कांग्रेस नेता राहुल गांधी को सूरत की अदालत ने आपराधिक मानहानि का दोषी ठहराते हुए 2 साल कैद की सजा सुनाई है। हालांकि, कोर्ट ने उन्हें जमानत देते हुए सजा को 30 दिनों के लिए सस्पेंड कर दिया है ताकि वह इसके खिलाफ हाई कोर्ट में अपील कर सकें। राहुल गांधी को ये सजा ‘मोदी’ सरनेम को लेकर की गई उनकी टिप्पणी पर 2019 में दायर आपराधिक मानहानि केस में सुनाई गई है।
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत गई सदस्यता
वहीं अब इस मामले को लेकर राहुल को संसद की सदस्यता से अयोग्य ठहराया गया। लोकसभा सचिवालय की ओर से शुक्रवार को जारी अधिसूचना के मुताबिक संविधान के अनुच्छेद 102 (1) (ई) और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 8 के तहत राहुल गांधी की सदस्यता समाप्त की गई है। राहुल को गुजरात के सूरत की अदालत ने गुरुवार को मोदी सरनेम वाले बयान पर दोषी ठहराते हुए दो साल की सजा सुनाई। अदालत ने साथ ही साथ राहुल को जमानत भी दे दी। अदालत ने इसके अलावा सजा को 30 दिन के लिए सस्पेंड भी कर दिया। इसके बाद लोकसभा सचिवालय ने उनकी सदस्यता रद्द करने का फैसला किया, जो गुरुवार (23 मार्च 2023) से प्रभावी हो गई।
खतरे में राहुल गांधी का सियासी करियर
बता दें जनप्रतिनिधित्व कानून के मुताबिक 2 साल या उससे ज्यादा सजा पर सांसद या विधायक की तत्काल सदस्यता चली जाती है। इसी कानून की वजह से अब राहुल गांधी का सियासी करियर भी खतरे में पड़ गया है। यदि वे जेल जाते हैं तो उनका मामला कुछ ऐसा है कि कई वर्षों तक वह चुनाव भी नहीं लड़ पाएंगे।
अब यह है अंतिम विकल्प
अगर कोर्ट केवल उनकी सजा को निलंबित करती है, तो यह पर्याप्त नहीं होगा। उनकी दोषसिद्धि पर भी रोक लगनी चाहिए। क्योंकि वह (राहुल गांधी) संसद के सदस्य के रूप में तभी रह सकते हैं जब दोषसिद्धि पर रोक हो। यदि हाईकोर्ट द्वारा सजा का फैसला रद्द नहीं किया जाता है, तो राहुल को अगले आठ वर्षों तक चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
नहीं रहेगा मतदान का अधिकार
लोकप्रतिनिधित्व कानून के मुताबिक, 2 साल या उससे ज्यादा सजा पर न सिर्फ सदस्यता जाएगी बल्कि सजा पूरी होने या सजा काटने के बाद 6 साल तक संबंधित व्यक्ति चुनाव भी नहीं लड़ सकेगा। वह सजा काटने के बाद भी 6 साल तक अयोग्य रहेगा। अयोग्य घोषित किया गया व्यक्ति न तो चुनाव लड़ सकता है और न ही उस समयावधि में मतदान कर सकता है।
बता दें कि 2013 के लिली थॉमस मामले में उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में जनप्रतिनिधित्व कानून के प्रावधान 8(4) को खारिज कर दिया था, जो दोषी सांसद/विधायक को इस आधार पर पद पर बने रहने का अधिकार देता था कि अपील तीन महीने के भीतर दाखिल कर दी गई है।
वहीं उच्चतम न्यायालय के तीन न्यायाधीशों की पीठ ने 2018 में कहा था कि अपीलीय अदालत द्वारा अगर सांसद की दोष सिद्धि निलंबित कर दी जाती है, तो अयोग्यता ‘अपुष्ट’ मानी जाएगी। इस पीठ में भारत के वर्तमान प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ भी थे।
यदि न फाड़ा होता अध्यादेश
बता दें कि 2013 में कांग्रेस की अगुआई वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) सरकार ने जनप्रतिनिधित्व कानून के एक प्रावधान को दरकिनार करने के लिए उच्चतम न्यायालय के इस फैसले को पलटने का प्रयास किया था। लेकिन उस दौरान राहुल गांधी ने ही संवाददाता सम्मेलन में इस अध्यादेश का विरोध किया था और विरोध स्वरूप इसकी प्रति फाड़ दी थी।
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