तुलसीदास जयंती: जहां मातु हुलसी ने तुलसी जनायो
May 11, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • संस्कृति
  • पत्रिका
होम भारत

तुलसीदास जयंती: जहां मातु हुलसी ने तुलसी जनायो

बचपन में ही गोस्वामी तुलसीदास के सिर से माता-पिता का साया छिन गया। कुछ वर्ष बाद चाचा भी चल बसे और गरीबी ने उन्हें घेर लिया। विवाह के बाद मात्र तीन साल दो माह की अल्पायु में पुत्र शोक हुआ। फिर उन्होंने वैराग्य धारण कर लिया

by प्रो. योगेंद्र मिश्र
Aug 23, 2023, 08:00 am IST
in भारत, संस्कृति
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

आषाढ़ पूर्णिमा को गंगा किनारे नृसिंह जी ने तुलसी को दयनीय अवस्था में देखा और उन्हें अपने साथ ले आए। उन्हें पढ़ाया और उनकी जीविका का प्रबंध भी कर दिया। तुलसीदास रामकथा करने लगे, जिससे उनका मान-सम्मान बढ़ने लगा। शक् संवत् 1454 में देवोत्थान एकादशी के दिन उनका विवाह काव्य-पुराणों में अभिरुचि रखने वाली 12 वर्षीया रत्नावली के साथ हुआ।

गोस्वामी तुलसीदास के नाना अयोध्या नाथ दुबे गंगा के दक्षिण तट स्थित तारी ग्राम में रहते थे। उनका गोत्र कौडिन्य और व्यवसाय ज्योतिष था। उनके वैसे तो कई पुत्र हुए, पर कन्या हुलसी ही जीवित रहीं, जिनका विवाह आत्माराम सुकुल से हुआ। चूंकि हुलसी तुलसी जी की पूजा किया करती थीं, इसलिए बालक का नाम तुलसीदास रखा गया। जब तुलसीदास 10 महीने के हुए तो तारी में सरस्वती की मृत्यु हो गई। इसलिए तुलसीदास के माता-पिता को वहां जाना पड़ा। सरस्वती का श्राद्ध कर्म करने के बाद वे लौटने का विचार ही कर रहे थे कि हुलसी को हैजा हुआ और वह चल बसीं। आत्माराम जी उनकी अंत्येष्टि कर सोरों लौट आए। लेकिन कुछ दिन बाद उनका भी देहांत हो गया। तुलसीदास अपनी दादी के पास रहने लगे। उनके चाचा जीवाराम के निधन के बाद आर्थिक स्थिति खराब हो गई। दादी तुलसी को सांत्वना देतीं कि राम भला करेंगे तू राम को भज। इसके बाद तुलसीदास राम-नाम भजने लगे, इस कारण लोग उन्हें ‘राम बोला’ पुकारने लगे।

शक् संवत् 1441 की आषाढ़ पूर्णिमा को गंगा किनारे नृसिंह जी ने तुलसी को दयनीय अवस्था में देखा और उन्हें अपने साथ ले आए। उन्हें पढ़ाया और उनकी जीविका का प्रबंध भी कर दिया। तुलसीदास रामकथा करने लगे, जिससे उनका मान-सम्मान बढ़ने लगा। शक् संवत् 1454 में देवोत्थान एकादशी के दिन उनका विवाह काव्य-पुराणों में अभिरुचि रखने वाली 12 वर्षीया रत्नावली के साथ हुआ। संवत् 1462 में तुलसीदास अयोध्या श्रीराम के दर्शन करने पहुंचे। फिर वहां कुछ दिन रहने के बाद प्रयाग गए और काशी जाकर विश्वनाथ के दर्शन किए।

जब वघेला वासी हरसिंह देव को तुलसीदास के बारे में पता चला तो उन्होंने दशाश्वमेध घाट पर उनसे पूरे सावन मास शिवपुराण सुना और उन्हें बहुत धन दिया। उनका कथा वाचन सुनने के लिए श्रोताओं की भीड़ जुटती थी। उनकी कथाओं से काशी के मणिराम अग्रवाल इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने एक माह तक उनसे वाल्मीकि रामायण की कथा सुनी। संवत् 1464 में उन्हें तारापति के रूप में पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। लेकिन 3 वर्ष दो माह की आयु में ही उसकी मृत्यु हो गई। पुत्र शोक में तुलसीदास अपने आराध्य को भी भूल गए। संवत् 1469 के श्रावण में रत्नावली अपने भाई शंभुनाथ के साथ अपने मायके बदरिया चली गई।

