एशियन एलिफेंट कॉरिडोर में अतिक्रमण, रास्ता बदल रहे हैं हाथियों के झुंड
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एशियन एलिफेंट कॉरिडोर में अतिक्रमण, रास्ता बदल रहे हैं हाथियों के झुंड

जंगल को जंगल यदि रहने दिया जाए तो हाथी ही नहीं सभी वन्य जीवों के लिए सही और परंपरागत रास्ते ही बेहतर हैं, अन्यथा मानव-वन्यजीव संघर्ष की संभावनाएं बढ़ जाएंगी।

by दिनेश मानसेरा
Apr 12, 2023, 11:47 am IST
in भारत, उत्तराखंड
प्रतीकात्मक चित्र

प्रतीकात्मक चित्र

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उत्तराखंड के जंगलों में विचरने वाले हाथी अब नए नए रास्ते ढूंढ रहे हैं। उत्तराखंड का भावर क्षेत्र का जंगल, एशियन एलिफेंट कॉरिडोर का हिस्सा है, जहां से हाथियों के झुंड आते जाते रहते हैं और ये झुंड नेपाल से भारत आते हुए भूटान और फिर आगे अरुणाचल के जंगल तक आते जाते रहते हैं।

जानकारी के मुताबिक जंगल किनारे नहर, सड़क, रेल और पावर प्रोजेक्ट्स बन जाने की वजह से एशियन एलिफेंट कॉरिडर में हाथियों का विचरण प्रभावित हुआ है। नेपाल सीमा से लगे पीलीभीत दुधवा टाइगर रिजर्व, नंधौर वाइल्डलाइफ और सुरई फॉरेस्ट रिजर्व में हाथियों का विचरना पिछले कुछ सालों से परिवर्तित हो रहा है। नेपाल आने जाने के लिए हाथी भावर क्षेत्र का मैदान छोड़कर, शारदा नदी किनारे खलढूंगा की पहाड़ी चढ़कर आ जा रहे हैं। ऐसा इसलिए हो रहा है कि जंगल किनारे मानव बस्तियां खड़ी हो गईं और उनके रास्ते को बाधित कर रही हैं। नेपाल के वन क्षेत्रों में अतिक्रमण बहुत ज्यादा फैलने से हाथियों के मार्ग बाधित हो गए हैं। उत्तराखंड में 22 किमी चौड़ा और करीब 130 किमी लंबा एलिफेंट कॉरिडर नेपाल सीमा से लगा हुआ है।

पहाड़ पर हाथी

नंधौर वन क्षेत्र में रिसर्च स्कॉलर रहे डॉ शाह बिलाल बताते हैं कि कैमरा ट्रैपिंग में ये बात सामने आई है कि हाथी अपने पुराने रास्ते छोड़ रहे हैं और पहाड़ों की तरफ चढ़कर नेपाल सीमा में प्रवेश रहे हैं और ऐसा वे राजा जी और कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में भी कर रहे हैं। जहां नहर बन गई है वो अब वहां से रास्ता बदल ले रहे हैं। हिमाचल की यमुना नदी से नेपाल की शारदा नदी तक भावर तराई के जंगल में हाथियों का मूवमेंट ज्यादा रहता है। इस समय हाथियों के परंपरागत रास्ते छोड़कर कई किमी लंबा चक्कर लगाकर पहाड़ियों पर चक्कर काटकर नीचे की तरफ उतर रहे हैं।

सुरई और अन्य वाइल्डलाइफ सेंचुरी में अध्ययन करने वाले डॉ. विपुल मौर्य बताते हैं कि हाथियों के लिए नए रास्ते चुनना हमारे लिए शोध का विषय है, हाथी खाई में नहीं उतर सकता, लेकिन उसने पहाड़ के सुगम रास्ते खोज लिए हैं और अब हमे ये देखना है कि जंगल में यदि और अड़चन आई तो वे आबादी को तहस नहस करने में भी संकोच नहीं करेंगे। ऐसे मामले हमने राजा जी टाइगर रिजर्व में ऋषिकेश हरिद्वार के आसपास देखे हैं। तराई और हरिद्वार में रेल की रफ्तार ने कई हाथियों की जान ली है। हमे उनकी सुरक्षा की भी चिंता करनी होगी।

यमुना वृत के फॉरेस्ट कंजरवेटर डॉ विनय भार्गव बताते हैं कि हाथियों ने अपने मार्ग बदलने के लिए स्वाभाविक रूप से प्रयास करते हैं, जहां उन्हें लगता है कि नहर है, ढाल ज्यादा है वो दूसरे रास्ते को चुनते हैं और झुंड में साथ चल रहे छोटे-छोटे हाथी, बड़े हाथी का अनुसरण करते हैं और फिर धीरे-धीरे वो नए हालात नए मार्ग के लिए अभ्यस्त हो जाते हैं, लेकिन जंगल को जंगल यदि रहने दिया जाए तो हाथी ही नहीं सभी वन्य जीवों के लिए सही और परंपरागत रास्ते ही बेहतर हैं, अन्यथा मानव-वन्यजीव संघर्ष की संभावनाएं बढ़ जाएंगी।

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