सूडान में फंसे भारतीयों को सुरक्षित निकालने के विशेष मिशन को संचालित किया गया। इस मिशन को ‘ऑपरेशन देवी शक्ति’ का नाम स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिया था। ‘मां दुर्गा’ राक्षसों से निर्दोषों की रक्षा करती हैं। इस मिशन का लक्ष्य बेकसूर नागरिकों को आतंकियों की हिंसा से हिफाजत करना था।
सूडान में गृहयुद्ध के कारण वहां फंसे भारतीयों को बाहर निकालकर भारत लाने के लिए चलाए गए ‘ऑपरेशन कावेरी’ ने भारत की कार्यकुशलता का परिचय दिया है और प्रतिष्ठा को बढ़ाया है। साथ ही भारत के मानवीय पक्ष को और भारतीय सेना की सामाजिक भूमिका को उजागर किया है। यह पहला अभियान नहीं है। यह सैन्यशक्ति सहायता के अवसरों पर बार-बार खरी उतरी है। मानवीय संकट आने पर जब भी जरूरत पड़ी, भारत सबसे आगे खड़ा नजर आया है।
हिंसा भड़कने के कारण सूडान में गृहयुद्ध की स्थिति है। ऐसे में भारत की त्वरित प्रतिक्रिया की तारीफ करनी होगी। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, सूडान में रह रहे भारतीयों की संख्या लगभग 4,000 है, जिनमें 1,200 ऐसे हैं जो दशकों पहले वहां जाकर बस गये थे। नागरिकों के फंसने की खबरें जब तक देश में पहुंची, तब तक भारतीय नौसेना के पोत सूडान के तट पर और वायुसेना के सी-130जे सुपर हर्क्युलिस विमान सऊदी अरब के जेद्दाह पहुंच चुके थे। इन विमानों ने सूडान के हवाई अड्डों तक जाकर वहां से नागरिकों को बाहर निकाला। युद्ध क्षेत्र से भारत अपने नागरिकों को बसों की मदद से बाहर निकालकर पोर्ट सूडान पहुंचा रहा है। वहां से भारतीय वायु सेना के परिवहन विमान और नौसेना के पोत उन्हें सऊदी अरब के जेद्दाह तक पहुंचाते हैं।
भारत ने जेद्दाह में नियंत्रण कक्ष स्थापित किया है। इस अभियान में भारतीय नौसेना के जहाज आईएनएस सुमेधा, तेग और तरकश भी शामिल हैं। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक यह अभियान जारी है और तीन हजार से ज्यादा भारतीयों की स्वदेश वापसी हो चुकी है। काफी लोग अपने घरों तक पहुंच चुके हैं या पहुंचने वाले हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक निवासी ने मीडिया को बताया कि वहां बिजली और इंटरनेट की व्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त हो चुकी है। खाने के लाले पड़ गए थे। रास्ते में जहां दिक्कतें हुईं, सिर्फ मोदी और इंडिया कहना ही काफी होता था।
पहले भी चल चुके हैं ऑपरेशन
पिछले साल फरवरी में यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद भारत सरकार के सामने भारतीय छात्रों को बचाना और वहां से सुरक्षित वापस लाना बड़ी चुनौती थी। सरकार ने इसके लिए ‘ऑपरेशन गंगा’ चलाया। 26 फरवरी से 11 मार्च, 2022 तक उसे चलाया गया। हजारों छात्र यूक्रेन से रोमानिया, हंगरी, पोलैंड, मोल्दोवा और स्लोवाकिया जैसे पड़ोसी देशों के रास्ते भारत लौटे थे। संकट के समय 20,000 से अधिक भारतीय यूक्रेन में थे, जिनमें से 18,000 छात्र थे।
ऐसी ही स्थिति अगस्त, 2021 में अफगानिस्तान में पैदा हो गई थी, जब काबुल पर तालिबान का कब्जा हुआ था। लाखों लोग देश छोड़कर भागे। जब तक नागरिक उड्डयन सेवाएं चल रही थीं, लोगों का आवागमन विमान सेवाओं के माध्यम से हो रहा था, पर 15 अगस्त के बाद नागरिक विमान सेवाएं अचानक बंद कर दी गईं। अफगानिस्तान के सिख और हिन्दू नागरिकों को तत्काल बाहर निकालने की जरूरत थी। खासतौर से तीन गुरुद्वारों से पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब को भारत लाना था, क्योंकि पता नहीं था कि तालिबानी आक्रांताओं का बर्ताव कैसा होगा।
