भारतीय राजनीति का एक प्रकाश-पुंज बुझ गया। इसके साथ ही पंजाब की राजनीति के एक लंबे युग का अंत हो गया। देश में चुनाव लड़ने वाले सबसे उम्रदराज व्यक्ति होने के नाते रिकॉर्ड बुक में अपना नाम दर्ज कराने वाले प्रकाश सिंह बादल का सियासी सफर 1947 में बठिंडा जिले के बादल गांव का सरपंच बनने के साथ शुरू हुआ, जो शिखर तक पहुंचा।
स्मृति शेष : स्व. प्रकाश सिंह बादल
देश और पंजाब की राजनीति में आसानी से हार नहीं मानने वाले राजनेताओं में शुमार प्रकाश सिंह बादल के निधन से भारतीय राजनीति का एक प्रकाश-पुंज बुझ गया। इसके साथ ही पंजाब की राजनीति के एक लंबे युग का अंत हो गया। देश में चुनाव लड़ने वाले सबसे उम्रदराज व्यक्ति होने के नाते रिकॉर्ड बुक में अपना नाम दर्ज कराने वाले प्रकाश सिंह बादल का सियासी सफर 1947 में बठिंडा जिले के बादल गांव का सरपंच बनने के साथ शुरू हुआ, जो शिखर तक पहुंचा। उन्होंने 13 बार चुनावी समर में भाग लिया। देश और प्रदेश की सेवा के अपने जज्बे के साथ ही उन्होंने पंजाब को समर्थ राज्य बनाने के सपने को सोपान देना शुरू किया। चाहे देश और पंजाब के विभाजन की बात हो या आपातकाल से लेकर आतंकवाद तक के दौर, सभी में पंजाब को बार-बार परीक्षा देनी पड़ी।
‘‘प्रकाश सिंह बादल ने न सिर्फ पंजाब की प्रगति के लिए अथक प्रयास किए, बल्कि देश के विकास में भी उनका बहुत योगदान रहा है। चार दशक तक भाजपा और अकाली दल के मधुर रिश्ते रहे, लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए यह एक मिसाल बनी।’’
— नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री
पंजाब के अधिकारों के लिए लड़ने वाले बादल को कई बार जेल भी जाना पड़ा। आपातकाल के दौरान उन्हें लगभग डेढ़ साल तक जेल में रहना पड़ा। 1962,1965,1971 एवं कारगिल युद्ध का समय हो या प्राकृतिक आपदा का समय, बादल ने देश के सच्चे सिपाही की भूमिका अदा की। वे हमेशा देश की आजादी में बलिदानियों को याद कर कहते थे कि देश की आजादी व सुरक्षा सबसे ऊपर है। कई बार पंजाब की कमान संभालने वाले बादल ने हमेशा सिख पंथ के मीरी और पीरी के सिद्धांत की रक्षा की। जहां वे राज्य को एक ओर राजनीतिक स्तर पर आगे ले जा रहे थे, वहीं दूसरी ओर पंथ को भी हमेशा साथ लेकर चलते रहे। बादल के नेतृत्व वाली सरकार में कई ऐसे उल्लेखनीय काम हुए, जो न केवल सिख पंथ के लिए, बल्कि अन्य मत-पंथों के लिए भी मिसाल बन गए। छपरचिदी युद्ध स्मारक, विरासत-ए-खालसा, श्रीराम तीर्थ, भगवान वाल्मीकि तीर्थ और जंग-ए-आजादी जैसे स्मारक, जो सदियों तक पंजाब के धर्म और इतिहास को जीवित रखेंगे। ये बादल सरकार की कीर्ति हैं।
बादल पहली बार 1970 में मुख्यमंत्री बने और उन्होंने एक गठबंधन सरकार का नेतृत्व किया, जिसने दुर्भाग्यवश अपना कार्यकाल कांग्रेस की लोकतंत्र को दबाने की नीतियों के कारण पूरा नहीं किया, लेकिन उनकी राजनीतिक कुशलता अवश्य सामने आई। इसके परिणास्वरूप वे 1977-80, 1997-2002, 2007-12 और 2012-2017 में भी राज्य के मुख्यमंत्री रहे।
8 दिसंबर, 1927 को बठिंडा के अबुल खुराना गांव में जन्मे बादल ने लाहौर के फॉरमैन क्रिश्चियन कॉलेज से ग्रेजुएशन की पढ़ाई की। 1957 में मलोट से विधायक बनकर पंजाब विधानसभा में प्रवेश किया। अकाली दल ने 27 मार्च, 1970 को बादल को अपना नेता चुना तो अकाली दल ने जनसंघ के समर्थन से राज्य में सरकार बनाई। तब वे देश के सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री बने। 1972 में वे सदन में विपक्ष के नेता बने, बाद में फिर से मुख्यमंत्री बने। बादल के नेतृत्व वाली सरकारों ने किसानों के हितों पर अपना ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने पंजाब सरकार और केंद्र सरकार में भी मंत्री के रूप में अपनी पहचान बनाई।
बादल ने सतलुज यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर के विचार का कड़ा विरोध किया। इस परियोजना को लेकर एक आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए 1982 में उन्हें गिरफ्तार किया गया। उल्लेखनीय है कि अकाली दल, भाजपा के सबसे पुराने सहयोगियों में रहा है। बादल के निधन से जो क्षति हुई है, उसकी भरपाई संभव नहीं है। वे नेक और बड़े दिल वाले इंसान थे। केंद्र सरकार ने उनके निधन पर दो दिन का शोक घोषित कर जो सम्मान दिया, उससे साफ है कि प्रधानमंत्री के दिल में पंजाब और प्रकाश सिंह बादल के प्रति सम्मान भाव है। उनके विराट व्यक्तित्व को कभी भुलाया नहीं जा सकता। ऐसे महामानव के निधन पर विनम्र श्रद्धांजलि।
(लेखक भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री हैं)
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