कर्नाटक चुनाव में टीपू को बनाया हीरो, उसके अत्‍याचारों की लिस्‍ट बहुत लम्‍बी है

कैसे करवाता था मतांतरण, पत्र दे रहे गवाही, मेलकोट के ब्राह्मण अभी भी नहीं मनाते दिवाली, कोडावा हिन्दुओं के रक्त से लाल हो गई थी कावेरी नदी

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डॉ. मयंक चतुर्वेदी

कर्नाटक चुनाव प्रचार अपने अंतिम दौर में है। यहां इस समय जो बड़े मुद्दे हैं वे मुस्‍लि‍मों को पहले से अधिक आरक्षण देना, कांग्रेस का सत्‍ता में आते ही बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाने का एलान और टीपू सुल्‍तान। कांग्रेस को कर्नाटक की सत्‍ता में आने के लिए टीपू सुल्‍तान के प्रति हमदर्दी रखनेवालों का साथ चाहिए, इसके लिए वह मुसलमानों के आरक्षण को भी सत्‍ता में आते ही बढ़ा देने की वकालत कर रही है। विधानसभा चुनाव के दौरान टीपू को हीरो के रूप में प्रस्‍तुत करने का कार्य किया गया, लेकिन टीपू का जिहादी चेहरा भी आज दुनिया जानती है।

हिन्‍दू नरसंहार से रंगे थे टीपू के हाथ

इस्‍लामिक सत्‍ता के प्रचार-प्रसार के लिए किसी भी हद तक चले जाने की जिद ने टीपू के हाथ कई बार हिन्‍दुओं के नरसंहार से रंग दिए थे। ये सभी हिन्‍दू सनातन धर्म से दूर होना नहीं चाहते थे। उसने न जाने कितने हिन्‍दू उपासना स्‍थलों को तोड़ा। लेकिन वह भी एक हनुमान और भगवान विष्‍णु के संयुक्‍त मंदिर से भय खाता था, जिसका जिक्र आज भी गाहे-बगाहे हो जाता है। टीपू के अत्‍याचार की लिस्‍ट बहुत लम्‍बी है। टीपू के पक्ष में खड़े होने वाले कहते हैं कि वह तो अंग्रेजों के विरोध में लड़ा था, लेकिन टीपू के लिखे तमाम पत्र हैं, जिनमें उसने स्‍वयं बताया है कि कैसे-कैसे जिहाद के रास्‍ते पर चलकर उसने हजारों हिन्‍दुओं का कत्‍लेआम किया।

कैसे करवाता था मतांतरण, पत्र दे रहे गवाही

इतिहासकार राकेश सिन्‍हा बताते हैं कि एक पत्र में टीपू सुल्तान ने खुद कहा है, ‘मैंने चार लाख हिंदुओं का मतांतरण कर लिया है। इसका एक दूसरा पत्र भी है जिसमें टीपू लिखता है कि अल्लाह के रहम-ओ-करम से कालीकट में अनेक हिंदुओं का मतांतरण करा दिया गया है। वस्‍तुत: आज टीपू के ऐसे सैकड़ों पत्र मौजूद हैं, जो यह बताने के लिए पर्याप्‍त हैं कि उसकी मानसिकता क्‍या थी।

इस बात के पुख्‍ता प्रमाण इतिहासकार डॉ. चिदानंद मूर्ति कन्नड़ भाषा में टीपू पर लिखी अपनी पुस्‍तक में देते हैं। प्रोफेसर चिदानंद उसकी तुलना हिटलर से करते हैं और कहते हैं कि दस्तावेज़ों के रूप में यह साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत हैं कि वह एक क्रूर धर्मांध था, जिसने कई हज़ार हिंदुओं और ईसाइयों को बेरहमी से मार डाला और परिवर्तित कर दिया।

मेलकोट के ब्राह्मण अभी भी नहीं मनाते दिवाली

इतिहासकार मूर्ति बताते हैं कि मांड्या जिले के मेलकोट के ब्राह्मण अभी भी दिवाली नहीं मनाते, क्योंकि टीपू ने दिवाली के एक दिन पहले बड़ी संख्या में इन ब्राह्मणों का नरसंहार किया था। इतिहासकार और डिपार्टमेंट ऑफ कन्नड़ एंड कल्चर के थिएटर इंस्टीट्यूट रंगायना के निदेशक अदांदा सी करियप्पा का कहना है कि टीपू ने मेलकोटे और कोडागु में बड़ा रक्तपात किया। टीपू ने मेलकोटे के 1700 अयंगर ब्राह्मणों को जहर देकर मार दिया था। नरक चतुर्दशी के दिन ब्राह्मणों को मारकर उसने पेड़ पर लटकवा दिया था।

वे कहते हैं कि वास्‍तव में टीपू एक इस्लामिक फंडामेंटलिस्ट था न कि सेक्‍युलर। वह मानता था कि हिंदुओं को इस्लाम में परिवर्तन करवाने से जन्नत मिलेगी। इस संदर्भ में रिसर्च स्कॉलर प्रो. एमए जयश्री और प्रो. एमए नरसिम्हन का एक शोध आलेख मेलकोटे नरसंहार पर पब्लिश हुआ है। इस एतिहासि‍क अनुसंधान में ब्रिटिश सेना में मद्रास के कमांडर रहे जॉर्ज हैरिस की डायरी का उल्‍लेख किया गया है। इसमें हैरिस ने मेलकोट में टीपू सुल्तान की सेना के इकठ्ठा होने और नरसंहार करने के बारे में विस्‍तार से बताया है।