ऐसे में भारतीय वायुसेना की मदद ली गई। वहां फंसे भारतीयों को सुरक्षित निकालने के विशेष मिशन को संचालित किया गया। इस मिशन को ‘ऑपरेशन देवी शक्ति’ का नाम स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिया था। ‘मां दुर्गा’ राक्षसों से निर्दोषों की रक्षा करती हैं। इस मिशन का लक्ष्य बेकसूर नागरिकों को आतंकियों की हिंसा से हिफाजत करना था।
जून-जुलाई 2016 में इराक में इस्लामिक स्टेट ने भयंकर खून-खराबा शुरू कर दिया। उस मौके पर टिकरित के एक अस्पताल में 46 भारतीय नर्सें घिर गईं। उन्हें बाहर निकालने की जबर्दस्त चुनौती थी। राजनयिक स्रोतों की सहायता से उन्हें सफलतापूर्वक सुरक्षित बाहर निकाला गया। 2010 और फिर 2011 में लीबिया में फंसे भारतीयों को नौसेना और एयर इंडिया की मदद से निकाला गया। 2011 में ही काहिरा से बड़ी संख्या में भारतीयों को निकाला गया। सितम्बर 2011 में सोमालिया, केन्या और जिबूती में पड़े अकाल का सामना करने के लिए विश्व खाद्य कार्यक्रम के तहत भारतीय नौसेना ने औषधियां और अन्य राहत सामग्री पहुंचाई थी। जनवरी 2012 में लीबिया में राहत पहुंचाई।
2014 के बाद विशेष ध्यान
भारत यह काम पहले से करता रहा है, पर 2014 के बाद से इन कार्यक्रमों पर विशेष ध्यान दिया गया है। 2017 के बाद से नौसेना की ऑपरेशनल रणनीति में काफी बदलाव आया है। अब भारतीय पोत इस क्षेत्र में हर समय गश्त लगाते हैं, इसलिए जरूरत पड़ने पर वे सबसे पहले पहुंचते हैं। हिंद महासागर के तटवर्ती देशों पर पड़ने वाली किसी भी आपदा में सबसे पहले भारत मददगार के रूप में आगे आता है।
ऑपरेशन राहत : अप्रैल 2015 में यमन के गृहयुद्ध और सऊदी अरब की सैनिक कार्रवाई के कारण खतरनाक स्थिति पैदा हो गई थी। उस मौके पर भारतीय नौसेना, वायुसेना और एयर इंडिया ने मिलकर ‘ऑपरेशन राहत’ का संचालन किया। इसमें 6,710 से ज्यादा लोगों को निकाला गया, जिनमें 41 देशों के नागरिक भी थे। 25 अप्रैल, 2015 को नेपाल में आए भूकम्प में आठ हजार से ज्यादा लोगों की जान चली गई। वह भयानक आपदा थी, जिसमें भारत ने आगे बढ़कर मदद की। भारत के राष्ट्रीय आपदा सहायता बल (एनडीआरएफ) ने जितनी तेजी से मदद पहुंचाई गई, वह अपने आप में अलग कहानी है। चालीस दिन तक चला वह ‘ऑपरेशन मैत्री।’ उसे 26 अप्रैल, 2015 को राहत और बचाव के लिए भारत के गोरखा रेजिमेंट ने शुरू किया और इसमें भारतीय सेना के नेपाल में स्थित पूर्व सैनिकों को भी शामिल किया गया। इसी तरह मार्च 2016 में जब बेल्जियम के ब्रसेल्स हवाई अड्डे पर विस्फोट हुए थे, तब भारत ने अपने नागरिकों को बचाकर निकाला था।
वंदे भारत मिशन : 2020 में कोरोना वायरस के कारण चीन में फंसे भारतीयों को निकालने के साथ-साथ भारत ने मित्र देशों के नागरिकों को भी निकालने की पेशकश की थी। भारत ने ‘वंदे भारत मिशन’ चलाया और दुनिया के करीब 100 देशों में फंसे 70 लाख से ज्यादा भारतीयों को स्वदेश पहुंचाया। इस मिशन में भारतीय विमानों ने 88,000 से ज्यादा उड़ानें भरीं।