इधर, तुलसीदास भी रामकथा बांचने लगे। 11वें दिन शाम को कथावाचन कर जब वे घर लौटे तो उन्हें पत्नी से मिलने की उत्कट इच्छा हुई। भाद्रपद मास की अंधेरी रात थी और धीमी वर्षा भी हो रही थी। लेकिन गंगा पार कर ससुराल पहुंच गए। बाद में रत्नावली उनके पास आईं और पूछा कि आधी रात को कैसे आए? गंगाजी कैसे पार की? इस पर तुलसी ने कहा, ‘‘राम कथा पूर्ण कर आज सांयकाल ही लौटा। पर तुम्हारे बिना जी अकुलाने लगा तो तुम्हारे प्रेम रूपी पोत में बैठ कर गंगाजी पार कर आ गया।’’ यह सुनकर रत्नावली बहुत प्रसन्न हुईं। उन्होंने कहा, ‘‘मेरे प्रेम में आपने गंगाजी पार कर ली। तब तो भगवत्प्रेम में मनुष्य अवश्य ही संसार रूपी सागर को पार कर जाते होंगे।’’ यह सुनकर तुलसीदास के मन में वैराग्य जागा। वे आंख बंद कर सोचने लगे कि मेरा जीवन तो राम प्रेम के बिना ही बीत रहा है। रत्नावली उनके पैर दबा रही थीं। उन्होंने सोचा कि पति सो गए हैं, इसलिए वह भी सोने चली गई। उनके जाने के बाद तुलसीदास उठे और रात में ही चुपचाप वहां से निकल गए।

इधर, श्रीराम को मन में धारण कर तुलसीदास नगर-नगर, गांव-गांव और जंगल-जंगल भटकते हुए अयोध्या पहुंचे। यहां दो माह बिताने के बाद वे प्रयाग पहुंचे। इसके बाद चित्रकूट में ही रह कर राम भजन में लीन हो गए। संवत् 1480 में वे फिर अयोध्या गए और वहां सात माह रहने के बाद तीर्थाटन करते हुए 1485 में काशी पहुंचे। यहां अपने निवास स्थान पर कभी रामकथा कहते और कभी शिव कथा। हालांकि उनका चित्रकूट, अयोध्या और प्रयाग आना-जाना लगा रहा, लेकिन अधिकांश समय वह काशी में ही रहते थे। उनके सत्संग में संतों और भक्तों की भीड़ लगी रहती थी। संवत् 1493 में वह अपने चचेरे भाई नंददास के पास मथुरा पहुंचे, जो कृष्ण भक्त थे और वैरागी हो गए थे। नंददास ने उन्हें सूरदास जी से मिलवाया। इसके बाद नंददास उन्हें गोवर्धन ले गए, जहां तुलसी को भगवान कृष्ण के रूप में श्रीराम के दर्शन हुए। यहीं रह कर उन्होंने ‘श्री कृष्ण गीतावली’ की रचना की और काशी लौट गए।

ज्येष्ठ मास में गोस्वामी जी जब चित्रकूट में थे, राजवीर नामक एक भक्त उनसे मिलने आया। लोग उसे राजा साधु कहते थे। वह साधुओं की सेवा करता था। वह प्रतिदिन गोस्वामी जी की कथा सुनने आता था। एक दिन उसने गोस्वामी जी से यमुना संगम के दक्षिण तट पर स्थित अपनी कुटिया में पधारने का आग्रह किया। उसके अनुरोध के वशीभूत तुलसीदास संवत् 1644 में राजा साधु के साथ यमुना किनारे जंगल स्थित उसकी कुटिया में पधारे। यह स्थान वर्तमान में राजापुर के नाम से ख्यात है। अविनाशराय जो तुलसीदास जी के ननिहाल में रहते थे, उन्होंने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ ‘तुलसी प्रकाश’ में इसका विस्तृत विवरण दिया है।

गोस्वामी जी ने शक् संवत् 1496 की चैत्र शुक्ल नवमी को अयोध्या में रामचरितमानस लिखना शुरू किया और संवत् 1500 की ज्येष्ठ कृष्ण तृतीया को उसे पूरा किया। इस बीच उनका काशी और अयोध्या आना-जाना लगा रहा। पांचवें वर्ष से ही उनके द्वारा रचित रामचरितमानस की ख्याति होने लगी। 1509 के ज्येष्ठ मास में गोस्वामी जी जब चित्रकूट में थे, राजवीर नामक एक भक्त उनसे मिलने आया। लोग उसे राजा साधु कहते थे। वह साधुओं की सेवा करता था। वह प्रतिदिन गोस्वामी जी की कथा सुनने आता था। एक दिन उसने गोस्वामी जी से यमुना संगम के दक्षिण तट पर स्थित अपनी कुटिया में पधारने का आग्रह किया। उसके अनुरोध के वशीभूत तुलसीदास संवत् 1644 में राजा साधु के साथ यमुना किनारे जंगल स्थित उसकी कुटिया में पधारे। यह स्थान वर्तमान में राजापुर के नाम से ख्यात है। अविनाशराय जो तुलसीदास जी के ननिहाल में रहते थे, उन्होंने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ ‘तुलसी प्रकाश’ में इसका विस्तृत विवरण दिया है। इसके अलावा, वर्ष 1874, 1886, 1908, 1909 के बांदा गजेटियर भी इसकी पुष्टि करते हैं। राजा साधु की जहां कुटिया थी, वह स्थान इतना रमणीक था कि तुलसीदास वहीं रह कर राम कथा कहने लगे। यहां उन्होंने हनुमान मंदिर की स्थापना की थी।

