नारद भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्र माने जाते हैं, देवताओं के ऋषि होने के कारण इनको देवर्षि कहा गया है। देवर्षि नारद को ब्रह्मर्षि की उपाधि भी दी गयी है। तीनों लोकों की सूचनाओं के आदान प्रदान और सच का पता लगाने के कारण इनको सृष्टि के प्रथम पत्रकार की उपाधि भी दी जाती है।
आज का पंचांग – ज्येष्ठ मास, कृष्ण पक्ष, चित्रा नक्षत्र, बसंत ऋतु, प्रतिपदा तिथि, रविवार, सूर्य उत्तरायण, राहुकाल अपराह्न 4:30 बजे से सायं 6:00 बजे तक, दिशाशूल पश्चिम दिशा में, श्री नारद जयंती, युगाब्द 5125, विक्रम संवत 2080 तदानुसार 7 मई सन 2023.
नारद महाज्ञानी होने के साथ साथ बहुत बड़े तपस्वी भी थे। वह हमेशा चलायमान रहते थे और कहीं भी ठहरते नहीं थे। नारद भगवान श्री विष्णु के परम भक्त हैं, हमेशा नारायण नाम का जप ही उनकी आराधना है। इनकी वीणा महती के नाम से जानी जाती है, वीणा को बजाते हुए हरिगुण गाते हुए वो तीनों लोकों में विचरण करते हुए अपनी भक्ति संगीत से तीनो लोकों को तारते हैं। नारद महर्षि व्यास, महर्षि बाल्मीकि और शुकदेव के भी गुरु हैं। ध्रुव को भक्ति मार्ग का उपदेश भी देवर्षि नारद ने ही दिया था। महर्षि वाल्मीकि को श्री रामायण लिखने की प्रेरणा भी नारद ने ही दी थी। महर्षि व्यास से श्रीमद्भागवत की रचना भी नारद ने ही करवायी थी। देवर्षि नारद द्वारा लिखित भक्तिसूत्र बहुत महत्वपूर्ण है, इसमें भक्ति के रहस्य और सूत्र बताये गए हैं। माता पार्वती और देवाधिदेव महादेव के विवाह में भी नारद की महती भूमिका थी। नारद ने ही उर्वशी का विवाह पुरुरवा के साथ करवाया था। जनश्रुतियो में कहा जाता है कि नारद के श्राप के कारण ही भगवान राम को देवी सीता के वियोग का सामना करना पड़ा था।
भगवान की भक्ति प्राप्त करने का नारद जयंती श्रेष्ठ दिवस है। इस दिन नारायण नाम का जप करें, श्री विष्णुसहस्रनाम का पाठ करें। श्री रामचरितमानस, श्री सूक्त, श्रीमद्भागवत गीता के साथ दुर्गासप्तशती का पाठ भी मनोवांछित फल की प्राप्ति करवाता है। इस दिन भगवान श्री विष्णु जी की पूजा अर्चना के साथ साथ श्री लक्ष्मी पूजा भी करें। माता सरस्वती की उपासना करें, ऐसा करने से आपको मनोवांछित फल की प्राप्ति होगी। सभी नौ ग्रहों को प्रसन्न करने के लिए आज का दिन बहुत महत्वपूर्ण है, नवग्रहों के बीज मन्त्र का जप कर हवन करें। जिन कन्याओं का विवाह तय न हो पा रहा हो वो आज के दिन भगवान शिव पार्वती के विवाह की कथा को पढ़ें और दूसरो भी सुनायें, इन सब से माता पार्वती बहुत ही प्रसन्न होती हैं। नारद भक्ति से भगवान शिव भी प्रसन्न होते हैं। हम हर वक्त उन्हें वीणा बजाते देखते हैं, हमारे शास्त्रों में वीणा का बजना शुभता का प्रतीक माना गया है, कहा जाता है कि नारद जयंती पर वीणा का दान अन्य किसी दान से श्रेष्ठ है। नारद जयंती के दिन मंदिर में भगवान श्री कृष्ण को बांसुरी भेट करें। इस दिन ब्राह्मण को पीला वस्त्र दान करें। यह महीना बहुत गर्मी का होता है, अत: जगह-जगह जल की व्यवस्था करें और छाते का दान करें। अस्पताल