सर्वोच्च न्यायालय ने मुम्बई उच्च न्यायालय के उस निर्णय को रद्द कर दिया, जिसमें साईबाबा की रिहाई का आदेश दिया गया था। बता दें कि इन दिनों साईबाबा और उसके कुछ साथी नागपुर केंद्रीय करागृह में बंद हैं। ये सब माओवादी गतिविधियों में हिस्सा लेने और भारत के विरुद्ध युद्ध छेड़ने के अभियुक्त हैं।
शहरी नक्सली और दिल्ली विश्वविद्यालय के रामलाल आनंद कॉलेज में अंग्रेजी के प्रोफेसर रहे जी.एन. साईबाबा की रिहाई एक बार फिर से लटक गई है। 19 अप्रैल को सर्वोच्च न्यायालय ने मुम्बई उच्च न्यायालय के उस निर्णय को रद्द कर दिया, जिसमें साईबाबा की रिहाई का आदेश दिया गया था। बता दें कि इन दिनों साईबाबा और उसके कुछ साथी नागपुर केंद्रीय करागृह में बंद हैं। ये सब माओवादी गतिविधियों में हिस्सा लेने और भारत के विरुद्ध युद्ध छेड़ने के अभियुक्त हैं।
उल्लेखनीय है कि 14 अक्तूबर, 2022 को मुम्बई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ ने साईबाबा को आरोप-मुक्त करते हुए उसकी रिहाई का आदेश दिया था। इसके विरुद्ध महाराष्ट्र सरकार सर्वोच्च न्यायालय पहुंची थी। उस समय सर्वोच्च न्यायालय ने नागपुर पीठ के आदेश को निलंबित कर दिया था और अब उसे रद्द कर दिया है। इसके साथ ही सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले के गुण-दोष (मेरिट) पर चार महीने में नए सिरे से विचार करने के लिए इसे वापस उच्च न्यायालय को भेज दिया है।
न्यायमूर्ति एम.आर. शाह और न्यायमूर्ति सी. टी. रविकुमार की पीठ ने मुम्बई उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को निर्देश दिया कि साईबाबा और अन्य आरोपितों की अपील को उस पीठ के सामने प्रस्तुत न किया जाए, जिसने उन्हें बरी किया था, बल्कि मामले की सुनवाई कोई दूसरी पीठ करे।
माओवादी संगठन, साईबाबा, महाराष्ट्र सरकार सर्वोच्च न्यायालय, न्यायमूर्ति एम.आर. शाह और न्यायमूर्ति सी. टी. रविकुमार की पीठ
बता दें कि माओवादियों से साठगांठ के आरोप में साईबाबा को 2014 में गिरफ्तार किया गया था। इसके साथ ही दो किसान महेश करिमन तिर्की और पंडु पोरा नरोटे, छात्र हेम केशवदत्त मिश्रा, पत्रकार प्रशांत संगलिकर और विजय तिर्की को भी गिरफ्तार किया गया था।
जांच एजेंसियों का कहना है कि साईबाबा प्रोफेसर के चोले में नक्सलियों के लिए काम करता था। उसके विरुद्ध अनेक सबूत हैं और उन्हीं के कारण निचली अदालत ने उसे और उसके साथियों को सजा दी है। यही कारण है कि अदालत में बचाव पक्ष की दलीलें टिक नहीं रही हैं। न्यायालय का मानना है कि साईबाबा का अपराध छोटा नहीं है।
इन सब पर प्रतिबंधित माओवादी संगठनों से संबंध रखने और भारत के विरुद्ध युद्ध छेड़ने के आरोप लगे थे। इसलिए इन सब पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और गैर-कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) की विभिन्न धाराओं के अंतर्गत मुकदमा चलाया गया। मार्च, 2017 में गढ़चिरौली सत्र न्यायालय ने इन लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। तभी से ये लोग जेल में बंद हैं। कुछ समय पहले पंडु पोरा नरोटे का निधन हो गया है।
इन लोगों को जेल से बाहर करने के लिए भारत के साथ ही विदेश के भी कई संगठन निरंतर लगे हुए हैं। प्रशांत भूषण जैसे बड़े-बड़े वकील इनकी पैरवी कर रहे हैं। ये लोग अदालत में तर्क देते हैं कि साईबाबा पोलियो से ग्रस्त है और अपना काम करने में सक्षम नहीं है। जेल में उसका स्वास्थ्य भी गिरता जा रहा है। इसके साथ ही अनेक नक्सली यह भी कहते हैं कि साईबाबा पर झूठे आरोप लगाए गए हैं।
इसलिए इसे रिहा किया जाना चाहिए। लेकिन जांच एजेंसियों का कहना है कि साईबाबा प्रोफेसर के चोले में नक्सलियों के लिए काम करता था। उसके विरुद्ध अनेक सबूत हैं और उन्हीं के कारण निचली अदालत ने उसे और उसके साथियों को सजा दी है। यही कारण है कि अदालत में बचाव पक्ष की दलीलें टिक नहीं रही हैं। न्यायालय का मानना है कि साईबाबा का अपराध छोटा नहीं है।
इन सबको देखते हुए कहा जा सकता है कि फिलहाल साईबाबा और उसके साथियों को जेल में ही रहना होगा।
टिप्पणियाँ