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मंदिर श्रद्धालुओं का, सरकार का नहीं

कोई भी मंदिर भक्तों के पैसे से बनता है। मंदिर का संचालन निष्ठावान भक्तों के हाथों में ही होना चाहिए

by आचार्य किशोर कुणाल
Apr 12, 2023, 10:40 am IST
in भारत, मत अभिमत
महावीर मंदिर में दर्शन करते पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद।

महावीर मंदिर में दर्शन करते पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद।

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सच यह है कि मंदिर भक्तों और श्रद्धालुओं का है। इसलिए किसी मंदिर की व्यवस्था श्रद्धावान, समर्पित और निष्ठावान भक्तों के अनुरूप ही होनी चाहिए। सार्वजनिक मंदिरों के संचालन में भक्तों की भूमिका होनी चाहिए। उन पर सरकारी नियंत्रण ठीक नहीं है। मंदिर के संचालन में किसी प्रकार का कोई सरकारी या राजनीतिक हस्तक्षेप हो ही नहीं, लेकिन मंदिरों के आय-व्यय में पूरी पारदर्शिता बरती जानी चाहिए।

आचार्य किशोर कुणाल

इस समय पूरे देश में मंदिरों के स्वामित्व को लेकर चर्चाएं चल रही हैं। जितने मुंह उतनी बातें सुनने को मिल रही हैं, लेकिन सच यह है कि मंदिर भक्तों और श्रद्धालुओं का है। इसलिए किसी मंदिर की व्यवस्था श्रद्धावान, समर्पित और निष्ठावान भक्तों के अनुरूप ही होनी चाहिए। सार्वजनिक मंदिरों के संचालन में भक्तों की भूमिका होनी चाहिए। उन पर सरकारी नियंत्रण ठीक नहीं है।

मंदिर के संचालन में किसी प्रकार का कोई सरकारी या राजनीतिक हस्तक्षेप हो ही नहीं, लेकिन मंदिरों के आय-व्यय में पूरी पारदर्शिता बरती जानी चाहिए। इसके लिए एक ऐसी संस्था या प्राधिकरण होना चाहिए, जहां पर हिसाब-किताब की प्रस्तुति की जा सके, जो मंदिर के आय-व्यय, विशेषकर आय पर नजर रख सके। और उस आय-व्यय को भक्तों के बीच सार्वजनिक भी किया जाना चाहिए। इससे मंदिरों के प्रति लोगों की श्रद्धा बढ़ेगी। कोई भक्त मंदिर या तीर्थ स्थान जाता है तो कुछ देने की भावना से ही जाता है। जहां जबरन दान देने की बात कही जाती है वहां मंदिर के प्रति अश्रद्धा होती है।

जब तक पटना स्थित महावीर मंदिर का ट्रस्ट नहीं बना था, तब तक मंदिर की वार्षिक आमदनी 11,000 रुपए प्रतिवर्ष दिखाई जाती थी। आज मंदिर में प्रतिवर्ष 30 करोड़ रु. का चढ़ावा चढ़ता है। अगर मंदिर से जुड़ीं सभी संस्थाओं की बात की जाए तो आगामी वित्तीय वर्ष का बजट 331 करोड़ रु. का है। बिहार राज्य धार्मिक न्यास बोर्ड को संस्था द्वारा प्रतिवर्ष 1 करोड़ 20 लाख रुपये प्रदान किए जाते हैं। मंदिर में भगवान की सेवा सर्वप्रमुख है। इतना करने के बाद मंदिर के विकास, जीर्णोद्धार और मंदिर निर्माण आदि पर पैसा लगना चाहिए। भक्तों का पैसा भक्तों के हित में खर्च करना चाहिए। जैसा कि पटना के महावीर मंदिर द्वारा किया जा रहा है। यहां से सात अस्पताल संचालित होते हैं। महावीर कैंसर संस्थान देश का दूसरा सबसे बड़ा संस्थान है। इसमें 750 बेड हैं। यहां 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों की नि:शुल्क चिकित्सा की जाती है।

अस्पताल में भर्ती सभी 750 मरीजों को नि:शुल्क भोजन दिया जाता है। कैंसर मरीज को 100 रुपये में रक्त दिया जाता है। महावीर वात्सल्य अस्पताल देश के 10 बड़े वात्सल्य अस्पतालों में एक है। इसके अलावा हृदय रोग संस्थान और महावीर नेत्रालय भी हैं। कैंसर के मरणासन्न मरीजों की सेवा-सुश्रूषा के लिए पटना के भूतनाथ रोड के समीप एक संस्थान है। एक अस्पताल, हाजीपुर में चलता है। पटना में वरिष्ठ नागरिकों के लिए भी एक अस्पताल संचालित किया जाता है। इसके अलावा अयोध्या में राघव आरोग्य मंदिर (राम) संचालित हो रहा है।

मंदिर के संचालन में किसी प्रकार का कोई सरकारी या राजनीतिक हस्तक्षेप हो ही नहीं, लेकिन मंदिरों के आय-व्यय में पूरी पारदर्शिता बरती जानी चाहिए। इसके लिए एक ऐसी संस्था या प्राधिकरण होना चाहिए, जहां पर हिसाब-किताब की प्रस्तुति की जा सके, जो मंदिर के आय-व्यय, विशेषकर आय पर नजर रख सके। और उस आय-व्यय को भक्तों के बीच सार्वजनिक भी किया जाना चाहिए। इससे मंदिरों के प्रति लोगों की श्रद्धा बढ़ेगी। कोई भक्त मंदिर या तीर्थ स्थान जाता है तो कुछ देने की भावना से ही जाता है। जहां जबरन दान देने की बात कही जाती है वहां मंदिर के प्रति अश्रद्धा होती है।

अयोध्या में चार वर्ष से महावीर मंदिर द्वारा सीता रसोई चलाई जा रही है। महावीर मंदिर द्वारा राम मंदिर के निर्माण के लिए 10 करोड़ रु. की घोषणा की गई थी। अब तक 3 करोड़ रु. दिए जा चुके हैं। जुलाई माह में 2 करोड़ रु. दिए जाएंगे। इतना कहने का तात्पर्य यह है कि भक्तों का पैसा भक्तों के हित में ही लगना चाहिए। मंदिर में समता का भाव होना बहुत ही आवश्यक है। जो भी सनातनी है, उसे मंदिर में पूजा का अधिकार मिलना ही चाहिए।

अगर मंदिर के आय-व्यय पर नजर रखने वाली संस्था सरकार के पैसे से चलेगी तो सरकारी हस्तक्षेप होगा ही। अत: इस संस्था को चलाने के लिए मंदिरों का सहयोग होना चाहिए। मंदिरों की आय के हिसाब से संस्था को पैसा दिया जाना चाहिए। बिहार में आमदनी का अधिकतम 5 प्रतिशत देने का प्रावधान है। किसी मंदिर की आय कम है तो उसे इससे छूट मिलनी चाहिए। अगर इस संस्था को खर्च से अधिक आय होती है तो उसका पैसा ऐतिहासिक और पौराणिक मंदिरों के विकास में खर्च किया जाना चाहिए। यह सब तब होगा जब मंदिरों का संचालन उसके भक्तों द्वारा ही होगा।
(लेखक महावीर मंदिर, पटना के संचालक और पूर्व आईपीएस अधिकारी हैं। यह लेख संजीव कुमार के साथ हुई वार्ता पर आधारित है)

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