तुलसीदास का शरीर गौर और सुंदर, किन्तु स्थूल था। वे आजानुबाहु थे और गले में माला, कटि में श्वेत अधोवस्त्र यज्ञोपवीत, मस्तक पर तिलक धारण करते थे। संवत् 1652 में राजा साधु श्रीहनुमत मंदिर में ध्यान में बैठा था, तभी उसका निधन हो गया। तुलसीदास की आज्ञानुसार ग्रामवासियों ने राजा साधु का अन्तिम संस्कार किया। तुलसीदास ने समारोहपूर्वक भंडारा भी किया था। इसके बाद राजा साधु की प्रस्तर मूर्ति गढ़ाकर हनुमान मंदिर में स्थापित कर दी। वर्तमान राजापुर (चित्रकूट) में काले प्रस्तर की राजा साधु की जो प्रतिमा है, उसे तुलसीदास ने ही लगवाया था। यही नहीं, राजा साधु की सेवा से प्रसन्न होकर फाल्गुन शुक्ल द्वितीया, संवत् 1652 को उन्होंने उस स्थान का नाम ‘राजापुर’ घोषित कर दिया। वह पांच वर्ष तक वहीं रहे। इस प्रकार, राजा साधु की सेवा का फल प्रत्यक्ष रूप में उसे देकर तुलसीदास संवत् 1657 में काशी आ गए और जीवन का अंतिम समय यहीं व्यतीत किया। 112 वर्ष की अवस्था में उन्होंने श्रावण शुक्ल सप्तमी विक्रम संवत् 1680 को शरीर त्याग दिया।

(सौजन्य – पाञ्चजन्य आर्काइव)

Topics: Ratnavaliwhere mother Hulsi gave birth to Tulsiभगवान कृष्णतुलसीदास जी कौन थेरामकथागोस्वामी तुलसीदासरामचरितमानसGoswami TulsidasmanasRamkathaरत्नावलीLord Krishna
Share11TweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

श्रीराम मंदिर के शिलान्यास कार्यक्रम में सीएम योगी आदित्यनाथ

औरंगजेब ने 350 साल पहले जिस श्रीराम मंदिर को किया था ध्वस्त, सीएम योगी ने उसका किया शिलान्यास, तुलसीदास जी से कनेक्शन

तुलसी गबार्ड को अमृत कलश भेंट करते पीएम मोदी

पीएम मोदी ने महाकुंभ का अमृत कलश तो तुलसी गबार्ड ने भेंट की तुलसी की माला, गीता और भगवान कृष्ण में गहरी आस्था

Tapi district Morari bapu conversion

मोरारी बापू की रामकथा के दौरान ईसाई शिक्षकों पर धर्मांतरण का आरोप, शिक्षा मंत्री ने दी कानूनी कार्रवाई की चेतावनी

कैलाश सत्यार्थी से बातचीत करते हितेश शंकर

‘नोबेल शांति पुरस्कार की गरिमा बचाएं मोहम्मद यूनुस’ – कैलाश सत्यार्थी

भाजपा के राज्यसभा सांसद सुधांशु त्रिवेदी

‘पांडवों के साथ पाञ्चजन्य’-  सांसद सुधांशु त्रिवेदी

सनातन दर्शन की प्रेरणास्रोत है पुण्य नगरी अयोध्या

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

उत्तराखंड : सीमा पर पहुंचे सीएम धामी, कहा- हमारी सीमाएं अभेद हैं, दुश्मन को करारा जवाब मिला

Operation sindoor

अविचल संकल्प, निर्णायक प्रतिकार : भारतीय सेना ने जारी किया Video, डीजीएमओ बैठक से पहले बड़ा संदेश

पद्मश्री वैज्ञानिक अय्यप्पन का कावेरी नदी में तैरता मिला शव, 7 मई से थे लापता

प्रतीकात्मक तस्वीर

घर वापसी: इस्लाम त्यागकर अपनाया सनातन धर्म, घर वापसी कर नाम रखा “सिंदूर”

पाकिस्तानी हमले में मलबा बनी इमारत

‘आपरेशन सिंदूर’: दुस्साहस को किया चित

पंजाब में पकड़े गए पाकिस्तानी जासूस : गजाला और यमीन मोहम्मद ने दुश्मनों को दी सेना की खुफिया जानकारी

India Pakistan Ceasefire News Live: ऑपरेशन सिंदूर का उद्देश्य आतंकवादियों का सफाया करना था, DGMO राजीव घई

Congress MP Shashi Tharoor

वादा करना उससे मुकर जाना उनकी फितरत में है, पाकिस्तान के सीजफायर तोड़ने पर बोले शशि थरूर

तुर्की के सोंगर ड्रोन, चीन की PL-15 मिसाइल : पाकिस्तान ने भारत पर किए इन विदेशी हथियारों से हमले, देखें पूरी रिपोर्ट

मुस्लिम समुदाय की आतंक के खिलाफ आवाज, पाकिस्तान को जवाब देने का वक्त आ गया

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies