश निकालने का आदेश निकला। आदेश निकलवाया गया आईजी पुलिस के ऑफिस से, गिरफ्तार किया पाक रेंजर्स ने, जो पाक फौज के मातहत आते हैं। इमरान को इस्लामाबाद से उठाया रावलपिंडी ले गए, जहाँ पाक फौज का मुख्यालय है।
सब जगह सुर्खियाँ बनीं कि इमरान को आर्थिक अपराध शाखा नैब ने गिरफ्तार किया है। नैब का मुखिया भी लेफ्टिनेंट के ओहदे वाला एक फौजी है, नैब याने नेशनल अकाउंटेबिलिटी ब्यूरो, कहने को स्वायत्त संस्था है लेकिन अकाउंटेबल (उत्तरदायी) फौज के प्रति है। इसे एक फौजी, परवेज़ मुशर्रफ ने बनाया था, नाम रखा गया एहतेसाब सेल। इसका मुखिया या तो कोई फौजी होता है या फौज के हिसाब से चलने वाले न्यायाधीश। पाकिस्तान के न्यायालय ही इस संगठन की कार्यशैली को तकनीकी भ्रष्टाचार की संज्ञा दे चुके हैं। प्रभावशाली आरोपियों को फरार करवाने के लिए अदालतें इसे फटकारती रही हैं। लंदन कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन ने भी नैब को आर्थिक साजिश का जिम्मेदार माना है।
नया मोहरा, पुरानी कहानी –
पाकिस्तान के राजनीतिक खानदानों के सामने इमरान राजनीति में काफी नए हैं। इमरान पहले फौज के समर्थक नहीं थे। फौज को नया, प्रभावशाली चेहरा चाहिए था। फौज ने इमरान पर हाथ रखा, और ये पुराना प्लेब्वॉय, पाकिस्तानी सियासत के रंग में ऐसा रंगा कि उसे सूटबूट वाला तालिबान कहा जाने लगा। फौज ने गोद में झुलाया तो इमरान को भी बहुत मज़ा आया। फौज को भुट्टो और शरीफ खानदानों की मुश्कें कसने के लिए सत्ता परिवर्तन की ज़रूरत थी। आम चुनाव हुए। हर बूथ पर दो फौजी तैनात किए गए। उन्हें विशेष निर्देश थे। इस बूथ कैप्चरिंग की बदौलत इमरान सत्तासीन होने लायक बने। सनद रहे कि फौज की इस बूथ कैप्चरिंग के खर्चे का पर्चा सरकार के नाम फाड़ा गया। फौज ने इस तैनाती की मोटी रकम सरकारी खजाने से वसूली। इमरान वज़ीर हो गए, लेकिन सत्ता में आकर समझ आया कि क्रिकेट खेलना और रैलियां करना अलग बात है और सरकार चलाना अलग। तिस पर सख्त सास की भूमिका में पिंडी वाले। संभला उनसे कुछ नहीं, उधर उनकी नई-पुरानी जिंदगी की बदनामियाँ बार-बार सर उठाती रहीं।
अर्थव्यवस्था की समझ न इमरान को है न फौज को। इसलिए कुछ समय सब ठीक चला। इमरान पिट्ठू बनकर खुश रहे। फौज को दिखाने के लिए बीच-बीच में भारत को भला-बुरा कह देते।
फिर वजीर ने खुद को सचमुच वजीर समझना शुरू कर दिया। फौज ने हनक उतारने में देरी नहीं की। इमरान तब से मौके की तलाश में थे। उन्हें अपनी क्रिकेटर वाली लोकप्रियता का बड़ा भरोसा है। उनकी दशकों पुरानी अंतर्राष्ट्रीय पहचान भी है, इसलिए फौज भी इमरान की ओर से सशंकित रहती आई है।
भारतीय मीडिया इस समय एक सवाल पूछने लगता है कि क्या तख्तापलट होगा? वास्तव फौज को तख्ता पलटने की ज़रूरत ही नहीं है। पर्दे के पीछे से खाकी अपने मतलब के सारे काम चला रही है। इस झंझट के समय तो वो तख़्त बिलकुल नहीं चाहते जब पाकिस्तान में आटे के लिए गोलियां चल रही हैं, सब्जी, फल, दूध के दाम सचमुच आसमान छू रहे हैं। पाकिस्तानी रुपया लुढ़कते हुए ग्वादर के खारे पानी में डुबकी लगा रहा है, और चीन सीपैक पर लाल हो रहा है। एफएटीएफ में जिहादी फंडिंग पर पाकिस्तान की खिंचाई हो रही है। पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था में कोई व्यवस्था नहीं बची है, अर्थव्यवस्था के नाम पर सिर्फ अगला कर्ज़ जुटाने का जुगाड़ चल रहा है ताकि कर्जों के पहाड़ का, इस तिमाही या छह माही का ब्याज चुकाया जा सके।
