धर्मरक्षा की स्थापना के लिए 10 अवतारों की प्रामाणिकता है, जिसमें भगवान परशुराम एक अवतार हैं। भगवान परशुराम वैदिक और पौराणिक इतिहास में सबसे शक्तिशाली और बड़े व्यापक चरित्र वाले हैं। उनका वर्णन सतयुग के समापन से कलियुग के प्रारम्भ तक मिलता है। इतना लम्बा चरित्र, इतना लम्बा जीवन किसी और अवतार का नहीं मिलता।
भगवान परशुराम को छोड़कर शेष सभी अवतार किसी न किसी विशेष प्रयोजन के लिये ही हुए, वे कार्य पूर्ण हो जाने पर अपने लोक को गमन कर गए, जबकि पुराणों के अनुसार भगवान परशुराम आज भी महेन्द्र पर्वत पर निवास करते हैं। वह चिरंजीवी हैं। भगवान परशुराम के पदचिह्न पूरे भारत में हैं।
भगवान परशुराम मन्दिर-देवगढ़
देवगढ़ में प्राचीन दशावतार का मन्दिर है। यह स्थान झांसी से 130 तथा ललितपुर से 33 किलोमीटर की दूरी पर है। यह गुप्तकाल के समय का मन्दिर है तथा ईसा से तीन सौ वर्ष पूर्व का है। मन्दिर के भीतर दशों अवतारों-मत्स्य, कच्छप, वाराह, नरसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध तथा कल्कि सभी की मूर्तियां स्थापित हैं।
मंगेश महादेव-गोवा
गोवा में एक गांव है कुडथाल। इसे कुट्ठाल भी कहते हैं। इसका प्राचीन नाम कुशस्थल है। इस गांव में मंगेश महादेव का विशाल मन्दिर था, परन्तु पुर्तगालियों के शासनकाल में मन्दिर को नष्ट कर दिया गया था। इस महादेव मन्दिर का भगवान परशुराम से विशेष संबंध है। भगवान परशुराम ने अनेक महायज्ञों का अनुष्ठान किया था,उसी क्रम में एक महारुद्र यज्ञ इसी सह्याद्रि पर्वत क्षेत्र में सम्पन्न कराया था।
परशुरामेश्वर शिव मंदिर :
सातवीं सदी में निर्मित परशुरामेश्वर शिव मंदिर भुवनेश्वर का प्राचीनतम शिव मन्दिर है।
परशुरामेश्वर महादेव (पुरा महादेव) :
उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले से 15 मील दूर बालौनी कस्बा है, जहां से दो मील उत्तर की ओर हरनद पर जमदग्नि मुनि का आश्रम है। जो पुरा महादेव नाम से प्रसिद्ध है। हरनद को हिण्डन भी कहते हैं।
परशुराम जी पर काव्य
शिवसागर मिश्र ने कहा था कि, शस्त्र और शास्त्र का महत्व राष्ट्रकवि श्री रामधारी सिंह दिनकर ने बहुत पहले समझ लिया था। 1962 में चीनी हमले के काल में उन्होंने इसी उद्देश्य से परशुराम की प्रतीक्षा नामक काव्य-पुस्तिका रची थी।
उत्तरकाशी :
उत्तरकाशी में जमदग्नि एवं रेणुका का मंदिर है। जहां महर्षि जमदग्नि की प्रतिमा सिर रहित है। यह उस कथा की द्योतक है, जो सहस्रार्जुन द्वारा उनका वध करके सिर काट लेना बताती है।
महेन्द्र पर्वत :
इस पर्वत का नाम रामायण, महाभारत, पुराणों एवं काव्यग्रंथों में आता है। पर्वतों में इसका नाम प्रमुख रूप ये आता है—महेन्द्रो मलय: सह्य: शक्तिमानृक्षवांस्तथा। कलिंग से आरंभ होने वाली पूर्वी घाट की शृंखला जो पूर्व की ओर जाती है, उसका नाम महेन्द्राचल पर्वत है। आज भी गन्जम के समीप यह महेन्द्रमलै कहलाता है। चेन्नै से कोलकाता रेलवे लाइन पर मण्डासारोड स्टेशन है। मण्डासा महेन्द्र का ही बदला हुआ नाम है।
तिरुअनंतपुरम
तिरुअनंतपुरम के राजकीय संग्रहालय में भगवान के दशावतारों की हाथी दांत से निर्मित सुंदर मूर्तियां सुरक्षित रखी हुई हैं। इनके मध्य एक लम्बे आकार में भगवान परशुराम की खड़ी मूर्ति है।
टिप्पणियाँ