पाकिस्तान से एक ऐसा समाचार आया है जो अफगानिस्तान तक पहुंची टीटीपी से पिट रही पाकिस्तान हुकूमत के दर्द का खुलासा करता है। पाकिस्तान के मीडिया की ही खबर है कि तालिबान का गुप्तचरी प्रमुख नौ और तालिबान अधिकारियों के साथ इस्लामाबाद गया था। बताया यह गया है कि यह तालिबान दल पाकिस्तान को सता रहे टीटीपी जिहादियों के बारे में बात करने गया था। संभवत: थोड़ा मरहम लगाने गया था।
पाकिस्तान में विशेषज्ञों का एक गुट इस कदम को इस्लामाबाद और काबुल के बीच तल्ख होते जा रहे रिश्तों को पटरी पर ले जाने की गरज से आया था। बताया गया है कि तालिबानी ‘शिष्टमंडल’ पाबंदी लगे जिहादी गुट तहरीके-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के बारे में पाकिस्तान ने जो ‘आशंकाएं’ पाली हुई हैं उन्हें मिटाने आया था। यही वजह रही कि इस दौरे को गुपचुप तरीके से अंजाम दिया गया। तालिबान के गुप्तचरी प्रमुख के अलावा इस दल में वहां के सुरक्षा विभाग के अधिकारी भी थे।
पाकिस्तान के अंग्रेजी अखबार द एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने सूत्रों को उद्धृत करते हुए जो खबर छापी है, वह बताती है कि काबुल स्थित तालिबान हुकूमत ने भी माना है कि उनके यहां से गुप्तचरी प्रमुख अब्दुल्ला गजनवी एक दल के साथ पाकिस्तान में टीटीपी से पाकिस्तान को मिल रहीं धमकियों का ‘ताप कम करने’ वहां गया था। इस्लामाबाद में दल की चर्चा पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ से हुई।
सूत्रों के अनुसार, अफगानी दल काबुल का संदेश लाया था कि ‘पाकिस्तान घबराए नहीं, दिक्कतें दूर की जाएंगी’। इस दौरे से पाकिस्तान ने क्या पाया, इसका कोई खुलासा नहीं किया गया है। अफगानी अधिकारी भी मुंह सिले रहे और पाकिस्तानियों के तो वैसे ही बोल नहीं फूट रहे हैं। हां, इतना जरूर बताया गया कि मुद्दा नाजुक है इसलिए दोनों पक्ष मीडिया से कुछ नहीं बोले हैं।
रिपोर्ट आगे बताती है कि पाकिस्तान ने दल के सामने अपनी तकलीफों का दुखड़ा सुनाया और कहा कि टीटीपी के विरुद्ध सख्त कार्रवाई तलब की। बताते हैं, पाकिस्तान की तरफ से बाकायदा टीटीपी के जिहादियों के गुप्त ठिकानों, उनके विरुद्ध सबूतों का कच्चा चिट्ठा अफगानी तालिबान के सामने रख दिया। इस्लामाबाद आए तालिबान दल ने मामले से जुड़े और अधिकारियों से भी बात की। सुरक्षा की स्थिति का भरपूर जायजा लिया। काबुल के अपने सूत्रों के माध्यम से ट्रिब्यून लिखता है कि अब्दुल्ला गजनवी और दल ने समस्या का बारीकी से अध्ययन किया।
सूत्रों के अनुसार, अफगानी दल काबुल का संदेश लाया था कि ‘पाकिस्तान घबराए नहीं, दिक्कतें दूर की जाएंगी’। इस दौरे से पाकिस्तान ने क्या पाया, इसका कोई खुलासा नहीं किया गया है। अफगानी अधिकारी भी मुंह सिले रहे और पाकिस्तानियों के तो वैसे ही बोल नहीं फूट रहे हैं। हां, इतना जरूर बताया गया कि मुद्दा नाजुक है इसलिए दोनों पक्ष मीडिया से कुछ नहीं बोले हैं। काबुल में सूत्र ही बताते हैं कि दोनों पक्ष कई विषयों पर कुछ आगे तो बढ़े हैं। लेकिन वे विषय असल में हैं क्या, वह नहीं बताया गया।
इसमें संदेह नहीं है कि टीटीपी के जिहादी पाकिस्तान की नाक में दम किए हुए हैं। खासकर पुलिस और फौज के अफसर उनके निशाने पर दिखते हैं। पाकिस्तान इन जिहादियों से मुकाबला करने में अक्षम दिखता है। संभवत: यही वजही है कि उसने अफगान तालिबान से गुहार लगाई है कि अपने ‘पाकिस्तानी दोस्तों’ पर कुछ लगाम कसे। नहीं तो अफगानी दल को इस मुद्दे पर इस्लामाबाद बुलाने की बात ही नहीं आती।
दूसरी तरफ, पिछले लंबे अर्से से अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच सीमा पर जारी तनाव में ढिलाई नहीं देखी गई है। जबकि तालिबान काबुल में बैठा ही पाकिस्तान की कथित मदद से है। तिस पर तहरीके-तालिबान पाकिस्तान पाकिस्तानियों से काबू में नहीं आ पा रहा है। गत वर्ष नवंबर माह में टीटीपी ने 2022 के जून महीने में पाकिस्तान सरकार के साथ हुआ संघर्षविराम का करार अपनी तरफ से रद्द कर ही दिया था। उसके बाद से ही उसके जिहादी पाकिस्तानी सुरक्षाबलों पर हमले करते आ रहे हैं। टीटीपी अल-कायदा का भी करीबी माना जाता है। उसने पाकिस्तान के बड़े नेताओं को निशाना बनाने की धमकी तक दी हुई है।
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