अनगिनत महिलाएं ऐसी हैं, जिन्होंने किसी न किसी कारण से 10वीं के बाद पढ़ाई नहीं की। कुछ 10वीं में फेल भी हो जाती हैं। ऐसी महिलाएं इसे ही अपना भाग्य मानकर खेती-मजदूरी करने लगती हैं। ये महिलाएं भी कुछ कर पाएं, घर-गृहस्थी को चलाने में योगदान दे पाएं, इन सबको देखते हुए भाग्यनगर (हैदराबाद) की सेवा भारती ने एक पहल की है।
ग्रामीण क्षेत्रों में अनगिनत महिलाएं ऐसी हैं, जिन्होंने किसी न किसी कारण से 10वीं के बाद पढ़ाई नहीं की। कुछ 10वीं में फेल भी हो जाती हैं। ऐसी महिलाएं इसे ही अपना भाग्य मानकर खेती-मजदूरी करने लगती हैं। ये महिलाएं भी कुछ कर पाएं, घर-गृहस्थी को चलाने में योगदान दे पाएं, इन सबको देखते हुए भाग्यनगर (हैदराबाद) की सेवा भारती ने एक पहल की है। इसके अंतर्गत इन महिलाओं को नर्सिंग सहायिका का नि:शुल्क प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इसके लिए एक केंद्र बनाया गया है, जिसका शुभारंभ जनवरी, 2022 में हुआ। इसमें 18-35 वर्ष की उन महिलाओं को प्रवेश दिया जाता है, जो 10वीं कर चुकी हैं।
‘‘अब तक 203 महिलाओं को नर्सिंग सहायिका के लिए प्रशिक्षित किया गया है। इनमें से 93 प्रतिशत महिलाओं को निजी अस्पतालों में रोजगार भी मिल गया है।’’ उन्होंने यह भी बताया कि हर महीने 30 महिलाओं का नामांकन किया जाता है। इन्हें चार महीने में मौखिक, लिखित और प्रयोगात्मक रूप से इतनी जानकारी दी जाती है कि ये आसानी से किसी अस्पताल या घर में किसी मरीज की देखरेख कर सकती हैं। -कुलदीप सक्सेना, सेवा भारती के वरिष्ठ कार्यकर्ता
कुछ विशेष परिस्थिति में 10वीं फेल महिलाओं को भी लिया जाता है। ये सभी महिलाएं शोषित, पीड़ित या अन्य किसी तरह से प्रताड़ित होती हैं। विधवा, तलाकशुदा और घुमंतू जातियों की महिलाओं को प्राथमिकता दी जाती है। इन महिलाओं का चयन गांव-गांव जाकर किया जाता है। इसके लिए कुछ संगठनों के कार्यकर्ताओं की मदद ली जाती है। जिनका चयन हो जाता है, उन्हें भाग्यनगर लाया जाता है। यहां उनके रहने, खाने आदि की व्यवस्था सेवा भारती ही करती है।
इस प्रकल्प की देखरेख करने वाले और सेवा भारती के वरिष्ठ कार्यकर्ता कुलदीप सक्सेना ने बताया, ‘‘अब तक 203 महिलाओं को नर्सिंग सहायिका के लिए प्रशिक्षित किया गया है। इनमें से 93 प्रतिशत महिलाओं को निजी अस्पतालों में रोजगार भी मिल गया है।’’ उन्होंने यह भी बताया कि हर महीने 30 महिलाओं का नामांकन किया जाता है। इन्हें चार महीने में मौखिक, लिखित और प्रयोगात्मक रूप से इतनी जानकारी दी जाती है कि ये आसानी से किसी अस्पताल या घर में किसी मरीज की देखरेख कर सकती हैं।
अब तक जितनी भी महिलाएं प्रशिक्षित हुईं, उनमें अधिकतर निजी अस्पतालों में नौकरी कर रही हैं। उन्हें हर महीने 10-12 हजार रु. के बीच वेतन मिलता है। कुलदीप सक्सेना ने बताया कि यहां प्रशिक्षित महिलाओं को सरकारी अस्पतालों में भी सेवा करने का अवसर मिले, इसके लिए संबंधित विभाग और लोगों से बात चल रही है। उन्होंने यह भी बताया कि प्रशिक्षण के दौरान महिलाओं को गीता का अध्ययन, साथ ही योग-ध्यान भी कराया जाता है, ताकि ये लोग मानसिक,धार्मिक और वैचारिक रूप से अपनी जड़ों से जुड़ी रहें।
सेवा भारती के इस प्रकल्प को कुछ निजी कंपनियों के साथ ही रोटरी क्लब, मारवाड़ी समाज, जैन समाज आदि संगठनों से आर्थिक मदद मिलती है।
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