अधिक्रांत कश्मीर की असेंबली में अवामी मुस्लिम लीग द्वारा पेश शारदा पीठ कॉरिडोर खोलने के प्रस्ताव को सर्वसम्मति से पारित किया गया था। लेकिन पाकिस्तान सरकार ने अब तक कोई पहल नहीं की
गृह मंत्री अमित शाह ने जब से करतारपुर कॉरिडोर की तर्ज पर शारदा पीठ कॉरिडोर खोलने के लिए प्रयास करने का आश्वासन दिया है, भारत और पाकिस्तान, दोनों ओर हलचल है। भारत के श्रद्धालुओं को आशा की नई किरण दिख रही है तो इसके अपने कारण हैं। वहीं पाकिस्तान अधिक्रांत कश्मीर के लोगों को अगर उम्मीद की कोई रोशनी नजर आ रही है तो उसके अपने कारण हैं और उसे देखकर अगर पाकिस्तान की सत्ता नई तरह की आशंकाओं से घिर गई है, तो उसके भी अपने कारण हैं।
जब गृह मंत्री अमित शाह ने कुपवाड़ा के टिटवाल में बनाए गये शारदा मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर कहा कि सरकार पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर स्थित शारदा पीठ के लिए कॉरिडोर खोलने का प्रयास करेगी तो श्रद्धालुओं को आशा की नई किरण दिखी, जो स्वाभाविक है। शारदा पीठ, भारत की सनातन संस्कृति का महत्वपूर्ण स्थान है और यह ज्ञान का एक अद्भुत केंद्र रहा है। स्वयं आदि शंकराचार्य भी ज्ञान पाने के लिए यहीं गए थे और कश्मीर के लिए भी मां शारदा सांस्कृतिक-आध्यात्मिक चेतना की केंद्र रही हैं। मां शारदा को ‘कश्मीर पुरवासिनी’ भी कहा जाता है और वे कश्मीर के लोगों की कुलदेवी भी हैं। शारदा लिपि भी मां शारदा के ही नाम पर है।
वह दिन दूर नहीं
टिटवाल का पुल नियंत्रण रेखा पर है। 30 फुट लंबा यह पुल आधा इधर और आधा उधर है। शृंगेरी मठ और ‘सेव शारदा कमेटी’ ने चार माह के रिकॉर्ड समय में यहां शारदा देवी का मंदिर बनवाया है। कमेटी के प्रमुख रविंद्र पंडिता इसे एक सकारात्मक उपलब्धि के रूप में देखते हैं। उन्हें विश्वास है कि श्रद्धालुओं ने दशकों से जो सपना संजो रखा है, वह जरूर साकार होगा। कमेटी के सदस्य मंजूनाथ शर्मा कहते हैं, ‘टिटवाल में बना यह मंदिर परस्पर सौहार्द का भी प्रतीक है।
1947 में यहां एक छोटा-सा मंदिर था। यहां के मुसलमानों ने इसके लिए जमीन दी और शृंगेरी पीठ ने इस पर मंदिर बनवाया। इसमें स्थापित लकड़ी की मां की प्रतिमा भी उसी ने दी और इसके लिए ग्रेनाइट के पत्थर बेंगलुरू की खदान से लाए गए। हमें आशा है कि लोग आज नहीं, कल पाकिस्तान अधिक्रांत कश्मीर स्थित शारदा पीठ के भी दर्शन कर सकेंगे।’
शारदा पीठ, भारत की सनातन संस्कृति का महत्वपूर्ण स्थान है और यह ज्ञान का एक अद्भुत केंद्र रहा है। स्वयं आदि शंकराचार्य भी ज्ञान पाने के लिए यहीं गए थे और कश्मीर के लिए भी मां शारदा सांस्कृतिक-आध्यात्मिक चेतना की केंद्र रही हैं। मां शारदा को ‘कश्मीर पुरवासिनी’ भी कहा जाता है और वे कश्मीर के लोगों की कुलदेवी भी हैं। शारदा लिपि भी मां शारदा के ही नाम पर है।
क्या है तकनीकी पेंच
करतारपुर कॉरिडोर का मामला अलग है क्योंकि वह पाकिस्तान में है। शारदा पीठ पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में है जिसके लिए भारत वीजा नहीं दे सकता क्योंकि पूरा कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है, बेशक उसका कुछ भाग अभी पाकिस्तान और कुछ चीन के कब्जे में हो। पाकिस्तान भी शारदा पीठ के लिए वीजा नहीं देता। जो लोग वीजा लेकर पाकिस्तान जाते भी हैं, उन्हें शारदा पीठ नहीं जाने दिया जाता। लेकिन ऐसे में एलओसी परमिट से काम बन सकता है।
हां, उसमें थोड़ा बदलाव जरूर करना होगा। एलओसी परमिट पर अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री रहते दोनों देशों के बीच समझौता हुआ था। इसके तहत कश्मीर के दोनों भागों के लोग अपने संबंधियों से मिलने के लिए एक-दूसरे के यहां जा सकते हैं। लेकिन यह व्यवस्था केवल जम्मू-कश्मीर के निवासियों के लिए है। रविंद्र पंडिता का कहना है कि अब कश्मीरी पंडितों के रिश्तेदार उस ओर तो रहे नहीं, इसलिए यहां से लोग नहीं जा पाते। लेकिन इसी परमिट में थोड़ा बदलाव करके इसकी अनुमति दी जा सकती है।
