अभी दो दिन पहले ही पाकिस्तान में मरदान इलाके में 40 साल के निगार आलम को इमरान के समर्थकों ने पीट—पीटकर मार डाला था, क्योंकि उसने ‘पैगंबर मोहम्मद का अपमान’ करके ईशनिंदा जैसे जुर्म किया था। आज यही ‘जुर्म’ दो लोगों की फांसी की वजह बना।
शिया इस्लामी देश ईरान में जिन दो लोगों को सूली पर टांगा गया है उनमें से एक पर आरोप था कि उसने कुरान जलाई थी तो दूसरे ने पैगंबर मोहम्मद का निरादर करके ईशनिंदा की थी। इन दोनों को सार्वजनिक रूप से फांसी पर टांगा गया।
ईरान से प्राप्त मीडिया समाचारों के अनुसार, सूली चढ़ाए गए इन दोनों शिया मुसलमानों के नाम क्रमश: सदरोल्लाह फ़ज़ेली ज़ारेई तथा यूसेफ मेहरदाद हैं। ज़रेई को इस्लाम में सर्वोच्च मानी जाने वाली ‘कुरान’ को जलाने का जुर्म ‘साबित’ हुआ था। दूसरे ने ‘पैगम्बर मोहम्मद का अपमान’ करके लोगों का गुस्सा मोल लिया था।
आंकड़े बताते हैं कि साल 2023 में अभी तक 194 लोगों को सूली पर टांगा जा चुका है। गत वर्ष जो हिजाब विरोधी प्रदर्शन हुए थे, उसके अनेक दोषियों को सबकी आंखों के सामने सूली पर टांगा गया था।
अन्य इस्लामी देशों की तरह ही, शिया मजहब को मानने वाले ईरान में भी शरिया को सबसे बड़ा कानून माना जाता है। शरिया में बाकी बातों को मानें या न माने पर सजाए मौत को इस्लामिक देश बड़ी ईमानदारी से मानते हैं और उसमें एक ‘सुख’ पाते हैं। पाकिस्तान, अफगानिस्तान हो या ईरान, सजा पाने वाले को चीत्कारते सुनकर अगल—बगल तालियां पीटकर मजे लेने वालों का एक बड़ा हुजूम रहता है, जिसमें से एक भी आदमी आगे बढ़कर उसे नहीं बचाता है।
यूं भी सूली पर टांगने के मामलों में ईरान बाकियों से अव्वल पाया गया है। आंकड़े बताते हैं कि साल 2023 में अभी तक 194 लोगों को सूली पर टांगा जा चुका है। गत वर्ष जो हिजाब विरोधी प्रदर्शन हुए थे, उसके अनेक दोषियों को सबकी आंखों के सामने सूली पर टांगा गया था। वहां सत्ता किसी की रहे पर, आज इस सदी में ऐसे बर्बर कायदों पर चलकर उन्हें जाने कौन सा सुकून मिलता है। वहां तमाशबीन भीड़ ऐसे नजारों को बड़े उत्साह से देखती आ रही है।
दिलचस्प बात है कि ईरान में रहने वाले 99 फीसदी लोग मुसलमान ही हैं। दूसरे मत पंथ के लोग गिनती के ही हैं। पाकिस्तान को छोड़ दें तो ईरान में पड़ोस के बाकी सभी देशों से ज्यादा आबादी है। ईरान की 7 करोड़ से ज्यादा आबादी में 99.4 फीसदी शिया और सुन्नी मुसलमान हैं। इसमें से सिर्फ 10 फीसदी ही मुसलमान सुन्नी मजहब के हैं। लेकिन शरिया को दोनों सर्वोपरि रखते हैं।
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