हरिद्वार को ढक रही ‘हरी चादर’!

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दिनेश मानसेरा

हिंदू धर्म के सभी मठ, सभी अखाड़े, आध्यात्मिक केंद्र हरिद्वार में हैं, जहां से धार्मिक गतिविधियों का संचालन होता आया है। चारधाम हिमालय की यात्रा का पहला पड़ाव हरिद्वार ही है। इसीलिए इसे हरि का द्वार यानी हरिद्वार कहा जाता है। यहां प्रतिवर्ष करोड़ों श्रद्धालु आते हैं जो गंगा में एक डुबकी लगाकर विभिन्न मंदिरों में देव-दर्शन करके अपने जीवन को सफल मानते हैं।

सनातन-धर्मियों के लिए आस्था का बहुत बड़ा केंद्र है हरिद्वार। यह ऋषियों, देवों और संन्यासियों की भूमि है। हिंदू धर्म के सभी मठ, सभी अखाड़े, आध्यात्मिक केंद्र हरिद्वार में हैं, जहां से धार्मिक गतिविधियों का संचालन होता आया है। चारधाम हिमालय की यात्रा का पहला पड़ाव हरिद्वार ही है। इसीलिए इसे हरि का द्वार यानी हरिद्वार कहा जाता है। यहां प्रतिवर्ष करोड़ों श्रद्धालु आते हैं जो गंगा में एक डुबकी लगाकर विभिन्न मंदिरों में देव-दर्शन करके अपने जीवन को सफल मानते हैं। यहां कुंभ भी लगता है। हर वर्ष तीन करोड़ से अधिक श्रद्धालु यहां से गंगा जल लेकर जाते हैं। लेकिन ऐसा लगता है कि इस पावन तीर्थ की जनासांख्यिकी को बदलने का प्रयास हो रहा है। आंकड़े बताते हैं कि हरिद्वार जिले की मुस्लिम आबादी हर दस साल में 40 फीसदी की रफ्तार से बढ़ रही है।

2011 की जनगणना के अनुसार हरिद्वार जिले में मुस्लिम आबादी 2001 में 4,78,000 (अनुमानित) से बढ़ कर 6,48,119 हो गईथी। यानी जिले की कुल आबादी में 34.2 प्रतिशत मुसलमान थे। उस समय प्रदेश में मुस्लिम आबादी 11.19 प्रतिशत से बढ़ कर 13.9 प्रतिशत हो गई थी। 2020 के अनुमान के अनुसार हरिद्वार जिले में मुस्लिम आबादी 39 प्रतिशत के आसपास हो गई है। अनुमान है कि इस साल के अंत तक हरिद्वार जिले की आबादी 22,00,000 के करीब हो जाएगी, जिसमें मुस्लिम आबादी के 8,00,000 से ज्यादा होने का अनुमान है। यही कारण है कि हरिद्वार जिले में सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन होने शुरू हो गए हैं।

हरिद्वार जब एक छोटा-सा कस्बा हुआ करता था, तब महामना मदनमोहन मालवीय और ब्रिटिश हुकूमत में 1916 में एक समझौता हुआ था। इसके अनुसार हर की पैड़ी के तीन किमी. की परिधि में किसी भी गैर-हिंदू का प्रवेश वर्जित था। यह समझौता हरिद्वार नगर निगम की नियमावली में दर्ज है।

मुस्लिम जनसंख्या बढ़ने के कारण
हरिद्वार जिले के साथ उत्तर प्रदेश के बिजनौर, मुजफ्फरनगर, मेरठ, सहारनपुर जिले लगते हैं। इन जिलों में मुस्लिम आबादी बड़ी संख्या में है। उत्तराखंड बनते ही हरिद्वार जिले में उद्योगों का जाल बिछा। इनमें काम करने के लिए मुस्लिम श्रमिक ठेकेदार बिजनौर, मुजफ्फरनगर, मेरठ, सहारनपुर आदि जिलों से मुसलमान मजदूरों को लाए। तत्कालीन नारायण दत्त तिवारी सरकार ने यहां के उद्योगों में 70 प्रतिशत रोजगार स्थानीय लोगों को दिए जाने का फैसला किया। लेकिन श्रमिक ठेकेदारों ने भ्रष्टाचार के बल पर इसकी काट निकाल ली। उन्होंने उत्तर प्रदेश से लाए गए श्रमिकों को स्थानीय बताया और इस तरह सरकारी नियमों की खानापूर्ति हो गई। इसके अलावा गंगा और उसकी सहायक नदियों में खनन के काम के लिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश, बिहार और असम से भी मुस्लिम मजदूर लाए गए। ये लोग नदी किनारे अवैध रूप बसते चले गए। अब इन सबके मतदाता पहचानपत्र भी बन गए हैं। इस काम के लिए इन लोगों की मदद कांग्रेस और अन्य सेकुलर दलों के नेताओं ने की।

हरिद्वार में हर साल करोड़ों श्रद्धालु कांवड़ लेने आते हैं। पहले कांवड़ और उससे संबंधित अन्य वस्तुओं को बनाने के उद्योग में हरिद्वार से सटे उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों के लोगों का दबदबा था। उत्तराखंड बनने के बाद ये लोग भी हरिद्वार जिले में बस गए। यह बात भी है कि पिछले 20 वर्ष में हरिद्वार से लेकर ऋषिकेश तक आबादी का विस्तार हुआ है। इस कारण इमारतें बनाने वाले मजदूर, बढ़ई, फिटर का धंधा करने वाले लोग भी कुंभ क्षेत्र के बाहर आकर बसने लगे। इन सबको देखते हुए ही ज्वालापुर क्षेत्र से भाजपा विधायक रहे सुरेश राठौर ने अक्तूबर, 2019 में सार्वजनिक रूप से कहा था कि हरिद्वार जिले में गंगा किनारे 67 किमी तक मुस्लिम आबादी बढ़ती जा रही है। इसकी पड़ताल होनी चाहिए कि कौन लोग यहां आकर बस गए? पिछले साल विश्व हिंदू परिषद ने भी उत्तराखंड सरकार का ध्यान इस ओर खींचा था।

