दाने—दाने को मोहताज अरबपति नेताओं की हुकूमत वाले पाकिस्तान में गृहयुद्ध जैसी परिस्थितियां बनी हुई हैं। हालात यहां तक खराब हो चले हैं कि आम पाकिस्तानी भी अब वहां रहना नहीं चाहते हैं। जो समर्थ हैं वे जुगत भिड़ाकर उस देश से बाहर जा बसने की सोच रहे हैं। कितने ही परिवार तो पलायन कर ही चुके हैं। यह कहना है पाकिस्तान के एक जाने-माने अर्थविद का।
देश के तेजी से खराब होते जा रहे आर्थिक हालात से मजहब के आधार पर जिन्ना के जबरन बनवाए इस देश में इतनी जल्दी ऐसी स्थिति खड़ी हो जाएगी, यह किसी ने शायद सोचा तक न होगा।
पाकिस्तान के तेजी से खराब होती आर्थिक स्थिति के संदर्भ में वहीं के अर्थविद आतिफ मियां ने लिखा है कि, पाकिस्तान ऐसा देश बन गया हैं जहां कोई निवेशक पैसा लगाने को तैयार नहीं है। वहां के लोग दूसरे देशों के वीसा लेने की ऐसी उतावली में हैं कि आज गूगल ट्रेंड्स में पाकिस्तान को देखो तो यहां सबसे ज्यादा खोजे जाने वाले शब्दों में वीसा भी शामिल है।
आतिफ ने अपना ये हैरान करने वाला लेख ‘वॉयस ऑफ अमेरिका’ के लिए लिखा है। इसमें पैसे की बढ़ती कंगाली पर कटाक्ष करते हुए आतिफ मियां लिखते हैं कि पाकिस्तान में कोई निवेशक नहीं आना चाहता, कोई अपना पैसा यहां नहीं लगाना चाहता।
पड़ोसी इस्लामी देश के मशहूर अर्थविद आतिफ का कहना है कि भविष्य में मुंहबाएं खड़ा आर्थिक संकट, डावांडोल सियासत, तेजी से बढ़ रही खाद्य मुद्रास्फीति तथा इसके साथ ही आतंकी वारदातों में बढ़त दिखने की वजह से पाकिस्तानियों की एक बड़ी संख्या देश से पलायन करने को तैयार बैठी है। पाकिस्तान में ये अर्थविद आतिफ अहमदी समुदाय से हैं। वहां अहमदियाओं से इतनी नफरत की जाती है कि उन्हें मुसलमान ही नहीं माना जाता। संभवत: इसी वजह से आतिफ को पांच से पहले अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा था।
आतिफ ने अपना ये हैरान करने वाला लेख ‘वॉयस ऑफ अमेरिका’ के लिए लिखा है। इसमें पैसे की बढ़ती कंगाली पर कटाक्ष करते हुए आतिफ मियां लिखते हैं कि पाकिस्तान में कोई निवेशक नहीं आना चाहता, कोई अपना पैसा यहां नहीं लगाना चाहता।
इसी लेख में वे आगे लिखते हैं कि भारत या बांग्लादेश में यह वीसा शब्द इतना ज्यादा नहीं खोजा जाता, लेकिन पाकिस्तान में तो यह सबसे ज्यादा खोजे जाने वाले शब्दों में से एक है। इससे साफ है कि कितनी बड़ी तादाद में पाकिस्तानी लोग अपना यह देश छोड़ने के मौके देख रहे हैं। आतिफ का मानना है कि पाकिस्तान में नेता तो भ्रष्ट हैं ही, वहां के लोकसेवक, सैना के अधिकारी और संस्थाएं, हुकूमत, संस्थान आदि पर से वहीं के लोगों का भरोसा उठता जा रहा है। उन्हें उम्मीद की कोई किरण नजर नहीं आ रही है।
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