सनातन धर्म में मेलकोट का है व्‍यापक महत्‍व

अब यह जान लेते हैं कि हिन्‍दू सनातन धर्म में मेलकोट का महत्‍व क्‍या है। वास्‍तव में अयंगर ब्राह्मणों का कहना है कि 14 वर्ष के वनवास के समय में भगवान श्रीराम मेलकोट से गुजरे थे। जब सीता माता को प्यास लगी तो उन्होंने अपने बाण को धरती में मारा और वहां पानी की तेज धारा फूट पड़ी, तभी से उस जगह को धुनषकोटि कहा जाने लगा, यहां तब त्रेतायुग से लेकर आज तक ये जल की धारा भूमि से निकलना कभी बंद नहीं हुई और न कभी यहां सूखा पड़ता है ।

पुस्‍तक ‘लाइफ ऑफ टीपू सुल्तान’ और ‘मालाबार मैनुअल’ भी बहुत कुछ कहती हैं

1964 में प्रकाशित केट ब्रिटलबैंक की किताब ‘लाइफ ऑफ टीपू सुल्तान’ भी यही बता रही है कि टीपू ने कैसे मालाबार क्षेत्र में एक लाख से ज्यादा हिंदुओं और सत्‍तर हजार से अधिक ईसाइयों को अपने अत्‍याचार के बूते इस्लाम कबूल करवाया। ब्रिटिश गवर्नमेंट में 19वीं शताब्‍दी के दौरान अधिकारी रहे लेखक ‘विलियम लोगान’ अपनी पुस्‍तक ‘मालाबार मैनुअल’ में लिखते हैं कि टीपू ने अपने 30,000 सैनिकों के दल के साथ कालीकट में तबाही मचाई थी। पुरुषों और महिलाओं को सरेआम फांसी दी और इस दौरान उनके बच्चों को उन्हीं के गले में बांध कर लटकाया गया। विलियम ने अपनी इस पुस्‍तक में टीपू पर मंदिर, चर्च तोड़ने के साथ ही जबरन शादी जैसे कई गंभीर आरोप लगाए हैं।

लेखक और स्तंभकार संदीप बालकृष्ण अपनी लिखी किताब Tipu Sultan–The Tyrant of Mysore में बहुत विस्‍तार से टीपू के बारे में बताते हैं, वे लिखते हैं कि टीपू सुल्‍तान क्रूर और पक्षपाती शासक था, वह जिहादी था। उसने हज़ारों हिंदुओं को ज़बरदस्ती मुस्लिम बना दिया, वे मजहबी पुस्तक का पालन करता था जिसमें लिखा था मूर्तिपूजकों का वध करो। इसी प्रकार से इतिहासकार रवि वर्मा ने टीपू सुल्तान के बारे में ऐतिहासिक साक्ष्‍यों के साथ विस्‍तार से लिखा है। रवि वर्मा ने सैकड़ों मंदिरों की एक सूची भी प्रस्तुत की है जो उनके अनुसार टीपू सुल्‍तान द्वारा तत्‍कालीकता में समय-समय पर नष्ट किए गए हैं।

कोडागु में 600 से अधिक मंदिरों को नष्ट किया था टीपू ने

यह भी एक ऐतिहासिक तथ्‍य है कि वर्ष 1760 -1790 के कालखंड में जिहादी मानसिकता रखने वाले क्रूर आक्रांता टीपू ने कोडागु में 600 से अधिक मंदिरों को नष्ट कर दिया था। उसने कोडागु समाज पर विदेशी हथियारों से आक्रमण किया था। जिसका प्रतिकार करते हुए कोडागु समाज के वीर योद्धा, कंदांडा दोददाया और अपचचिरा मंडन्ना वीर हिन्दू कोडावा योद्धाओं ने अपने वीर सैनिकों के साथ क्रूर व बर्बता का अभिप्राय बन चुके टीपू को अपनी कौशल गोरिल्ला युद्ध नीति से एक बार नहीं अपितु 31 बार पराजित किया था। यह सिलसिला लगभग 25 वर्ष तक चलता रहा, फिर जब टीपू को जीत का कोई उपाय नहीं सूझा तो उसने कोडावों को शांतिवार्ता के लिए कावेरी नदी के तट पर आमंत्रित किया।

कोडावा हिन्दुओं के रक्त से लाल हो गई थी कावेरी नदी

13 दिसंबर 1785 के दिन जब कोडावा अपने पूरे परिवार के साथ बड़ी संख्या में देवतिपरंबू के कावेरी तट पर पहुंचे तभी आक्रांता टीपू की सेना ने जंगल में छुपकर उनके पूरे परिवार पर घात लगाकर छल से हमला कर नरसंहार किया था । जिसमे लगभग 75,000 से अधिक कोडावा जनजाति के लोगों की हत्या की गयी और 92,000 कोडावों को बंदी बनाया गया था। बंदी बनायी गयीं हिन्दू महिलाओं के साथ सामूहिक रूप से दुराचार और बच्चों का उत्पीड़न किया गया। यह हिन्दू नरसंहार इतना भयावह था कि कावेरी नदी का रंग भी कई दिनों तक कोडावा हिन्दुओं के रक्त से लाल हो गया था। ऐसा प्रतीत हो रहा था की कावेरी नदी में जल का नहीं अपितु रक्त का प्रवाह हो रहा हो।

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