मुंबई : वैश्विक स्तर पर बढ़ रहा प्रदूषण का खतरा अब मानसिक बीमारियों को भी फैलाने लगा है। वैश्विक स्तर पर रिपोर्ट आई है कि जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के बीच प्रदूषण लोगों को मनोभ्रंश यानी डिमेंशिया का शिकार बना रहा है।
दुनिया भर के वैज्ञानिकों ने रिसर्च करके दावा किया है कि विश्वस्तर पर 57 मिलियन से अधिक लोग मनोभ्रंश यानी डिमेंशिया के शिकार हैं और इसकी संख्या चार प्रतिशत की रफ्तार से बढ़ रही है। प्रदूषण को लेकर मानव ही खुद का दुश्मन बन बैठा है। इसके लक्षण कहीं ज्यादा तो कहीं कम हैं। यह हालिया रिसर्च प्रदूषण के सूक्ष्म कणों पीएम2.5 पर की गई है। ये सूक्ष्म कण बेहद घातक हैं जो हवा के साथ चलते हैं। मौसम के हिसाब से कभी ऊपर चले जाते हैं या फिर नमी में नीचे सतह पर आ जाते हैं। मुंबई की बात करें तो कंस्ट्रक्शन, वाहनों के धुएं और कचरे के अंबार से ये सूक्ष्म कण फैल रहे हैं। अब तक शोध में बताया गया है कि सांस के माध्यम से ये सूक्ष्म कण फेफड़ों और हृदय को नुकसान पहुंचाते हैं लेकिन अब खुलासा हुआ है कि ये कण लोगों के मनो- मस्तिष्क पर भी असर डाल रहे हैं। अमेरिका में हार्वर्ड टीएच चैन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के विशेषज्ञों ने डिमेंशिया और उसके संपर्क में आने के बीच जांच के 14 शोधों पर गौर किया है। प्रदूषण के कारण लोगों के दिमाग पर हो रहे असर को खतरनाक बताया है।
पीएम यानी फाइन पार्टिकुलेट मैटर एक वायु प्रदूषक है, जो ठोस या तरल पदार्थों के छोटे टुकड़ों से बना होता है। सांस लेने के दौरान यह लोगों के शरीर के अंदर चला जाता है। शोधकर्ताओं ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि हर दो माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर औसतन वार्षिक पीएम2.5 मनोभ्रंश यानी डिमेंशिया के जोखिम को चार प्रतिशत बढ़ा देता है। इसके निष्कर्ष बीएमजे जर्नल में प्रकाशित किए गए हैं। रिपोर्ट के अनुसार नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड गैसों के संपर्क में आने से डिमेंशिया का जोखिम दूसरी वजह है। मानव की ओर से फैलाए जा रहे वायु प्रदूषण में ही डिमेंशिया पाया गया है। वायु प्रदूषण अन्य स्वास्थ्य स्थितियों के बढ़ते जोखिम के बीच तकरीबन 6.5 मिलियन मौतों का कारण बन रहा है।
मुंबई के जे.जे. अस्पताल के डॉ. रोहित हेगड़े बताते हैं कि इस तरह की समस्याएं बढ़ी हैं। ऐसे मरीज आ रहे हैं। खराब एयर क्वालिटी से लोगों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। वायु प्रदूषण के कारण लोगों में सांस से जुड़ी बीमारियों, आंखों में जलन और एलर्जिक रिएक्शन्स जैसी समस्याएं बढ़ रही हैं। यूनीसेफ और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इसकी पुष्टि की है। जिनका यूनिटी सिस्टम कमजोर है, उस पर असर पड़ रहा है।
डॉ. रोहित के अनुसार खासकर बच्चों और बुजुर्गो पर इसका प्रभाव देखा जा रहा है। ब्रेन और आंखों पर प्रदूषित हवा का बुरा प्रभाव हो रहा है। वायु प्रदूषण न सिर्फ फेफड़े और दिल को बल्कि मस्तिष्क को भी नुकसान पहुंचा रहा है। बुजुर्गों के दिमाग पर तो वायु प्रदूषण का इतना बुरा असर पड़ रहा है कि कइयों की जुबान बोलते वक्त लड़खड़ाने लगती है। ठाणे मेंटल अस्पताल के सुपरिंटेंडेंट डॉ. नेताजी मुलिक ने बताया कि हमारे अस्पताल में मानसिक बीमारियों से जुड़े कई तरह के मामले आते हैं और तरह-तरह की समस्याएं होती हैं। प्रदूषण के मामले में हम अध्ययन कर रहे हैं।
टिप्पणियाँ