राजनीति पर बढ़ रहा प्रभाव
पिछले साल विधानसभा चुनाव में भाजपा के चर्चित चेहरों में से एक स्वामी यतिश्वरानंद जी महाराज हरिद्वार ग्रामीण से चुनाव हार गए थे। ऐसे ही ज्वालापुर से भाजपा प्रत्याशी सुरेश राठौर और लक्सर से संजय गुप्ता कांग्रेस प्रत्याशियों से चुनाव हार गए थे। जबकि खानपुर में भाजपा प्रत्याशी को निर्दलीय उम्मीदवार उमेश कुमार ने हरा दिया था। चुनाव विश्लेषक मानते हैं कि इन क्षेत्रों में भाजपा की हार बढ़ते मुसलमान मतदाताओं के कारण हुई। रुड़की के विधायक प्रदीप बत्रा 2018 में 12,000 से ज्यादा मतों से जीते थे, जबकि 2023 में 2,200 मतों से ही जीते। ऐसे ही अन्य विधानसभा क्षेत्रों में भी भाजपा की हार का अंतर बढ़ता जा रहा है। इसकी वजह यही है कि यहां मुस्लिम आबादी बढ़ रही है और उनके वोट निर्णायक हो रहे हैं।

हरिद्वार में मुस्लिम आबादी ज्यादातर शहर के बाहर गंगा किनारे और रेलवे की जमीन पर कब्जा करके बसी हुई है। जानकारों का मानना है कि कांग्रेस के शासनकाल में इसमें भारी वृद्धि हुई। यह भी कहा जा रहा है कि इनमें बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुसलमान भी हैं। इन्हें कांग्रेसी नेताओं का संरक्षण मिलता रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत हरिद्वार से लोकसभा का चुनाव लड़ते रहे हैं और उनके दौर में अवैध बस्तियों को नियमित करने का खेल भी खेला गया।

बढ़ती मस्जिदें
हरिद्वार के कुंभ क्षेत्र से बाहर आते ही राष्ट्रीय राजमार्ग के दोनों ओर ऊंची मीनार वाली मस्जिदें दिखाई देने लगी हैं, जबकि कुछ साल पहले ऐसा नहीं था। कुंभ क्षेत्र में बाजार, हाट लगाने वाले मुस्लिम समुदाय के लोग कई बार खुले में नमाज पढ़ते दिखाए दिए हैं, जिन पर प्रशासन को कार्रवाई करनी पड़ी है। इन दिनों रमजान चल रहा है। हरिद्वार प्रशासन ने मस्जिदों से लाउडस्पीकर उतरवाए और उनके प्रबंधकों को न्यायालय का यह आदेश याद दिलाया कि लाउडस्पीकर प्रतिबंधित हैं।

‘गजवा-ए-हिंद’ का सपना
अनेक लोग कहते हैं कि जिहादी तत्वों ने हरिद्वार जिले को ‘गजवा-ए-हिंद’ का हिस्सा बना लिया है। पिछले साल एटीएस ने यहां तीन लोगों को गिरफ्तार किया था। उनमें से एक है अली नूर, जो कि बांग्लादेशी नागरिक था। वह छद्म नाम से यहां रह कर मदरसे में बच्चों को तालीम दे रहा था। अली नूर के साथ रुड़की के मुदस्सिर और सिडकुल से कामिल को भी पकड़ा गया था। डीजीपी अशोक कुमार ने इसकी पुष्टि की थी कि उत्तराखंड में ‘गजवा-ए-हिंद’ के लिए कई संगठन सक्रिय हैं।

रात्रि में रुकने पर थी पाबंदी
हरिद्वार जब एक छोटा-सा कस्बा हुआ करता था, तब महामना मदनमोहन मालवीय और ब्रिटिश हुकूमत में 1916 में एक समझौता हुआ था। इसके अनुसार हर की पैड़ी के तीन किमी. की परिधि में किसी भी गैर-हिंदू का प्रवेश वर्जित था। यह समझौता हरिद्वार नगर निगम की नियमावली में दर्ज है। स्वाभाविक है कि उस समय हरिद्वार करीब तीन किमी की परिधि में ही होगा, जिसने आज बड़ा आकार ले लिया है।

इसी तरह का कानून ऋषिकेश के लिए भी बना था और यहां यदि कोई गैर-हिंदू आता भी था तो उसके रात में रुकने पर पाबंदी थी। जानकार बताते हैं कि मक्का मदीना में गैर-मुसलमानों और वेटिकन सिटी में गैर-ईसाइयों के प्रवेश पर पाबंदी है। इसी आधार पर पंडित मदनमोहन मालवीय ने ब्रिटिश शासकों से आस्था के सवाल पर संधियां की थीं। साधु-संत इसी नियम के आधार पर देवभूमि उत्तराखंड में गैर-हिंदुओं के प्रवेश पर रोक लगाने की मांग करते रहे हैं। अब समय आ गया है कि इस मांग पर ध्यान दिया जाए, अन्यथा हरिद्वार जैसा तीर्थ भी ‘गजवा ए हिंद’ का हिस्सा बन सकता है।

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