में गरीब मरीजों में शीतल जल पिलायें और फल का वितरण करें। अन्न और वस्त्र का दान करें, प्यासे को पानी पिलाइये। जो लोग पत्रकारिता के क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं, उनको यह तिथि महापर्व के रूप में मनानी चाहिए। इस दिन पत्रकारिता से जुड़े लोग देवर्षि नारद की प्रतिमा को सामने रख पुष्प अर्पित करें और इनकी निष्पक्षता से सीख लेकर लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ को खूब मजबूत करें।
देवर्षि नारद सम्पूर्ण और आदर्श पत्रकारिता के संवाहक थे, वह महज सूचनाएं देने का ही कार्य ही नहीं बल्कि सार्थक संवाद का भी सृजन करते थे। वह देवताओं, दानवों और मनुष्य सबकी भावनाएं जानने का उपक्रम किया करते थे। जिन भावनाओं से लोकमंगल होता हो, ऐसी ही भावनाओं को जगजाहिर किया करते थे। इससे भी आगे बढ़कर देवर्षि नारद घोर उदासीन वातावरण में भी लोगों को सद्कार्य के लिए उत्प्रेरित करनेवाली भावनाएं जागृत करने का अनूठा कार्य किया करते थे। माखनलाल चतुर्वेदी के उपन्यास ‘कृष्णार्जुन युद्ध’ को पढऩे पर ज्ञात होता है कि किसी निर्दोष के खिलाफ अन्याय हो रहा हो तो फिर वह अपने आराध्य भगवान श्री विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण और उनके प्रिय अर्जुन के बीच भी युद्ध की स्थिति निर्मित कराने से नहीं चूकते है, उनके इस प्रयास से एक निर्दोष यक्ष के प्राण बच गए थे। वह पत्रकारिता के सबसे बड़े धर्म और साहसिक कार्य किसी भी कीमत पर समाज को सच से रू-ब-रू कराने से भी पीछे नहीं हटते थे। सच का साथ उन्होंने अपने आराध्य के विरुद्ध जाकर भी दिया था। देवर्षि नारद के चरित्र का अगर बारीकि से अध्ययन किया जाए तो ज्ञात होता है कि उनका प्रत्येक संवाद लोक कल्याण के लिए था। मूर्ख उन्हें कलहप्रिय कह सकते हैं, लेकिन नारद तो धर्माचरण की स्थापना के लिए सभी लोकों में विचरण करते थे। उनसे जुड़े सभी प्रसंगों के अंत में शांति, सत्य और धर्म की स्थापना का जिक्र आता है। स्वयं के सुख और आनंद के लिए वे सूचनाओं का आदान-प्रदान नहीं करते थे, बल्कि वे तो प्राणिमात्र के आनंद का ध्यान रखते थे।
आज की पत्रकारिता और पत्रकार देवर्षि नारद से सीख सकते हैं कि तमाम विपरीत परिस्थितियां होने के बाद भी कैसे प्रभावी ढंग से लोक कल्याण की बात कही जाए। पत्रकारिता का एक धर्म है वह है निष्पक्षता। नारद घटनाओं का सूक्ष्म विश्लेषण करते हैं, प्रत्येक घटना को अलग-अलग दृष्टिकोण से देखते हैं, इसके बाद निष्कर्ष निकाल कर सत्य की स्थापना के लिए संवाद सृजन करते हैं। सकारात्मक और सृजनात्मक पत्रकारिता के पुरोधा देवर्षि नारद को आज की मीडिया अपना आदर्श मान ले और उनसे प्रेरणा ले तो अनेक विपरीत परिस्थितियों के बाद भी श्रेष्ठ पत्रकारिता संभव है।आदि पत्रकार देवर्षि नारद ऐसी पत्रकारिता की राह दिखाते हैं, जिसमें समाज के सभी वर्गों का कल्याण निहित है।
वे आपत्तियाँ भी धन्य हैं, जो मनुष्य को सत्य का पालन कराती हैं. – नारद पुराण.
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