‘जिस दिन कंप्यूटर उपन्यास लिखेगा।’ निर्णायकों ने कहा कि हालांकि इस उपन्यास की गढ़न बहुत अच्छी तरह से की गई है लेकिन चरित्रों की मानसिकता या मन:स्थिति को सही ढंग से अभिव्यक्त करने में उसकी क्षमता फिलहाल अपर्याप्त है।
जापान में निक्केई होशी शिन्ची साहित्यिक पुरस्कार दिया जाता है जिसके लिए साहित्यकारों से प्रविष्टियों के रूप में रचनाएं मांगी जाती हैं। कंप्यूटर जनित साहित्य को भी इसमें भाग लेने की अनुमति है। पिछली बार के पुरस्कारों के लिए आईं 1450 प्रविष्टियों में से 11 को कृत्रिम बुद्धिमत्ता ने लिखा था। उनमें से एक उपन्यास था जो पहले दौर में चयनित हो गया। इसका नाम था- ‘जिस दिन कंप्यूटर उपन्यास लिखेगा।’ निर्णायकों ने कहा कि हालांकि इस उपन्यास की गढ़न बहुत अच्छी तरह से की गई है लेकिन चरित्रों की मानसिकता या मन:स्थिति को सही ढंग से अभिव्यक्त करने में उसकी क्षमता फिलहाल अपर्याप्त है।
यह टिप्पणी कृत्रिम बुद्धिमत्ता की क्षमताओं और वर्तमान सीमाओं, दोनों को अभिव्यक्त करती है। हम नहीं जानते कि यह सीमा बनी रहेगी या समाप्त हो जाएगी। क्या कृत्रिम बुद्धिमत्ता के पास भावनाओं के मर्म को समझने और अभिव्यक्त करने की शक्ति आ जाएगी? कौन जाने। फिलहाल उसके भीतर मानवीय संवेदना तथा अभिव्यक्ति की प्रांजलता या विविधता जैसी क्षमताएं या तो हैं नहीं, या बेहद सीमित हैं।
लेकिन बदलाव की आहट हमें सुनाई दे रही है। लगभग एक मास पहले तक अमेजॉन के किंडल स्टोर पर 200 से ज्यादा ईबुक्स ऐसी थीं, जिन्हें या तो चैट जीपीटी ने लिखा था या जिनके सह-लेखक के रूप में चैट जीपीटी का नाम छपा है। कुछ इंडी-राइटर्स ने साहित्य सृजन के लिए इसकी खुलकर मदद लेनी शुरू कर दी है। इंडी-राइटर्स का मतलब ऐसे लेखक जो या तो शौकिया तौर पर या व्यावसायिक तौर पर अधिक मात्रा में किताबें लिखते हैं, भले ही साहित्यिक दुनिया में उनकी उतनी मान्यता नहीं है।
एक डेटा साइंस कंपनी है- ओई.एआई (Oii.ai), जिसके मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं-बॉब रोजर्स। उन्होंने कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर कुछ साल पहले एक किताब लिखी थी जिसमें उन्हें चार साल लगे। लेकिन उनकी ताजा किताब को लिखने में चैट जीपीटी की कृत्रिम बुद्धिमत्ता की मदद ली गई और इसे लिखने में सिर्फ शनिवार और इतवार के दो दिन लगे। किताब का नाम है- ‘चैट जीपीटी, एन एआई एक्सपर्ट एंड ए लायर वॉक इनटु ए बार…द इवोल्यूशन आफ क्रिएटिविटी एंड कम्युनिकेशन।’
अमेजॉन के किंडल स्टोर पर 200 से ज्यादा ईबुक्स ऐसी थीं, जिन्हें या तो चैट जीपीटी ने लिखा था या जिनके सह-लेखक के रूप में चैट जीपीटी का नाम छपा है। कुछ इंडी-राइटर्स ने साहित्य सृजन के लिए इसकी खुलकर मदद लेनी शुरू कर दी है। इंडी-राइटर्स का मतलब ऐसे लेखक जो या तो शौकिया तौर पर या व्यावसायिक तौर पर अधिक मात्रा में किताबें लिखते हैं, भले ही साहित्यिक दुनिया में उनकी उतनी मान्यता नहीं है।
अभी हाल तक आम लोगों को पक्का यकीन था कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता भले ही और कुछ भी कर ले, लेकिन साहित्य, खासकर कविता को समझना और उसका अनुवाद करना उसके लिए संभव नहीं हो सकेगा। यह धारणा स्वाभाविक थी क्योंकि जहां गद्य के मायने सीधे-सपाट और स्पष्ट होते हैं, वहीं कविता में भावों, अनुभवों, कल्पनाशीलता, रचनात्मकता, कलात्मकता और संवेदनशीलता का ऐसा कोमल संगम होता है कि वहां शब्दों के मायने बहुत गहरे भी हो सकते हैं, प्रकट से अलग हो सकते हैं और भिन्न-भिन्न लोगों के लिए भिन्न-भिन्न हो सकते हैं।
कविता की बनावट या ढांचा भी एक अलग किस्म के अनुशासन की मांग करता है। सिर्फ सात शब्दों का हाइकू बहुत गहरी बात कह जाता है। इसे समझने में कई बार इनसान को ही परेशानी होती है तो कृत्रिम बुद्धिमत्ता भला उसे कैसे समझ सकती है?
किंतु ताजा घटनाक्रम ने लोगों की इस धारणा को चुनौती दे दी है। अब हम दावे के साथ नहीं कह सकते कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता कभी भी कविता को समझ नहीं सकेगी और उसका अनुवाद नहीं कर सकेगी। कौन जाने, वह उसे समझने में हमसे आगे निकल जाए!
(लेखक माइक्रोसॉफ्ट में ‘निदेशक- भारतीय भाषाएं
और सुगम्यता’ के पद पर कार्यरत हैं)
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