देश के प्रधानमंत्री एक तरफ अपने देशवासियों की शक्ति, सामर्थ्य, साहस, शौर्य, आत्मविश्वास और नवसृजन की गाथाओं पर चर्चा करते हैं, वहीं देश की समस्याओं और चुनौतियों पर अपनी चिंता व्यक्त करते हुए, सामूहिक एकजुटता द्वारा उनसे लड़ने की प्रेरणा देते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘मन की बात’ कड़ी में गत 30 अप्रैल को देशवासियों से 100वीं चर्चा की। उन्होंने तीन अक्तूबर, 2014 को आल इंडिया रेडियो पर पहली ‘मन की बात’ की थी। ‘मन की बात’ कार्यक्रम की मूल भावना में जनशक्ति, जनजागृति, जनकल्याण, जनसम्मान और जनभागीदारी के साथ-साथ जन-अभिव्यक्ति का अदभुत प्लेटफार्म और विकास का लोकतांत्रिक मॉडल दिखाई देता है। विगत 9 वर्षों से, हर महीने का आखिरी रविवार भारत के विभिन्न दूरदराज क्षेत्रों, गांव की चौपालों, सामाजिक एवं शिक्षण संस्थानों, सरकारी दफ्तरों तथा राजनैतिक कार्यालयों पर देशवासियों के लिए एकत्रित होने का दिन बन गया है। जहां पर, देश के प्रधानमंत्री एक तरफ अपने देशवासियों की शक्ति, सामर्थ्य, साहस, शौर्य, आत्मविश्वास और नवसृजन की गाथाओं पर चर्चा करते हैं, वहीं देश की समस्याओं और चुनौतियों पर अपनी चिंता व्यक्त करते हुए, सामूहिक एकजुटता द्वारा उनसे लड़ने की प्रेरणा देते हैं।
वैसे देखा जाए तो, भारत में संवाद और चर्चाओं की परंपरा बहुत प्राचीन है। दक्षिण भारत स्थित कर्नाटक के बीदर जिले में 12वीं शताब्दी में विकसित स्वामी बसवेश्वरा द्वारा स्थापित ‘अनुभव मंडप’, जिसे प्राय: दुनिया की पहली संसद भी कहा जाता है, प्राचीन समय से ही संवाद, बातचीत, चर्चा और वाद-विवाद का केंद्र था। स्वामी बसवेश्वरा जी का स्पष्ट मानना था कि संवाद द्वारा बड़ी से बड़ी समस्या का हल निकल सकता है और बड़े से बड़े लक्ष्यों को भी प्राप्त किया जा सकता है। हम यदि रामराज्य को मर्यादाओं की पराकाष्ठा कहें, तो भी भारत में हर्षवर्धन, चंद्रगुप्त, समुद्रगुप्त, स्कंदगुप्त, ललितादित्य और महराजा छत्रपति शिवाजी के सुशासन दस्तावेजों से पता चलता है कि इतिहास के इन कालखंडों में स्वबोध, स्वराज और सुराज की सुव्यवस्था बहुत सुष्ठ थी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 140 करोड़ भारतीयों को अपने मन के करीब मानते हैं। इसलिए उन्होंने जनता से संवाद स्थापित करने और देश की बात करने के लिए मन की बात को माध्यम चुना।
आज भारत के अनेक महापुरुषों के उन्ही सपनों को आत्मसात कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी उस विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। 2014 में सत्ता संभालने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने अनेक नई पहल की और पिछले 9 वर्षों में भारत ने अभूतपूर्व विकास देखा है- जिसमें आधुनिक और विरासत दोनों का विकास शामिल है। ‘मन की बात’ भी उसी कड़ी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
‘मन की बात’ मेरी, आपकी और हम सबकी बात है। भारतीय संविधान की शुरुआत ‘हम भारत के लोग’ से होती है। मगर जब बात सरकार की नीति, नियम, कामकाज और योजनाओं की होती थी, तो ‘हम’ यानी जनता गायब दिखाई देती थी। मगर ‘मन की बात’ ने ‘हम’ यानी जनता को सरकार की योजनाओं और अभियानों के मूल में रखा है। ‘मन की बात’ में ऐसे अनेक गुमनामी के प्रसंग जुड़े हुए हैं, जिन पर मोदी जी ने चर्चा की तथा बाद में वो चीजें राष्ट्रीय मीडिया में आई और करोड़ों लोगों को उनके बारे में पता चला।
