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क्रांतिवीर लक्ष्मण नायक, जिन्हें झूठे केस में फंसाकर अंग्रेजों ने दे दी थी फांसी

लक्ष्मण नायक ने स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन के लिए वनवासियों को किया था संगठित

by WEB DESK
Apr 4, 2023, 02:32 pm IST
in भारत, आजादी का अमृत महोत्सव
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द्वितीय विश्वयुद्ध प्रारंभ हो चुका था। भारत में अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा गूंज रहा था। इसी समय ओडिशा (उड़ीसा) राज्य के बोइपाड़ी गुड्डा थाना अंतर्गत आने वाले तैंतुली गुम्मा गांव में निवास करने वाली भुमिया जनजाति के पादलम नायक के घर पर जन्में लक्ष्मण नायक भी इस क्रांति की चिंगारी बन चुके थे। इनके पिता गांव के मुखिया थे। अपने पिता की मृत्यु के बाद लक्ष्मण नायक को मुखिया बनाया गया। उनकी जाति व आसपास के गांव के लोग भी उन्हें नेता मानते हुए काफी सम्मान दिया करते थे।

स्वतंत्रता संग्राम के लिए चल रहे आंदोलन के लिए लक्ष्मण नायक ने उड़ीसा के वनवासियों को संगठित कर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई के लिए संगठित किया। इसके चलते वनवासियों द्वारा जगह-जगह पर आंदोलन और सत्याग्रह किए जाने लगे। सरकार के विरुद्ध जनता में असंतोष फैलाने के लिए उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें जेल जाना पड़ा। जेल से छूटने के बाद लक्ष्मण नायक और जोर-शोर से वनवासियों को इकट्ठा करना शुरू कर दिया। उन्होंने वनवासियों को एकत्रित कर मैथिली नामक स्थान पर आंदोलन करने की तैयारी की और एक विशाल जुलूस लेकर उड़ीसा की तरफ कूच कर दिया। वनवासी शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन कर रहे थे, लेकिन अंग्रेजी सरकार ने उन्होंने रोकने के लिए जुलूस पर भीषण लाठीचार्ज किया, जिससे जुलूस तितर-बितर हो गया। पुलिस लक्ष्मण नायक को गिरफ्तार करना चाहती थी, लेकिन वह उन्हें चकमा देकर निकलने में कामयाब हो गए।

मैथिली लौटकर उन्होंने थाने पर आक्रमण कर उस पर तिरंगा फहराने की योजना बनाई। उन्होंने वनवासियों को लेकर थाने पर आक्रमण कर दिया। पुलिस ने लोगों को रोका और उन पर लाठीचार्ज किया, जिसमें कई सारे लोग मारे गए। बंदूक की बट से लक्ष्मण नायक को भी काफी चोट लगी और वह बेहोश हो गए। हालांकि उनके साथी उन्हें वहां से लेकर निकल गए। कहते हैं इसके बाद अंग्रेजी पुलिस ने मारे गए लोगों और बेहोश हुए लोगों को जिंदा जला दिया। सौभाग्य से लक्ष्मण नायक बच गए और अपने गांव लौट गए। वहीं अंग्रेजों ने उन्हें खतरनाक मानकर गांव-गांव में तलाश करना शुरू कर दिया। अंग्रेज उनके घर पहुंच गए और घर के सब लोगों को बंदी बना लिया, लेकिन वह वहां से बच निकले।

जब अंग्रेज सब प्रकार से उन्हें पकड़ने में विफल रहे तो उन्होंने स्थानीय जमींदार की मदद ली। उन पर रम्मया नाम के व्यक्ति की हत्या का लूटपाट का आरोप लगाया गया। उनके ही एक साथी ने गद्दारी कर उन्हें व उनका साथ देने वाले आंदोलनकारियों को अंग्रेजों के हाथों पकड़वा दिया। अंग्रेजी हुकूमत ने लक्ष्मण नायक पर लूटमार और सरकारी अधिकारियों की हत्या के झूठे आरोप लगाकर उन पर पटना उच्च न्यायालय में मुकदमा दायर किया। वहां पर न्याय देने की नाटकीय औपचारिकता पूरी कर कोर्ट ने उन्हें मृत्युदंड की और उनके साथियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। लक्ष्मण नायक को बरहापुर जेल में रखा गया और 29 मार्च 1943 को उनको फांसी पर के फंदे पर लटका दिया गया।

Topics: लक्ष्मण नायक का योगदानArticles on Laxman NayakContribution of Laxman NayakFreedom Fighter Laxman Nayakक्रांतिवीर लक्ष्मण नायकलक्ष्मण नायक का जीवनस्वतंत्रता सेनानी लक्ष्मण नायकKrantiveer Laxman Nayakस्वतंत्रता संग्राम सेनानीLife of Laxman NayakFreedom Fighterलक्ष्मण नायक पर लेख
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