पाकिस्तान की वर्तमान परिस्थितियां इतनी बदतर हैं कि देश में नागरिक सरकार कब चरमरा कर ढह जाएगी, कहना मुश्किल है। न तो वहां के नेताओं में देश को लेकर कोई चिंता है, न फौज ही सरकार के कहे को मानती है। सरकारी दफ्तरों में भ्रष्टाचार की बाढ़ बह रही है। कर्मचारियों के वेतन के लाले पड़े हैं। कारोबार ठप है और विदेशी मुद्रा भंडार रीता पड़ा है। आईएफएफ से कर्ज की किस्तों से गुजारा करना मुश्किल है। आम लोगों को खाने के लिए अन्न नहीं मिल रहा है। इसलिए सारी परिस्थितियां वहां एक बार फिर सैन्य शासन के आने की चिंताजनक संभावनाएं दर्शा रही हैं। यह किसी और ने नहीं, खुद वहां के एक पूर्व प्रधानमंत्री ने सार्वजनिक तौर पर कहा है।
पाकिस्तान के ये पूर्व प्रधानमंत्री हैं शाहिद खाकन अब्बासी। कल एक टीवी साक्षात्कार में उन्होंने लगभग चेतावनीभरे स्वर में का कि आने वाले दिनों में पाकिस्तान में यदि जनता तथा शाहबाज सरकार के बीच कोई गंभीर टकराव होता है तो उस स्थिति में फौज कोई कदम उठा सकती है। शाहिद ने यह भी कहा कि जब किसी भी मुल्क में राजनीतिक और संवैधानिक व्यवस्थाएं ढह जाती हैं, तो बहुत बार दूसरे तरीके अमल में लाए जाते हैं। आज के हालात को देखकर लगता है, सैन्य शासन वह अन्य तरीका हो सकता है।
भारत का पड़ोसी इस्लामवादी देश फिलहाल गंभीर आर्थिक तथा राजनीतिक उठापटक का सामना कर रहा है। ऐसे में एक टेलीविजन साक्षात्कार में पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री शाहिद खाकन अब्बासी का ऐसा बयान देना गंभीरता से लिया जा रहा है। बेशक, इस बयान के आने के बाद वहां के राजनीतिक गलियारों में हलचल मची हुई है।
शाहिद खाकन अब्बासी पड़ोसी इस्लामी देश के 21वें प्रधानमंत्री रहे थे। उन्होंने कहा कि अगर देश में तंत्र असफल हो गया या सरकारी संस्थान आपस में टकराए तो सरकार भी आगे काम नहीं कर पाती। ये वही हालात हैं जब किसी देश में मार्शल लॉ की नौबत दिखने लगती है। यह कोई छुपा तथ्य नहीं है कि पाकिस्तान में पहले इसी तरह के हालातों में बहुत बार मार्शल लॉ के तहत सेना के जनरलों का राज चला है।
शाहिद ने जैसे ही मुल्क में फिर से सैन्य हुकूमत के आने का अंदेशा व्यक्त किया है, तमाम मीडिया समूह और अखबारों में विशेष आलेख प्रकाशित हुए हैं। क्योंकि पाकिस्तान में सारी परिस्थितियां उसी ओर इशारा कर रही हैं, तो तथाकथित बौद्धिक जगत में भी खलबली सी मची है। पूर्व प्रधानमंत्री का बयान आखिर काफी मायने रखता है। शाहिद का आगे कहना था कि पाकिस्तान में न पैसा है, न कोई राजनीतिक सोच ही है, इसलिए संकट बहुत गंभीर दिख रहा है। और अगर ऐसा है तथा हालात जल्दी ही नहीं सुधरते तो फिर दूसरे तरीके के तौर पर सेना की हुकूमत ही एक रास्ता हो सकती है। इस बात को आगे बढ़ाते हुए पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा कि उस स्थिति से बचने के लिए हालात से जुड़े सभी पक्षों को बातचीत शुरू करके आगे का रास्ता निकालना चाहिए।
उल्लेखनीय है कि अगस्त 2017 से मई 2018 तक पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज पार्टी के वरिष्ठ नेता शाहिद खाकन अब्बासी पड़ोसी इस्लामी देश के 21वें प्रधानमंत्री रहे थे। अपने ताजा टीवी साक्षात्कार में उन्होंने यह भी कहा कि अगर देश में तंत्र असफल हो गया या सरकारी संस्थान आपस में टकराए तो सरकार भी आगे काम नहीं कर पाती। ये वही हालात हैं जब किसी देश में मार्शल लॉ की नौबत दिखने लगती है। यह कोई छुपा तथ्य नहीं है कि पाकिस्तान में पहले इसी तरह के हालातों में बहुत बार मार्शल लॉ के तहत सेना के जनरलों का राज चला है। वहां के पिछले कुछ महीनों के मीडिया समाचारों का विश्लेषण करने से यह और अधिक संभावना वाली बात बन जाती है।
टीवी साक्षात्कार में पूर्व प्रधानमंत्री ने चेतावनी भी दी कि हालात ठीक करने जरूरी हैं नहीं तो सब हाथ से निकल जाएगा और तब दूसरे उपाय खोजे जाएंगे जिसमें मार्शल लॉ भी एक रास्ता है। हालांकि उनके हिसाब से संतोष की बात है कि सेना की तरफ से इस वक्त ऐसी किसी संभावना पर सोचा नहीं जा रहा है।
पाकिस्तान के बनने के बाद से अब तक, आधे से ज्यादा वक्त तो वहां फौजी जनरलों ने कुर्सी संभाली है। फौज ने कई बार तख्ता पलट करके सुरक्षा और विदेश नीतियों में भी अपना दखल दिया है। लेकिन पिछले कुछ सालों से बिगड़ते हालात के बावजूद, पाकिस्तान की फौज का यही कहना रहा है कि ‘फौज देश की राजनीति से फासला बनाकर रखेगी’। खुद पूर्व जनरल बाजवा ने यह बात सार्वजनिक रूप से कही थी।
राजनीतिक और आर्थिक संकट के बाद पाकिस्तान संवैधानिक संकट में फंस हुआ है, क्योंकि पीएमएलएन के नेतृत्व वाली संघीय गठबंधन सरकार ने पिछले साल जनवरी में पंजाब और खैबर पख्तूनख्वा प्रांतों की विधानसभाओं के चुनाव कराने के उच्चतम न्यायालय के फैसले को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। खान ने कहा कि अपनी हार को देखते हुए पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) और उसकी सहयोगी पार्टियां देश में अभी या अक्तूबर में चुनाव नहीं चाहती हैं।
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