अधिकतर लोग शायद विराट नगर के बारे में जानते होंगे, जो नहीं जानते उनके लिए संक्षेप में बताते हैं, पांडव कालीन विराट नगर जो की हिंदू मान्यता के अनुसार आज के समय से लगभग 5000 साल पुराना काल है। विराट नगर वह जगह है जब पांडव जुए में अपना राजपाठ हारकर वनवास चले गए। कौरवों ने वनवास की शर्त रखी की, अगर वे अंतिम वर्ष में देख लिए गए तो पांडवों को दोबारा वनवास जाना पड़ेगा। पांडवों ने द्रौपदी के साथ यह अंतिम वर्ष राजा विराट के राज्य में भेष बदलकर बिताया। इससे पहले वे जंगलों में रहे।
वर्तमान समय में वह गांव ढिकुली के नाम से जाना जाता है, को पांडव कालीन विराट नगर भी माना जाता रहा है। ऐसा मानने के पीछे मात्र कल्पना नहीं है। इस क्षेत्र के जंगलों और गांव में आज भी कई ऐसे अवशेष पाए जाते हैं जो की एक समृद्ध सभ्यता के निवास की गवाही देते हैं। पुराने लोग बताते हैं कि पशु चराने जंगल में जाते तो एक कुआं जो गाद से भर गया था दिखाई देता था अब वो घने जंगल के भीतर लुप्त है। उसके अलावा जहां तहां भवनों के बिखरे पत्थर और मूर्तियों के अवशेष भी मिलते रहते हैं। आज भी कई घरों में ये धरोहरें पाई जाती हैं और खुदाई में पौराणिक पत्थर और मूर्तियां मिलती रहती हैं। गर्जिया मंदिर में रखी मूर्ति भी कई हजार साल पहले की है, जिसका वर्णन एएसआई ने भी अपने शिलालेख में किया है।
पांच हजार साल का समय कोई छोटा समय नहीं है। आज के एक औसत मकान की उम्र लगभग 100 से 200 वर्ष से अधिक नहीं होती। तो इस हिसाब से ये शहर और इसके अवशेष खंडहरों के शक्ल में न होकर जमीदोंज मिलते हैं। इनमें कई बड़े-बड़े चक्र के आकार के पत्थर हैं, जिनमें की किनारे एक छेद होता जो संभवतः झंडे या पताका हेतु होता होगा। इनमें पाए जाने वाले सभी पत्थर सैंडस्टोन हैं। इसको स्थानीय भाषा में कोप के पत्थर कहा जाता है। यह जैसा की नाम से प्रतीत होता है भूमि के अंदर दबाव के कारण रेत और नमी और मृदा के संगठन से बनता है। प्राकृतिक रूप से ये अधिकतर इनका शेप गोलाई वाला होता है और आकार में ये छोटे और काफी बड़े-बड़े भी पाए जाते हैं। मैंने एक बार जंगल में अभी तक सबसे बड़ा लगभग एक कमरे के आकार से भी बड़ा देखा है। शायद आपको यह लगे की मैं कुछ ज्यादा कह गया पर यकीन मानिए ऐसे पत्थर हैं।
पत्थरों के हिसाब से यह इस इलाके में बेहद सुलभ और बहुतायत में और विभन्न आकारों में होने के कारण भवन निर्माण से लेकर मूर्ति निर्माण में इसका उपयोग सर्वत्र हुआ। इसके सॉफ्ट होने के कारण इसको उपयोग करना आसान भी होता है। विराट नगर वाला क्षेत्र आज भी वन संपदा और वनों से आच्छादित है, आज से पांच हजार साल पहले कितना रहा होगा, सहज अनुमान लगाया जा सकता है। चाहे पांडव हों या श्री राम, दोनों ने वनवास बिताया और इस समय का उपयोग अपने खोए हुए राज्य और माता जानकी को पाने तथा राक्षसों के विनाश हेतु किया।
कॉर्बेट टाइगर रिजर्व की सीमा में जहां विराट नगर के अवशेष हैं, वहीं रामनगर वन प्रभाग में वाल्मीकि आश्रम और सीतावनी में सीता माता का मंदिर भी है। वहां भी चोपड़ा गांव में कई पत्थर मिलते हैं। अगर क्षेत्र को गौर से देखें तो हस्तिनापुर और इंद्रप्रस्थ तथा अयोध्या दोनों की स्थिति यहां से अधिक दूर नहीं है। संभव है कि उत्तराखंड के वनों में वे आए होंगे। आज भी लोग वर्तमान में इन वनों में विहार करने आते हैं। ये अलग बात है कि वे यहां पांडवों की तरह न रहकर सैर सपाटा और विश्राम करके लौट जाते हैं।
आज ये विराट नगर जो कभी किसी राजा का समृद्ध राज्य रहा होगा। उसका नामो निशान मिट गया। मगर जंगल जीवित है। समय बहुत बलवान है, वर्तमान में समस्त संसार में जगह-जगह युद्ध और गृह युद्ध छिड़ा हुआ है और बहुत संभव है की मनुष्य के कारण मानव सभ्यता के साथ-साथ अन्य जीवों का अस्तित्व समाप्त हो जाए। परंतु यह निश्चित है कि पृथ्वी रहेगी और शायद पृथ्वी पर जीवन किसी अन्य रूप में फिर से आएगा। शायद इंसान को यह समझ में आ जाए की स्वर्ग कहीं और नहीं हमारी पृथ्वी पर ही है और वह इसको बचाए। यह केवल एक ग्रह नहीं हमारा घर है।
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