‘उत्तम खेती मध्यम बान’। सभी लोग नौकरी या कारोबार में ही लग जाएंगे तो खेती कौन करेगा
उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी के ईसानगर ब्लॉक के नारी बेहड़ में रहने वाले मुरलीधर वर्मा प्राकृतिक तौर-तरीके से खेती करते हैं। शिक्षा पूरी करने के बाद मुरलीधर ने 2006 में दवा की दुकान खोल ली। इससे उन्हें महीने में 9-10 हजार रुपये की कमाई हो जाती थी। चार-पांच साल तक वह दवा का व्यवसाय से जुड़े रहे। काम अच्छा चल रहा था, लेकिन उनके पिताजी चाहते थे कि मुरलीधर खेती करें। पिताजी बार-बार एक ही कहावत कह कर उन्हें खेती के लिए प्रोत्साहित करते थे- ‘उत्तम खेती मध्यम बान’। उनका कहना था कि सभी लोग नौकरी या कारोबार में ही लग जाएंगे तो खेती कौन करेगा।
44 वर्षीय मुरलीधर बताते हैं, ‘‘पिताजी के बार-बार कहने पर मन में खेती करने की इच्छा जागी। लेकिन खेती में रसायनों के होने वाले अंधाधुंध प्रयोग और व्यक्ति पर पड़ने वाले इसके दुष्प्रभावों को देखते हुए खेती करने का मन नहीं हुआ।’’ 2009-10 में उन्होंने हरिद्वार स्थित देवसंस्कृति विश्वविद्यालय शांतिकुंज से योग में पीजी डिप्लोमा किया और गांव में बच्चों को योग सिखाने लगे। फिर कुछ पैसा जोड़कर 2014 में ‘स्वामी विवेकानंद योग सेंटर’ खोला।
चार-पांच साल तक केंद्र ठीक-ठाक चला भी। इस दौरान उन्होंने स्कूलों में जाकर बच्चों को योग से जोड़ा और प्रधानमंत्री के विश्व योग दिवस कार्यक्रम में भी सहभागिता की। गायत्री मिशन के ‘वृक्षगंगा अभियान’ से जुड़कर जिले में सैकड़ों पर पौधे भी लगाए। इसी बीच, 2017 में उन्हें लखनऊ में ‘लोकभारती’ के तत्वावधान में पद्मश्री सुभाष पालेकर द्वारा गौ आधारित प्राकृतिक खेती पर 6 दिवसीय शिविर की सूचना मिली। उन्होंने शिविर में हिस्सा लिया। इसके बाद उन्होंने एक बीघा जमीन में प्रयोग के तौर पर प्राकृतिक खेती शुरू की।
मुरलीधर करहते हैं, ‘‘प्रारंभ में लोगों ने मेरी बहुत हंसी उड़ाई। लेकिन मैं पूरे मनोयोग से इसमें जुटा रहा। चूंकि रसायनों के प्रभाव के कारण भूमि की उर्वरा शक्ति बहुत कम हो गई थी, इसलिए पहले साल लाभ नहीं हुआ। घर में गाय थी, तो खेती में लागत भी 10-15 हजार रुपये ही आई। लिहाजा, नुकसान अधिक नहीं हुआ। दिसंबर 2017 में प्रति एकड़ 60 हजार रुपये की आय हुई। इसके बाद स्थिति बेहतर होती गई। बीते तीन वर्ष से मैं सुभाष पालेकर की प्राकृतिक कृषि विधि से गन्ना, धनिया, गेहूं, चना, मेथीदाना, लहसुन, मूंग और हल्दी आदि की मिश्रित खेती कर रहा हूं। इससे प्रति एकड़ डेढ़ लाख रुपये की आय हो रही है।’’
मुरलीधर कई संस्थाओं से जुड़े हुए हैं, इसलिए उन्हें फसल बेचने में भी कोई दिक्कत नहीं होती और कीमत भी अच्छी मिल जाती है। अब वह अपने उत्पाद सीधे न बेच कर उसे प्रसंस्कृत करके बेचने की कोशिश में हैं। इसके तहत वे गुड़, धनिया पाउडर इत्यादि के प्रसंस्करण के लिए लघु उद्योग स्थापित कर रहे हैं। इससे उनकी आय भी बढ़ेगी और गांव के लोगों को स्वरोजगार भी मिलेगा। विपणन को लेकर वह कहते हैं कि विषमुक्त खाद्यान्न की देश में बहुत मांग है और इसका लाभ बड़ी कंपनियां उठा रही हैं। यदि किसान मित्र समूह बनाकर मांग के अनुसार योजनाबद्ध उत्पादन करें तो एक बड़ा बाजार सीधे किसान के हाथ में आ सकता है।
टिप्पणियाँ