अनेक भारतीय नागरिकों को चीन के वुहान शहर से निकाला गया, जो महामारी का केंद्र-बिन्दु था। इनमें मालदीव, म्यांमार, बांग्लादेश, चीन, अमेरिका, मैडागास्कर, नेपाल, दक्षिण अफ्रीका और श्रीलंका जैसे देशों के नागरिक भी शामिल थे। चीन के अलावा भारतीय विमान ईरान, इटली और जापान जैसे देशों से हजारों भारतीयों को निकाल कर लाए। यह मिशन बेहद मुश्किल था, क्योंकि विमान-संचालन करने वालों के संक्रमित होने का खतरा था। बहुत से पायलट और सहायक कर्मी संक्रमित भी हुए और उनकी जान भी गई।
सबसे पहले भारत
मार्च 2019 में मोजाम्बिक में तूफान ‘इदाइ’ के कारण काफी लोगों की मौत हुई थी। तमाम लोग बेघरबार हो गए। इस तूफान से मलावी और जिम्बाब्वे तक पर असर पड़ा था। नौसेना के तीन पोत आईएनएस सुजाता, शार्दूल और सारथी उस क्षेत्र में सक्रिय थे। उन्होंने फौरन पीड़ित क्षेत्र में पहुंचकर सहायता प्रदान की। लोगों के लिए भोजन, औषधियों और वस्त्रों की व्यवस्था की। सन 2016 में मोजाम्बिक के अकाल के समय हमारे पोतों ने गेहूं पहुंचाया। 2019 में इंडोनेशिया में सुलावेसी द्वीप पर उच्च तीव्रता का भूकंप आया, तब भारतीय नौसेना ने ‘ऑपरेशन समुद्र मैत्री’ के तहत तत्काल सहायता पहुंचाई।
जुलाई 2018 में थाईलैंड में थैल लुआंग गुफा में अंडर-16 फुटबाल टीम के 12 बच्चे और कोच के फंसने के बाद बेचैनी फैल गई। जोखिम भरे राहत और बचाव अभियान में ब्रिटेन, फ्रांस, जापान, अमेरिका समेत तमाम देशों ने अपने विशेषज्ञ भेजे, पर इनसे कोई बात नहीं बनी तो थाईलैंड की सरकार ने भारत सरकार से मदद की गुहार की। भारत सरकार के आदेश पर महाराष्ट्र के सांगली जिले में स्थित किर्लोस्कर समूह की कंपनी से एक विशेष हैवी ड्यूटी पम्प भेजा गया था। इसके पहुंचने के बाद, गुफा में पानी कम हुआ। पानी कम होने के बाद ही गोताखोरों का काम आसान हुआ और तीन दिन के कठिन ऑपरेशन के बाद सभी बच्चों और उनके कोच को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया।
दिसंबर 2014 में मालदीव का वॉटर प्लांट जल गया और पूरे देश में पीने के पानी की किल्लत हो गई। आपातकाल की घोषणा कर दी गई। तब भारत ने त्वरित फैसला लिया। वायुसेना के पांच विमानों और नौसेना के पोतों के जरिए पीने का पानी पहुंचाया गया। नवम्बर 2017 में श्रीलंका में पेट्रोल और डीजल का संकट पैदा हो गया। राष्ट्रपति मैत्रीपाल सिरीसेना के साथ प्रधानमंत्री मोदी की टेलीफोन पर हुई बातचीत के बाद मदद भेजी गई।
समुद्र-सेतु और मिशन सागर
कोविड-19 महामारी के दौरान भारतीय नागरिकों को विदेश से वापस लाने के प्रयासों के तहत 5 मई, 2020 को शुरू किए ‘ऑपरेशन समुद्र-सेतु’ के तहत समुद्र मार्ग से 3,992 भारतीय नागरिकों को अपने देश लाया गया। इस ऑपरेशन में भारतीय नौसेना के जहाज जलाश्व, ऐरावत, शार्दूल तथा मगर ने हिस्सा लिया, जो लगभग 55 दिन तक चला और इसमें समुद्र में 23,000 किलोमीटर से ज्यादा दूरी तय की गई। 2006 में ऑपरेशन सुकून (बेरूत) और 2015 में आपरेशन राहत (यमन) के तहत पूर्व में भी नौसेना इसी तरह के निकासी अभियान चला चुकी है। यह सूची बहुत लम्बी है। हमें गर्व इस बात पर है कि जब कहीं संकट आता है, तब सहायता प्रदान करने के लिए भारत सबसे पहले पहुंचता है। (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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