मन की बात के लिए एक करोड़ से अधिक लोगों ने अभी तक मोदी जी को अपनी चिट्ठियां भेजी हैं। यह उन छात्रों के लिए भी एक उत्सव जैसा है, जिनकी चिट्ठियों को पढ़कर देश के प्रधानमंत्री उनसे बात करते हैं। ‘मन की बात’ एक तरीके से देश की मासिक समीक्षा भी है। जिसमें हम अपनी उपलब्धियों, चुनौतियों और भविष्य की योजनाओं पर खुलकर चर्चा करते हैं और बड़ी बात यह है कि सारा देश उस समीक्षा का हिस्सा होता है, यही भारतीय परंपरा का सर्वस्पर्शी और सर्वव्यापी भाव है। ‘मन की बात’ विदेशों में रह रहे भारतीयों को भी हर महीने समूचे भारत की उपलब्धियों और भविष्य के लक्ष्यों से रु-ब-रू कराती है।
कोई भी व्यक्ति अपने मन की बात उसी से करता है, जो उसके सबसे करीब होता है, उसका प्रिय होता है, जिस पर उसे विश्वास होता है और जिससे संवाद स्थापित करने में उसे अपनत्व की अनुभूति होती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 140 करोड़ भारतीयों को अपने मन के करीब मानते हैं। इसलिए उन्होंने जनता से संवाद स्थापित करने और देश की बात करने के लिए मन की बात को माध्यम चुना।
‘मन की बात’ के दौरान देश के प्रधानमंत्री में हमें एक मित्र, कभी एक अभिभावक, कभी एक सलाहकार, कभी एक पथप्रदर्शक तो कभी एक उत्प्रेरक दिखाई देता है। मन की बात करते-करते कभी प्रधानमंत्री भावुक होते हैं, तो कभी-कभी पहाड़ से बड़ी चुनौतियों से लड़ने का अदम्य साहस उनमें स्पष्ट दिखाई देता है। ‘मन की बात’ के लिए खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं कि ‘आवाज मेरी, भाव देशवासियों का’, वह जो कहते हैं देश की 90 प्रतिशत जनता के लिए वह मान्य होता है।
उन्होंने स्वच्छता अभियान, सेल्फी विद डॉटर, भ्रष्टाचार मुक्त समाज, जल संरक्षण एवं संवर्धन, श्रीअन्न, नशा मुक्त भारत, कुम्भ मेला, इनक्रेडिबल इंडिया, फिट इंडिया, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, योग, खादी और संदेश टू सोल्जर्स जैसे अनेक मुद्दों पर चर्चा की, जिन्हें देश के करोड़ों लोगों ने मिलकर एक जन आंदोलन में परिवर्तित कर दिया। ‘मन की बात’ में कही बातें लोगों के मनों में उतरती हैं, इसलिए लोग उनका अनुसरण करते हैं, जैसे उन्होंने कहा कि कार्यक्रमों के दौरान ‘बुके नहीं बुक देना चाहिए’ आज उसका परिणाम अनेक कार्यक्रमों में दिखाई देता है।
उन्होंने कहा कि जिन्हें जरूरत नहीं है, उन्हें गरीबों के लिए गैस सब्सिडी छोड़नी चाहिए, तो लाखों लोगों ने गैस सब्सिडी छोड़ दी थी। उन्होंने खिलौना उद्योग की बात की, तो आज भारत खिलौनों का सबसे बड़ा उत्पादक बन गया है। कोरोना के दौरान भी देश को जिस प्रकार से प्रधानमंत्री ने संबल दिया, देश को महामारी से बाहर निकाला और निरंतर देशवासियों से संवाद किया, उसकी लोगों ने खूब सराहना की है।
कुल मिलाकर मन की बात रेडियो पर एक सामाजिक क्रांति बन गई है। प्रसार भारती ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस 100वें एपीसोड से पहले आईआईएम रोहतक (हरियाणा) द्वारा एक सर्वे कराया, जिसमें पता चला कि ‘मन की बात’ को 100 करोड़ लोगों ने कम से कम एक बार सुना है। देश के 96 प्रतिशत लोग इसके बारे में जानते हैं और लगभग 23 करोड़ लोग मन की बात को नियमित रूप से सुनते हैं। इसके अलावा इंडियन एक्सप्रेस द्वारा 2020 में भी एक सर्वेक्षण हुआ था, जिसमें पता चला कि 71 प्रतिशत उत्तरदाताओं का मानना था कि ‘मन की बात’ प्रधानमंत्री के लिए भारतीय नागरिकों के साथ सीधा संवाद करने का एक प्रभावी माध्यम है।
कोई भी व्यक्ति अपने मन की बात उसी से करता है, जो उसके सबसे करीब होता है, उसका प्रिय होता है, जिस पर उसे विश्वास होता है और जिससे संवाद स्थापित करने में उसे अपनत्व की अनुभूति होती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 140 करोड़ भारतीयों को अपने मन के करीब मानते हैं। इसलिए उन्होंने जनता से संवाद स्थापित करने और देश की बात करने के लिए मन की बात को माध्यम चुना।
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