मुसीबतें इतनी ही नहीं है. रावलपिंडी वाले खुद को जिनका आका, माई बाप समझते थे, वो तालिबान जब चाहे, पाकिस्तानी फौजियों पर गोलियां बरसा देते हैं, “इस्लामी बिरादरान मुल्क” मोदी के दोस्त हो गए हैं। उँगली दिखाओ तो भारत घूँसा मार रहा है। कश्मीर से 370 खत्म हो गई। पाक परस्त हुर्रियत के अलगाववादी जेल में हताश पड़े हैं और कोई चूं नहीं बोलता, न कश्मीर में, न दुनिया में। ऐसे में गाली खाने के लिए कोई सामने होना चाहिए। पहले इमरान थे, अब शाहबाज शरीफ हैं।
फौज को सत्ता पलटने की ज़रूरत शायद तब पड़े जब मुस्लिम लीग पाकिस्तान और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी भी बगावत पर उतर आएँ, पर वो तो कुर्सी पर बैठे हैं और अपनी हस्ती जानते हैं। फौज इमरान की गर्दन पर खंजर रखकर भुट्टो, ज़रदारियों, शरीफों की आँखों में देखती है, उनकी आँखों में खौफ देखकर मुस्कुराती है।
फौज की पाकिस्तानी जनता के दिमाग पर पकड़ भी है। उसकी नज़र में वो इस्लाम का दिफा करने वाले मुजाहिदीन हैं, जिनकी बहादुरी के पाकिस्तानी ब्रांड किस्से सुन-सुनकर पाकिस्तान की पीढ़ियां जवान और बूढ़ी हुई हैं कि कैसे 48 में फौज ने कश्मीर (पीओजेके) को आज़ाद करवाया, और 65 में आधा हिंदुस्तान दबा लिया था, कैसे पाक नौसेना के जंगी जहाजों ने “द्वारिका का किला” तबाह किया, कैसे इज़राइल को मार लगाई, मुसलमानों के लिए एटम बम बनाया, 71 में बंगालियों ने गद्दारी कर दी, नहीं तो….”
निपटाने की रणनीति –
फौज की रणनीति है कि भीड़ को कम से कम बल प्रयोग करके शांत किया जाए, और उसके नेताओं से सख्ती से निपटा जाए। पाक फौज ने तैयारी कर रखी होगी। ये उनका पुराना रियाज़ है। उन्होंने बांग्लादेश में जो किया, जो 70 सालों से बलूचिस्तान में कर रहे हैं, उसके सामने ये कुछ भी नहीं है। कुछ लोगों की सजा को उदाहरण बनाकर प्रस्तुत किया जाएगा, कुछ लोग गायब कर दिए जाएंगे। दोनों तरफ नारा ए तकबीर की जज़्बाती अपील हैं। जो भारी पड़ेगा पाकिस्तानी आवाम उसे नारा ए तकबीर के नाम पर स्वीकार कर लेगा। सो, फौज निश्चिंत है। इस समय पाकिस्तान के दूसरे राजनीतिज्ञ वही कर रहे हैं, जो हमेशा करते आए हैं। एक बकरा हलाल हो रहा है दूसरे तमाशबीन बने हैं।
सदा से पाकिस्तानी फौज बैरक से बाहर आती रही है, पर वो हमेशा सरकार का तख्तापलट करने बाहर निकली। पहली बार वो एक विपक्षी नेता और उसकी पार्टी को दुरुस्त करने बाहर निकली है। इमरान की पिटाई सबके लिए चेतावनी है। सरकार, नेता, अदालत, मीडिया, सभी के लिए रावलपिंडी का संदेश है- हद में रहो। इमरान को अदालत परिसर से उठाया गया। मीडिया की परवाह नहीं। सरकार की ज़रूरत नहीं। ये पाकिस्तान है. यहाँ गलियारों में फुसफुसाया जाता है ऊपर अल्लाह, नीचे फौज। फौज इसे बार-बार, सबको चेतावनी देकर, साबित करती है। पहली बार पाक फौज मुख्यालय पर हमला हुआ है। कोर कमांडर का बंगला फूँका गया है। सबक तो सिखाया जाएगा। तख्ता पलट की भी खलीफा को फ़िक्र नहीं। फौज के कुछ ख़ास ब्रिगेड और डिवीजन केवल इसी काम के लिए हमेशा मुस्तैद रहते हैं।
(लेखक अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार और वरिष्ठ स्तंभकार हैं)
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