नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट पूजा स्थल अधिनियम (प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट) को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 5 अप्रैल को सुनवाई करेगा। सोमवार को वरिष्ठ वकील और भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय ने इस मामले पर जल्द सुनवाई की मांग करते हुए चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच के समक्ष इसे मेंशन किया, जिसके बाद कोर्ट ने 5 अप्रैल को सुनवाई का आदेश दिया। याचिका में कहा गया है कि यह कानून विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा अवैध तरीके से पौराणिक पूजा, तीर्थस्थलों पर कब्जा करने को कानूनी दर्जा देता है। हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध को अपने धार्मिक स्थलों पर पूजा करने से रोकता है।
क्या कहती है याचिका
प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट को चुनौती देने वाली एक याचिका भाजपा नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने भी दायर की है। 12 मार्च 2021 को मामले में अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर नोटिस जारी हुआ था। याचिका में कहा गया है कि 1991 का प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट धार्मिक स्थलों की स्थिति 15 अगस्त 1947 वाली बनाए रखने को कहता है। यह हिंदू, सिख, बौद्ध और जैन समुदाय को अपने पवित्र स्थलों पर पूजा करने से रोकता है। इस एक्ट में अयोध्या को छोड़कर देश में बाकी धार्मिक स्थलों का स्वरूप वैसा ही बनाए रखने का प्रावधान है, जैसा 15 अगस्त 1947 को था।
काशी शाही परिवार की तरफ से कानून को चुनौती देने का अधिकार
सुप्रीम कोर्ट ने 9 सितंबर 2022 को केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था। जमीयत उलेमा ए हिंद की कानून के समर्थन में दाखिल याचिका पर भी नोटिस जारी किया था। 8 सितंबर को काशी नरेश विभूति नारायण सिंह की बेटी कुमारी कृष्ण प्रिया ने प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट को चुनौती देने वाली नई याचिका दायर की थी। इसमें कहा गया कि काशी रियासत के पूर्व शासक काशी में सभी मंदिरों के मुख्य संरक्षक थे, इसलिए काशी शाही परिवार की तरफ से उनके पास इस अधिनियम को चुनौती देने का अधिकार है।
इन्होंने भी दायर की है याचिका
एक याचिका वकील करुणेश कुमार शुक्ला ने दायर की है। करुणेश अयोध्या के हनुमान गढ़ी मंदिर में पुजारी भी रहे हैं। वह कृष्ण जन्मभूमि मामले में मुख्य याचिकाकर्ता हैं और राम जन्मभूमि मामले में भी मुख्य भूमिका निभा चुके हैं। करुणेश शुक्ला के पहले प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट को कई याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। एक याचिका 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध लड़ने वाले रिटायर्ड कर्नल अनिल कबोत्रा ने दाखिल की है। इसके पहले मथुरा के धर्मगुरु देवकीनंदन ठाकुर ने भी याचिका दायर कर प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 को चुनौती दी है। वकील रुद्र विक्रम सिंह ने भी 26 मई को याचिका दायर कर कहा कि 15 अगस्त 1947 की मनमानी कटऑफ तारीख तय कर अवैध निर्माण को वैधता दी गई। याचिका में कहा गया प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट की धारा 2, 3 और 4 असंवैधानिक है। ये धाराएं संविधान की धारा 14, 15, 21, 25, 26 और 29 का उल्लंघन करती हैं। ये धाराएं धर्मनिरपेक्षता पर चोट पहुंचाती हैं जो संविधान के प्रस्तावना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। वाराणसी के स्वामी जितेंद्रानंद ने 25 मई को याचिका दायर कर इस एक्ट को चुनौती दी है। स्वामी जीतेंद्रानंद ने कहा है कि सरकार को किसी समुदाय से लगाव या द्वेष नहीं रखना चाहिए। लेकिन उसने हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख को अपना हक मांगने से रोकने का कानून बनाया है।
विश्व भद्र पुजारी महासंघ ने भी इस कानून को दी है चुनौती
हिंदू पुजारियों के संगठन विश्व भद्र पुजारी महासंघ ने भी इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। विश्व भद्र पुजारी महासंघ की याचिका सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। विश्व भद्र पुजारी महासंघ की याचिका का विरोध करते हुए जमीयत-उलेमा-ए-हिंद ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। एक याचिका सुब्रमण्यम स्वामी ने भी दायर की है।
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