साइबर अपराध के पीछे मुख्य कारण तकनीकी ही नहीं, बल्कि व्यावहारिक भी होता है। पहले अपराधी व्यक्ति का भरोसा हासिल करता है, फिर ठगी को अंजाम देता है। अक्सर ऐसे मामलों में जागरुकता का अभाव देखा गया है। इसलिए ऑनलाइन ठगी के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए केंद्र सरकार कई कार्यक्रम चलाती है।
गुप्ता जी के फोन पर अज्ञात नंबर से एक वीडियो कॉल आई। कॉल उठाना उनकी जिंदगी की सबसे बड़ी गलती बन गई। कॉल उठाते ही सामने एक लड़की कपडे उतारने लगी। इससे पहले की गुप्ता जी कुछ समझ पाते, उस लड़की को देखते हुए उनकी 5 सेकंड की वीडियो रिकॉर्ड हो गई। इसके बाद साइबर अपराधियों ने 5 सेकंड के उस वीडियो को रिपीट मोड में डाल कर 45 सेकंड का वीडियो बना लिया। फिर गुप्ता जी को धमकी भरे कॉल आने लगे कि 2,000 रुपये नहीं दिए तो वीडियो उनके कार्यालय, दोस्तों या संबंधियों को भेज देंगे।
ऋतु चौहान को तत्काल कुछ पैसों की जरूरत थी। उन्होंने कर्जा लेने के ऐप से 5,000 रुपये का कर्ज लिया। एक सप्ताह बाद उन्होंने कर्ज की रकम चुका भी दी। लेकिन वह कर्ज लेकर बड़ी मुसीबत में फंस गई। उनके फोन से कुछ तस्वीरें चुराकर अपराधी उसकी अश्लील तस्वीरें बनाकर उनके संबंधियों, दोस्तों को भेज कर उनसे पैसे मांगने लगे।
दीपेश को व्हाट्सऐप पर उनके दोस्त का संदेश आया कि वह किसी मुसीबत में है, तत्काल एक लाख रुपये चाहिए। उसने शाम तक लौटाने का वादा भी किया। दीपेश ने बिना सोचे पैसे हस्तांतरित कर दिए। शाम को जब उन्होंने अपने दोस्त से बात की तो पता चला कि उसने पैसे नहीं मांगे। साइबर अपराधी ने उनके दोस्त की फोटो और पहचान चुराकर उसके नाम से पैसे मांगे थे। फेसबुक पर रूपा के साथ भी ऐसा ही फर्जीवाड़ा हुआ। किसी ने उनके दोस्त के नाम से फेसबुक प्रोफाइल बनाकर पैसे मांगे।
कोई आपका फोन लेकर उसमें एक कोड डायल करके कॉल फॉरवार्डिंग विकल्प को सक्रिय कर दे तो भी ओटीपी उसके पास चला जाता है। फोन से जूम, गूगल मीट आदि के दौरान स्क्रीन साझा करने पर भी सामने वाले को ओटीपी दिखाई देता है। यही नहीं, फोन में वॉइस मेल इनेबल करने पर आपका ओटीपी चुराया जा सकता है। इसलिए सतर्कता जरूरी है, ताकि कोई आपसे ओटीपी हासिल करने की कोशिश करे तो उसके झांसे में न आएं।
ऐसे करें बचाव
साइबर अपराध से बचने के लिए कुछ बातों का ध्यान रखना होगा। जैसे- कोई लालच देकर या डरा कर आपसे कुछ करने को कहे तो पुलिस से इसकी शिकायत करें। फोन या ई-मेल पर आने वाले किसी लिंक पर न क्लिक करें और न ही अपनी जानकारी साझा करें। अक्सर ठग आपको कोई लुभावना ऑफर, कैशबैक, बैंक कर्मचारी बन कर एटीएम कार्ड ब्लॉक होने या बिजली कटने या इंटरनेट सेवा प्रदाता बन कर ठगने का प्रयास करते हैं। कभी-कभी पुलिस बन कर भी अपराधी डराने का प्रयास करते हैं। इसके अलावा, यदि कोई आपको पैसे हस्तांतरण करना चाहे तो उसके भेजे लिंक पर न तो क्लिक करें, न स्कैन करें और न ही ओटीपी साझा करें। अन्यथा आपकी गाढ़ी कमाई पर डाका पड़ सकता है। फिर भी यदि आपके साथ किसी प्रकार से ठगी हो जाए तो हेल्पलाइन 1930 पर कॉल करके अपराधियों के खाते का पैसा ब्लॉक करा सकते हैं, ताकि जांच के बाद आपका पैसा आपको मिल सके। इसके अलावा, वेबसाइट http://www.cybercrime.gov.in पर भी ऑनलाइन शिकायत दर्ज करा सकते हैं।
अपराध के ठिकाने
इस तरह की घटनाएं अब आम हो गई हैं। 10 में से एक व्यक्ति किसी न किसी तरह से साइबर अपराध का शिकार हो चुका है। बीते कुछ वर्षों में इंटरनेट का उपयोग और डिजिटल लेन-देन बढ़ा है तथा इसी के साथ साइबर अपराध भी काफी बढ़ा है। पहले इस तरह के साइबर अपराध को ‘जामताड़ा अपराध’ नाम से संबोधित किया जाता था। कारण, झारखंड के जामताड़ा में अपराधियों ने संगठित और सुनियोजित तरीके से आनलाइन ठगी को व्यावसायिक रूप दे दिया था। अब जामताड़ा के तर्ज पर दूसरे राज्यों में भी बड़ी संख्या में अवैध कॉल सेंटर खुल गए, जहां से साइबर ठगी को अंजाम दिया जाने लगा हैं। आज देश में हर दिन हजारों लोग साइबर ठगी का शिकार हो रहे हैं। एक अनुमान के मुताबिक, देश के लगभग 35 स्थान साइबर ठगी के ‘हॉटस्पॉट’ बन गए हैं। इनमें हरियाणा के नूंह, मेवात, पलवल, भिवानी सहित कुछ इलाके, पंजाब का मानसा, राजस्थान का अलवर, दिल्ली के अशोकनगर, उत्तमनगर, शकरपुर, हरकेश नगर, ओखला, आजादपुर, बिहार के बांका, बेगुसराय, जमुई, नालंदा व गया, असम के बरपेटा, धुबरी, गोआलपाड़ा, मोरीगांव, नौगांव, झारखंड के जामताड़ा, देवघर, पश्चिम बंगाल के आसनसोल, दुर्गापुर, गुजरात के अमदाबाद, सूरत, उत्तर प्रदेश के आजमगढ़, नोएडा सहित आंध्र प्रदेश के चित्तूर और महाराष्ट्र के मुंबई जैसे शहर शामिल हैं। इन स्थानों से लाखों साइबर अपराधी हर दिन रोजाना औसतन 10 करोड़ रुपये की ठगी कर रहे हैं।
सबूत नहीं छोड़ते
अपराधियों को ऑनलाइन धोखाधड़ी के लिए दो चीजों की जरूरत होती है- सिम कार्ड और बैंक खाता। हालांकि दोनों ही चीजें ग्राहक के सत्यापन के बिना हासिल नहीं की जा सकती हैं, इसके बावजूद अपराधी हर सप्ताह न केवल हजारों प्री-पेड सिम कार्ड हासिल कर रहे हैं, बल्कि बैंक खाते भी खुलवा लेते हैं। बैंक खाते जिनके नाम पर खुलवाए जाते हैं, उन्हें इसकी जानकारी ही नहीं होती है। इस तरह अपराधी बिना अपनी पहचान सार्वजनिक किए लोगों की गाढ़ी कमाई को उड़ा कर इन खातों में डालते हैं। यही कारण है कि अपराधियों के पकड़े जाने पर भी पुलिस को उनके विरुद्ध खास साक्ष्य नहीं मिल पाते हैं। नतीजा, अपराधी आसानी से जमानत पर छूट जाते हैं और फिर ठगी शुरू कर देते हैं। जाहिर है, साइबर अपराधियों के लिए यह सब इतना आसान नहीं है। उनके पीछे एक तंत्र है, जो हर तरह से उनकी मदद करता है। यह तंत्र साइबर अपराधियों को ठगी के पैसे देश के बाहर भेजने में भी मदद करता है। देश से बाहर पैसे भेजने के लिए क्रिप्टो करेंसी, अमेजन गिफ्ट कार्ड और मोबाइल गेमिंग करेंसी जैसे रोबुक्स एंड बैटल पॉइंट्स आदि का इस्तेमाल किया जाता है।
