तुलसी के राम रणरंगधीर हैं, वे विजेता हैं, लेकिन विजित राज्य तत्क्षण लौटा देते हैं। वे कुटुम्ब के भी मर्यादा पुरुषोत्तम हैं और समाज के भी… देश के भी और युगों के भी…
गोवामी तुलसीदास रचित श्रीरामचरितमानस यदि मात्र महाकाव्य रहा होता, तो साढ़े चार शताब्दियों में क्षीण जरूर पड़ गया होता। आपने पढ़ा है कि हाल ही में आयोजित विश्व पुस्तक मेले में तुलसी सारे अन्य लेखकों पर भारी पड़े।
वास्तव में तुलसी ने जन-जन के राम, नीति के राम, रामराज्य के राम, इहलोक के राम, परलोक के राम, भरत के राम, शबरी के राम, प्रेरणा के राम, मर्यादा के राम, निषाद के राम, पराक्रम के राम, करुणा के राम का चरित्र चित्रण इस प्रकार किया है कि जैसे-जैसे जनचेतना बन रही है, तुलसी के राम की पुकार बढ़ती जा रही है। जितनी बार देखो, उतनी बार राम नए रूप में नजर आते हैं, और उतनी ही बार श्रीरामचरितमानस नए रूप में नजर आता है।
तुलसी के राम राजा के रूप में नहीं, प्रजा के सेवक के रूप में प्रस्तुत होते हैं। वनवासियों के भी राम, और वन के भी राम। महलों के राजा राम में तुलसी को अधिक रुचि नहीं है। उनके राम तो अमराई में गमछे पर बैठे जन-जन के राम हैं।
श्रीरामचरितमानस हर लांछन, हर आक्षेप को, इतने वर्ष बाद भी सरलता से खारिज कर देता है। श्रीरामचरितमानस युद्ध नीति भी सिखाता है और कूटनीति भी। वह अर्थनीति का भी पर्याय है और धर्म नीति का भी। तुलसी के राम लोकेच्छा से भी बंधे हैं, और लोकमत का परिष्कार भी करते हैं।
सबसे महत्वपूर्ण यह कि तुलसी के राम राजा के रूप में नहीं, प्रजा के सेवक के रूप में प्रस्तुत होते हैं। वनवासियों के भी राम, और वन के भी राम। महलों के राजा राम में तुलसी को अधिक रुचि नहीं है। उनके राम तो अमराई में गमछे पर बैठे जन-जन के राम हैं।
तुलसी के राम रणरंगधीर हैं, वे विजेता हैं, लेकिन विजित राज्य तत्क्षण लौटा देते हैं। वे कुटुम्ब के भी मर्यादा पुरुषोत्तम हैं और समाज के भी… देश के भी और युगों के भी…
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