नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पथ संचलन निकालने की अनुमति देने के मद्रास हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया है। न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमण्यन और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ ने दोनों पक्षों द्वारा प्रस्तुत दलीलों को सुनने के बाद आदेश सुरक्षित रख लिया। तमिलनाडु सरकार की याचिका में मद्रास हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाने की मांग की गई है। तमिलनाडु सरकार ने याचिका में कहा है कि संघ के इस मार्च से राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ सकती है। संघ को पथ संचलन निकालने की अनुमति देते हुए हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि लोकतंत्र की बेहतरी के लिए विरोध भी जरूरी है।
तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर मद्रास हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी है। पिछली सुनवाई के दौरान तमिलनाडु सरकार की ओर से वकील मुकुल रोहतगी ने कहा था कि हम रूट मार्च के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन सभी जगहों पर एक साथ न हो। उनके लिए जगह दी जा सकती है जहां उसका आयोजन किया जा सकता है। रोहतगी ने प्रस्तावित रूट मार्च का विरोध करते हुए कहा था कि हर एक गली-मोहल्ले में मार्च निकलने का क्या मतलब है। जहां स्थितियां अच्छी नहीं, वहां मार्च नहीं निकाला जाए क्योंकि वहां कानून-व्यवस्था खराब हो सकती है। रोहतगी ने कहा था कि कानून व्यवस्था सरकार की जिम्मेदारी है। इसलिए ऐसा न किया जाए तो सही होगा। हमारे पास इंटेलिजेंस की रिपोर्ट है कि बॉर्डर से सटे कुछ संवेदनशील इलाके हैं वहां पर मार्च नहीं निकालने की बात कही है। उदाहरण के लिए कोयम्बटूर में बम ब्लास्ट हो चुका है, पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया को प्रतिबंधित किया गया है। हाई कोर्ट ने जनहित से जुड़े मामले में आंखें मूंदकर आदेश दिया है कि जबकि हाई कोर्ट को यह स्पष्ट किया गया था कि कोई घटना हो सकती है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता महेश जेठमलानी ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि जिन इलाकों का जिक्र सरकार कर रही है पहले भी हमने वहां जुलूस निकाला है। महेश जेठमलानी ने कहा कि राज्य यह कहते हुए रूट मार्च पर रोक लगा रहा है कि कोई आकर हमला कर सकता है। उन्होंने जोर देकर कहा कि किसी और के आचरण के कारण मौलिक अधिकारों को इस तरह से नियंत्रित नहीं किया जा सकता है। पहले भी शांतिपूर्वक पथ संचलन हुआ था, इसको लेकर कोई शिकायत नहीं थी। संघ की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मेनका गुरुस्वामी ने तमिलनाडु सरकार द्वारा दायर की गई स्थिति रिपोर्ट पर सवाल उठाया और कहा कि क्या सार्वजनिक व्यवस्था और उचित प्रतिबंधों को इस तरह की स्टेटस रिपोर्ट तक सीमित किया जा सकता है। उन्होंने अदालत को स्टेटस रिपोर्ट के बारे में जानकारी दी, जिसमें कहा गया था कि आरएसएस के जुलूसों को केवल एक संलग्न मैदान में अनुमति दी जा सकती है। उस समय कोर्ट ने कहा था कि एक लोकतंत्र की और एक सत्ता की भाषा होती है। आप कौन-सी भाषा बोलते हैं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप किस जगह पर हैं।
तमिलनाडु सरकार ने पहले दी थी ये दलील
मद्रास उच्च न्यायालय ने 10 फरवरी को तमिलनाडु पुलिस को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को राज्य भर के विभिन्न जिलों में सार्वजनिक सड़कों पर मार्च निकालने की अनुमति देने का निर्देश दिया। तमिलनाडु सरकार ने मद्रास हाईकोर्ट के 22.9.2022 और 2.11.2022 के दो आदेशों को चुनौती दी है। इससे पहले तमिलनाडु सरकार ने भी कहा था कि वह मार्च के लिए प्रस्तावित मार्गों पर आरएसएस से बातचीत करेगी क्योंकि वह इसका पूरी तरह से विरोध नहीं कर रही है। राज्य सरकार ने अदालत को अवगत कराया था कि सरकार ने पीएफआई की घटनाओं का सामना करने वाले संवेदनशील क्षेत्रों और गड़बड़ी वाले सीमावर्ती क्षेत्रों में रूट मार्च करने से इनकार कर दिया था। वकील ने कहा कि सरकार के पास कुछ खुफिया रिपोर्टें थीं।
पीएफआई के आधार का उल्लेख कर रही सरकार
संघ के वकील ने जवाब दिया कि राज्य सरकार ने जिस आधार का उल्लेख किया है वह पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) का है, जिसे केंद्र सरकार ने प्रतिबंधित कर दिया था। वकील ने कहा, “वे आतंकवादी संगठनों को नियंत्रित करने में सक्षम नहीं हैं और इसलिए वे रूट मार्च पर रोक लगाना चाहते हैं।”
आजादी के 75 साल पूरे होने पर तमिलनाडु में संघ राज्यभर में पथ संचलन निकालना चाहता था। मद्रास हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने 4 नवंबर 2022 को रोक लगा दी थी। सिंगल बेंच के आदेश को डिवीजन बेंच में चुनौती दी गई। डिवीजन बेंच ने सिंगल बेंच के आदेश को पलटते हुए पथ संचलन की अनुमति दे दी। डिवीजन बेंच के इसी आदेश को तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।
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