त्रिनिदाद एंड टोबैगो से अपने पूर्वजों के गांव पहुंचीं सुनीति महाराज, परिजनों से मिलकर हो गईं भावुक
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त्रिनिदाद एंड टोबैगो से अपने पूर्वजों के गांव पहुंचीं सुनीति महाराज, परिजनों से मिलकर हो गईं भावुक

देव नारायण दुबे बतौर गिरमिटिया मजदूर 1885 में त्रिनिदाद एंड टोबैगो चले गए थे। सुनीति महाराज उनकी परपोती हैं, जो काफी समय से अपने पूर्वजों के गांव आना चाहती थीं।

by संवाद सूत्र
Apr 11, 2023, 01:00 pm IST
in भारत, उत्तर प्रदेश
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जौनपुर। मन में हौसला और जज्बा हो तो मुश्किल राह भी आसान हो जाती है। ऐसे ही कुछ कहानी त्रिनिदाद एंड टोबैगो की रहने वाली सुनीति महाराज की है। दरअसल दशकों से मन मे कसक लिए अपने पूर्वजों के गांव की तलाश में लगीं सुनीति की मदद गिरमिटिया फाउंडेशन के अध्यक्ष दिलीप गिरी ने किया। सोमवार को सुबह काशी से सुनीति मड़ियाहूं ब्लाक के आदिपुर गांव के लिए निकलीं। गांव के मोड़ पर पहुंचते ही परिजनों और गांव के लोगों ने माला फूल पहनाकर ढोल- नगाड़े के साथ स्वागत किया। सुनीति अपने आसनसोल से आए और गांव के परिजनों संग मिलकर कुछ पलों के लिए भावुक हो गईं। सुनीति का मानना था कि उनका सपना साकार हुआ।

सुनीति महाराज ने बताया कि ये कहानी आजादी के पहले अंग्रेजों के शासन काल में 1885 से शुरू होती है। देव नारायण दुबे बतौर गिरमिटिया मजदूर 1885 में त्रिनिदाद एंड टोबैगो चले गए थे। अपने जड़ की तलाश में सुनीति ने हिम्मत नहीं हारी। देव नारायण दुबे की परपोती चौथी पीढ़ी से सुनीति महाराज अपने चाचा नारायण दुबे के साथ अपने पूर्वजों के आदिपुर गांव पहुंचीं, जहां ग्रामीणों ने परिवार की बेटी का गाजे-बाजे के साथ भव्य स्वागत किया। पूर्वजों द्वारा बनवाए गए शिव मंदिर में पूजा करते वक्त सुनीति भावुक हो गईं। आंखों में आसूं लिए सुनीति ने कहा यह मेरे खुशी के आंसू हैं, जिसे मैं नहीं रोक सकती।

मेरे परदादा इस गांव की मिट्टी से जुड़े थे, लेकिन कभी वो गांव लौट कर नहीं आए। गिरमिटिया फाउंडेशन के सहयोग से आज अपने पूर्वजों के पुण्य भूमि पर पहुंच कर धन्य हो गई। गौरतलब है कि भारत में गिरमिटिया वंशियों के पूर्वजों के गांव खोजने में गिरमिटिया फाउंडेशन पिछले चार साल से काम कर रहा है। फाउंडेशन के अध्यक्ष दिलीप गिरि ने कहा कि अब तक 100 से अधिक गिरमिटिया परिवारों को उत्तर प्रदेश और बिहार के कई गांवों तक पहुंचाया है। जहां से सैकड़ों वर्ष पहले भारतीय लोगों को अंग्रेज गिरमिटिया मजदूर बनाकर ले गए थे।

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