सरकार के प्रयास
देश में बढ़ते साइबर अपराध के मद्देनजर केंद्र सरकार कई बिंदुओं पर काम कर रही है। खासतौर से वित्तीय अपराध से निपटने के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय ने एक हेल्पलाइन शुरू की है। गृहमंत्रालय की आई4सी शाखा ने एक आनलाइन शिकायत पोर्टल भी शुरू किया है। इस पर देश के किसी भी हिस्से से साइबर अपराध की शिकायत दर्ज कराई जा सकती है। शिकायत दर्ज कराने के बाद पीड़ित व्यक्ति को शिकायत संख्या दी जाती है। साथ ही, इस शिकायत को उसके घर के नजदीकी थाने में जांच के लिए भेजा जाता है। चूंकि महिलाओं और बच्चों से जुड़े अपराध भी काफी बढ़े हैं, इसलिए पोर्टल पर महिलाओं व बच्चों के लिए भी विशेष सुविधा है। यहां पीड़ित अपनी पहचान गुप्त रखकर परामर्श ले सकता है। इसके अलावा, सरकार ने सभी राज्यों की पुलिस के लिए साइबर अपराध अन्वेषण से जुड़े सभी टूल्स और तकनीक की खरीद हेतु विशेष बजट का प्रावधान किया है। केंद्रीय गृह मंत्रालय के नेतृत्व में ‘पुलिस टेक्नोलॉजी मिशन’ नाम से एक कार्यबल का भी गठन किया गया है। इसमें सभी राज्यों के मुख्यमंत्री तथा पुलिस प्रमुख शामिल हैं। इसका उद्देश्य राज्यों की पुलिस को भविष्य में होने वाले तकनीकी अपराधों की विवेचनाओं के लिए तैयार करना है। यही नहीं, देश में होने वाले साइबर अपराधों की रोकथाम के लिए राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा सचिवालय का भी गठन किया गया है।
डाटा चोरी की वजह
साइबर अपराध बढ़ने का मुख्य कारण मोबाइल से हर पल होने वाले डाटा की चोरी भी है। दरअसल, जब आप स्मार्ट फोन से इंटरनेट पर कुछ खोजते हैं, तो अनजाने में ही उन वेबसाइट्स को अपना ई-मेल, फोन नंबर दे देते हैं। इसके अलावा, जिन एप्स का प्रयोग करते हैं, वे भी फोन नंबर से लेकर आपके फोन में मौजूद डाटा हासिल करते रहते हैं। फिर अपराधी इंटरनेट से आपका डाटा उड़ा लेते हैं। इस डाटा से उन्हें आपकी गतिविधियों का पता चलता है और फिर इसी के जरिये वे आनलाइन अपराध को अंजाम देते हैं। डाटा चोरी रोकने के लिए भारत सरकार टिकटॉक, शेयरइट जैसे कई चीनी मोबाइल एप को प्रतिबंधित कर चुकी है। ये भारतीयों का डाटा चुराकर चीन स्थित सर्वर पर भेजते थे। वहां से ये डाटा विभिन्न माध्यमों से होते हुए अंतत: अपराधियों तक पहुंच जाता है। डाटा सुरक्षा के लिए सरकार एक विधेयक भी लाने वाली है। इसके जरिये उन कंपनियों की जवाबदेही तय की जाएगी, जो उपभोक्ता के मोबाइल या दूसरे माध्यमों से डाटा एकत्र करती हैं।
