अब ये कोई राज नहीं रहा है कि ड्रैगन भारत के बगल में बैठे भारत से दुश्मनी की आक्सीजन पर पलते पाकिस्तान को अपने औजार की तरह इस्तेमाल कर रहा है। बीजिंग की आंखों में पाकिस्तान इसलिए तारा बना हुआ है क्योंकि वह कंगाल इस्लामी देश अरब सागर तक उसकी पहुंच बनाने में हस्तक है।
अब चीन अगले कदम की ओर है। वह अब पड़ोसी इस्लामी देश में अपनी सैन्य पकड़ को और ठोस बनाने का प्रयास कर रहा है। कल चीन के रक्षा मंत्री तथा पाकिस्तान के नौसेना अध्यक्ष के बीच हुई वार्ता ने तो अब इस पर से बचा—खुचा पर्दा भी हटा दिया है। चीनी रक्षा मंत्री ली शांगफू ने पाकिस्तान के नौ सेनाध्यक्ष से अपनी बात का समापन यह कहते हुए किया कि दोनों देशों की नौसेनाएं और बाकी की सेनाएं भी ‘नए आयामों में सहयोग का विस्तार’ करें। चीन की नजर में इससे दोनों देश ‘इस क्षेत्र को सुरक्षित रखने’ की अपनी काबिलियत को और बढ़ा सकेंगे।
चीन के इस पैंतरे पर बारीक नजर रखने वाले रक्षा विशेषज्ञ जानते हैं कि इस बात का क्या अर्थ है। अर्थ साफ है कि चीन कम अक्ल इस्लामी देश को अपनी फौजी रणनीति और फौजी तैयारियों में शामिल करने को उतावला है। दोनों देशों की सेनाएं आपस में जुड़कर ‘नए आयामों’ में सहयोग करेंगी, इसके भी अर्थ स्पष्ट हैं। बीजिंग का स्वार्थ कुछ जमा यह है कि युद्ध की सूरत में जरूरत पड़े तो इस्लामी देश उसके पाले में आकर लड़े। वैसे चीन व पाकिस्तान की सेनाएं पिछले अनेक वर्षों से आपस में जुड़ी हैं। दोनों देशों की वायुसेनाएं तथा नौसेनाएं मिलकर युद्धाभ्यास भी करती आ रही हैं। लेकिन अब चीन यदि इस जुड़ाव को और बढ़ाना चाहता है तो उसका मतलब समझना कोई कठिन काम नहीं है।
चीनी रक्षा मंत्री शांगफू ने चीन की यात्रा पर गए पाकिस्तानी नौसेनाध्यक्ष अमजद खान नियाजी से स्पष्ट कहा है कि चीन तथा पाकिस्तान के आपसी संबंधों में फौजी संबंध सबसे पहले हैं। चीन के रक्षा मंत्रालय ने इस मौके पर जो बयान जारी किया है, उसमें लिखा गया है कि दोनों देशों की सेनाएं अपने आपसी संबंधों को नए क्षेत्रों तक बढ़ाएं।
रक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि चीन अपने लिए अरब सागर को आयात-निर्यात की दृष्टि से सुरक्षित रखना चाहता है। चीन को बेशक इसमें पाकिस्तानी नौसेना की मदद लेनी होगी, और इसीलिए चीन पाकिस्तान को ‘हर तरह से खुश’ भी रखना चाहता है। सीपीईसी के रास्ते पाकिस्तान को मोटा पैसा मिलने का लॉलीपॉप उसने दिया ही हुआ है।
लेकिन पाकिस्तानी फौन के साथ अपनी नजदीकी बढ़ाने की कोशिश में लगे चीन पर अमेरिका और साथी पश्चिमी देशों की बारीक नजर है। अमेरिका जानता है कि 2017 में चीन हिंद महासागर के उत्तर-पश्चिमी छोर पर ज्बूती में अपना एक सैनिक अड्डा बना चुका है। पाकिस्तान में भी चीन उसी तर्ज पर कुछ करना चाहता है।
चीनी रक्षा मंत्री शांगफू ने चीन की यात्रा पर गए पाकिस्तानी नौसेनाध्यक्ष अमजद खान नियाजी से स्पष्ट कहा है कि चीन तथा पाकिस्तान के आपसी संबंधों में फौजी संबंध सबसे पहले हैं। चीन के रक्षा मंत्रालय ने इस मौके पर जो बयान जारी किया है, उसमें लिखा गया है कि दोनों देशों की सेनाएं अपने आपसी संबंधों को नए क्षेत्रों तक बढ़ाएं। यह एक ऐसा संकेत है जिसे कोई रक्षा विशेषज्ञ अनदेखा नहीं कर सकता। ‘दोनों देशों के सुरक्षा हितों’ की बात का मर्म यही है।
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