दधीचि देहदान समिति के अनुसार अंग की कमी से प्रतिवर्ष 5,00,000 लोग मरते हैं। इस समय 21,000 किडनी, 5,000 हृदय और 2,00,000 लिवर की आवश्यकता है, लेकिन इनकी उपलब्धता क्रमशः 5,000, 70 और 750 है। भारत सरकार के निर्णय से लोग अंगदान के लिए प्रेरित होंगे, ऐसी आशा की जा सकती है।
अंगदान पर भारत सरकार ने एक बहुत ही सुन्दर और सराहनीय निर्णय लिया है। इस निर्णय के अनुसार अंगदान करने वाले केंद्र सरकार के कर्मचारियों को 42 दिन का अवकाश मिलेगा। इससे पहले 30 दिन के आकस्मिक अवकाश का प्रावधान था। अब सरकार ने सर्जरी के बाद ठीक होने में लगने वाले समय को देखते हुए यह निर्णय लिया है। कार्मिक मंत्रलय की ओर से जारी एक आदेश में कहा गया है कि अंगदान करने वाले के अंग को निकालने के लिए बड़ी सर्जरी की आवश्यकता होती है। इस कारण अंगदान करने वाले व्यक्ति को स्वस्थ होेने में समय लगता है। इसमें अस्पताल में रहने और बाद में घर पर बिताया गया समय भी शामिल है। यह भी कहा गया है कि अंगदाता के अंग को निकालने के लिए की जाने वाली सर्जरी के प्रकार से परे आकस्मिक अवकाश की अधिकतम अवधि 42 दिन होगी। यह अवकाश सरकार से पंजीकृत किसी भी चिकित्सक की अनुशंसा पर लिया जा सकता है। सामान्यतः यह अवकाश एक बार लिया जा सकता है, लेकिन आवश्यकता पड़ने पर इसे बढ़ाया भी जा सकता है, बशर्ते चिकित्सक की अनुशंसा हो।
भारत सरकार ने यह निर्णय अपने कर्मचारियों को अंगदान के लिए प्रेरित करने हेतु लिया है। बता दें कि किसी जरूरतमंद को संबंधित अंग के मिलने से उसे नया जीवन प्राप्त होता है। अंगदान समाज के लिए एक चमत्कार सिद्ध हुआ है। प्रत्यारोपण के उद्देश्य से गुर्दे, हृदय, आंऽ, लिवर, छोटी आंत, त्वचा और हिîóयों के टिश्यू, नसों जैसे अंग दान किए जाते हैं। अंगदान करने वाला व्यक्ति इस महान कार्य के माध्यम से अंग प्राप्तकर्ता को एक नया जीवन देता है। अंगदान की प्रक्रिया को पूरे विश्व में प्रोत्साहित किया जा रहा है। इस कारण अंगदान को प्रोत्साहित करने के लिए विभिन्न देशों की सरकारों ने अलग-अलग प्रणालियों को स्थापित किया है। हालांकि उनकी आपूर्ति की तुलना में अंगों की मांग अभी भी काफी अधिक है। इस बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए प्रभावी कदम उठाए जाने चाहिए।
अंगदान तब होता है जब किसी व्यक्ति के शरीर के अंग को उसकी सहमति से हटा दिया जाता है। अगर वह जीवित है तो उसकी आज्ञा से और यदि उसकी मृत्यु हो गई है तो उसके परिवार वालों के सहमति अंगदान किया जा सकता है। इस तरह के अंगों का प्रयोग किसी अस्पताल में अनुसंधान के लिए होता है या फिर किसी जरूरतमंद के शरीर में प्रत्यारोपित किया जाता है। अंग प्राप्तकर्ता को नया जीवन देने के लिए गुर्दे, लिवर, फेफड़े, हृदय, हिîóयों, अस्थि मज्जा, कॉर्निया, आंतों और त्वचा को प्रत्यारोपित किया जाता है।
जीवित अंगदाताओं को अंगदान करने से पहले संपूर्ण चिकित्सा परीक्षणों की आवश्यकता होती है। इसमें दाता के मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन में यह सुनिश्चित करना भी शामिल है कि क्या वह दान के परिणामों को समझता है और इसके लिए वास्तव में सहमति देना चाहता है।
मृतक दाताओं के मामले में सबसे पहले यह सत्यापित किया जाता है कि दाता मर चुका है या नहीं। आमतौर पर न्यूरोलॉजिस्ट द्वारा मृत्यु का सत्यापन कई बार किया जाता है तब यह निर्धारित किया जाता है कि उसके किसी भी अंग का दान किया जा सकता है। मृत्यु के बाद शरीर को यांत्रिक वेंटीलेटर पर रऽा जाता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि अंग अच्छी स्थिति में रहें। ज्यादातर अंग शरीर के बाहर कुछ घंटों के लिए ही काम करते हैं और इस प्रकार यह सुनिश्चित किया जाता है कि वे शरीर से हटाने के तुरंत बाद प्राप्तकर्ता तक पहुंच जाएं।
शारीरिक अंगों की मांग दुनियाभर के दाताओं की संख्या की तुलना में काफी अधिक है। प्रत्येक वर्ष अनेक लोग अंगदान करने वालों की प्रतिक्षा करते हुए इस धरती से चले जाते हैं। उन्हें कोई अंगदाता नहीं मिल पाता है। इसलिए अंगदाताओं की संख्या बढ़ाने के लिए जनता के बीच संवेदनशीलता जगाने की आवश्यकता है। इस ओर सरकार ने कुछ कदम भी उठाए हैं। जैसे टीवी और इंटरनेट के जरिए जागरूकता फैलाना। हालांकि अभी भी मांग और आपूर्ति के बीच के अंतर को समाप्त करने के लिए बहुत कुछ करना बाकी है। भारतीय कानून के अनुसार अंगदान विधि-सम्म्त है। भारत सरकार द्वारा अधिनियमित मानव अंगों के अधिनियम 1994 के अनुसार प्रत्यारोपण, अंगदान की अनुमति देता है और मस्तिष्क की मृत्यु की अवधारणा को वैध करार देता है।
देश में पिछले अनेक वर्ष से ‘दधीचि देहदान समिति’ अंगदान के लिए कार्य कर रही है। इसके संस्थापक हैं विश्व हिंदू परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष और देश के जाने-माने अधिवक्ता श्री आलोक कुमार। यह संस्था अब तक 377 मृत देहों और 926 आंखों का दान करवा चुकी है।
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