‘‘उस समय इमरान खान ने शारदा पीठ खोलने की बात की थी, लेकिन उन्होंने न तो लिखित में कोई आदेश दिया और न ही इसे किसी भी तरह आगे बढ़ाने की कोशिश की। यही बात आज भी है। अधिक्रांत कश्मीर की असेंबली की ओर से प्रस्ताव पास किए एक माह हो रहा है लेकिन सरकार की ओर से कुछ नहीं किया गया। साफ है, पाकिस्तान की सत्ता में बैठे लोगों के मन में कुछ है और जुबान पर कुछ और।’’
-मंजूनाथ
पाकिस्तान में आनाकानी
अमित शाह के प्रस्ताव के बाद अधिक्रांत कश्मीर की असेंबली में अवामी मुस्लिम लीग की ओर से एक प्रस्ताव पेश किया गया जिसमें शारदा पीठ कॉरिडोर खोलने की बात कही गई थी और यह प्रस्ताव आम सहमति से पास भी हो गया। लेकिन उसके बाद भी पाकिस्तान सरकार की ओर से कोई पहल नहीं हुई और अब तक बात आगे नहीं बढ़ सकी है।
अब बेशक इमरान खान के पास यह बहाना हो कि ‘उनकी सरकार नहीं है, इसलिए उनके हाथ बंधे हैं’, लेकिन जब वे प्रधानमंत्री थे, तब तो इसे आगे बढ़ा सकते थे। मंजूनाथ कहते हैं, ‘‘उस समय इमरान खान ने शारदा पीठ खोलने की बात की थी, लेकिन उन्होंने न तो लिखित में कोई आदेश दिया और न ही इसे किसी भी तरह आगे बढ़ाने की कोशिश की। यही बात आज भी है। अधिक्रांत कश्मीर की असेंबली की ओर से प्रस्ताव पास किए एक माह हो रहा है लेकिन सरकार की ओर से कुछ नहीं किया गया। साफ है, पाकिस्तान की सत्ता में बैठे लोगों के मन में कुछ है और जुबान पर कुछ और।’’
बहरहाल, पाकिस्तान अधिक्रांत कश्मीर की असेंबली में अमित शाह के सुझाव के समर्थन में प्रस्ताव पास होने के बाद पाकिस्तान में ‘चिंता’ की लहर दौड़ गई है। भारत में पाकिस्तान के पूर्व उच्चायुक्त अब्दुल बासित ने पाकिस्तान अधिक्रांत कश्मीर के प्रस्ताव पारित किए जाने पर अफसोस जाहिर करते हुए कहा कि ‘‘असेंबली में बैठे लोगों को पता नहीं कि वे क्या कर रहे हैं और उनके प्रस्ताव के कितने दूरगामी परिणाम हो सकते हैं। वहां के लोगों को कश्मीर के इतिहास के बारे में जानकारी देने के लिए कार्यशाला लगाई जानी चाहिए।’’
कश्मीर के लोगों के जीवन स्तर में आने वाले समय में जहां और बेहतरी आने की पूरी-पूरी संभावना है, वहीं अधिक्रांत कश्मीर के लोगों के जीवन के बद से बदतर होने का अनुमान है। इसलिए आने वाले समय में पाकिस्तान पर कई ओर से दबाव बढ़ने वाला है और इसमें एक बड़ा कारक अधिक्रांत कश्मीर का जनमत भी होगा। उम्मीद यही की जानी चाहिए कि अंतत: आशंकाओं पर आशा की जीत होगी।
आशंका है बड़ी
शारदा पीठ कॉरिडोर पर पाकिस्तान के हाथ-पांव फूलने के कई कारण हैं। भारत की नरेन्द मोदी सरकार संसद में घोषणा कर चुकी है कि वह पाकिस्तान और चीन के कब्जे वाले कश्मीर के हिस्से को लेकर रहेगी। पाकिस्तान सरकार इसे हल्के में नहीं ले सकती। वैसे भी, उसने देखा है कि नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को लेकर भारत की नीति किस तरह आक्रामक हो गई है। दूसरी बात, जब से पाकिस्तान के आर्थिक हालात बुरे हुए हैं और आम लोगों का जीना दूभर हुआ है, अधिक्रांत कश्मीर के लोगों में भारत के प्रति स्पष्ट झुकाव देखा जा सकता है।
सोशल मीडिया ने वहां के लोगों की भावनाओं को सामने लाने का बड़ा काम किया है। उन्हें यह कहते साफ सुना जा सकता है कि ‘काश, वे भारत में होते’। वे देख रहे हैं कि पाकिस्तान कंगाली की हालत में है, परंतु भारत अपने लोगों का कैसे ख्याल रख रहा है, कैसे सरकार कश्मीर के लोगों का ध्यान रख रही है। लोग वहां खुलकर भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तारीफ के पुल बांध रहे हैं। ऐसे में पाकिस्तान को यह डर है कि अगर एक भी कदम गलत हो गया तो उसे लेने के देने पड़ सकते हैं।
इसमें संदेह नहीं कि आज के समय में पाकिस्तान अधिक्रांत कश्मीर में विशेष तौर पर भारत में न होने का मलाल है और आगे आने वाले समय में इस भाव के और मजबूत होने की संभावना है क्योंकि कश्मीर के लोगों के जीवन स्तर में आने वाले समय में जहां और बेहतरी आने की पूरी-पूरी संभावना है, वहीं अधिक्रांत कश्मीर के लोगों के जीवन के बद से बदतर होने का अनुमान है। इसलिए आने वाले समय में पाकिस्तान पर कई ओर से दबाव बढ़ने वाला है और इसमें एक बड़ा कारक अधिक्रांत कश्मीर का जनमत भी होगा। उम्मीद यही की जानी चाहिए कि अंतत: आशंकाओं पर आशा की जीत होगी।
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