देश में बढ़ते साइबर अपराध के मद्देनजर केंद्र सरकार कई बिंदुओं पर काम कर रही है। खासतौर से वित्तीय अपराध से निपटने के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय ने एक हेल्पलाइन शुरू की है। गृहमंत्रालय की आई4सी शाखा ने एक आनलाइन शिकायत पोर्टल भी शुरू किया है। इस पर देश के किसी भी हिस्से से साइबर अपराध की शिकायत दर्ज कराई जा सकती है। शिकायत दर्ज कराने के बाद पीड़ित व्यक्ति को शिकायत संख्या दी जाती है। साथ ही, इस शिकायत को उसके घर के नजदीकी थाने में जांच के लिए भेजा जाता है। चूंकि इस तरह के अपराध भी काफी बढ़े हैं, इसलिए पोर्टल पर महिलाओं व बच्चों के लिए भी विशेष सुविधा है।
जागरूकता का अभाव
साइबर अपराध के पीछे मुख्य कारण तकनीकी ही नहीं, बल्कि व्यावहारिक भी होता है। पहले अपराधी व्यक्ति का भरोसा हासिल करता है, फिर ठगी को अंजाम देता है। अक्सर ऐसे मामलों में जागरुकता का अभाव देखा गया है। इसलिए ऑनलाइन ठगी के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए केंद्र सरकार कई कार्यक्रम चलाती है। ये कार्यक्रम राज्य सरकारों और केंद्रीय जांच एजेंसियों द्वारा भी चलाए जाते हैं। लेकिन शातिर अपराधी अपराध के तौर तरीकों में बदलाव करते रहते हैं। इसलिए महज विज्ञापन समझकर इन कार्यक्रमों की अनदेखी न करके उसमें शामिल होना चाहिए, ताकि आप साइबर अपराध के तौर-तरीकों से परिचित हो सकें और सतर्क रह कर अपना बचाव कर सकें। एक एफएम चैनल पर प्रसारित होने वाला कार्यक्रम ‘हिडन फाइल्स’ लोगों को जागरूक करने में बड़ी भूमिका निभा रहा है। टीवी पर भी ऐसे कार्यक्रम चलाए जाने चाहिए। लोगों को केवल यह बता देना कि वे किसी से ओटीपी साझा न करें या किसी अनजान लिंक पर क्लिक न करें, काफी नहीं है। अपराधी अब किसी से सीधे ओटीपी नहीं मांगते, बल्कि कुछ ऐसा उपक्रम करते हैं कि बिना आपकी जानकारी के ओटीपी उसके पास पहुंच जाता है। दरअसल, जब आप आती हुई दो कॉल्स को आपस में जोड़ देते हैं तो आपका ओटीपी अपराधी के पास चला जाता है।
दूसरा तरीका है, कोई आपका फोन लेकर उसमें एक कोड डायल करके कॉल फॉरवार्डिंग विकल्प को सक्रिय कर दे तो भी ओटीपी उसके पास चला जाता है। फोन से जूम, गूगल मीट आदि के दौरान स्क्रीन साझा करने पर भी सामने वाले को ओटीपी दिखाई देता है। यही नहीं, फोन में वॉइस मेल इनेबल करने पर आपका ओटीपी चुराया जा सकता है। इसलिए सतर्कता जरूरी है, ताकि कोई आपसे ओटीपी हासिल करने की कोशिश करे तो उसके झांसे में न आएं।
(लेखक साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ हैं)
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