2015-16 से सेब के बगीचे में तुलसी, लेमनग्रास, तेजपत्ता वगैरह औषधीय पौधे लगाने प्रारंभ किए। उनके यहां खाद्य प्रसंस्करण का भी काम होता था। इन औषधीय पौधों से उन्होंने हर्बल टी बनानी शुरू की। इससे भी लगभग एक लाख की वार्षिक आमदनी हो जाती है।
उत्तरकाशी के नौगांव ब्लॉक के हिमरौल गांव निवासी जगमोहन राणा के पिता सेब की खेती करते थे। वे सेब के पेड़ काफी पुराने थे। उनसे उतना गुणवत्तापूर्ण सेब नहीं हो पाता था और बाजार में उसकी अच्छी कीमत नहीं मिलती थी। उस वक्त सेब की एक पेटी अधिकतम 1000 रुपये की बिकती थी। कुल तीन सौ पेटी तक का उत्पादन हो पाता था।
जगमोहन राणा पढ़ाई के समय से ही सेब की खेती में पिता का हाथ बंटाने लगे थे। उन्होंने बीएड तक की शिक्षा हासिल की और फिर 2017 में पूरी तरह खेती में जुट गए। कम आमदनी की वजह से मन व्याकुल रहता था। अचानक तापमान गिरने, ओलावृष्टि के कारण भी नुकसान होता था। उन्होंने इंटरनेट पर सेब के बारे में छानना प्रारंभ किया तो पता चला कि विदेशों में सेब के छोटे-छोटे पेड़ होते हैं और उन पर बड़े-बड़े फल लगते हैं। उस समय मन करता था कि ऐसे पेड़ लगाए जाएं तो लेकिन फिर लगता था कि भारत में यह संभव नहीं है।
जगमोहन ने उच्च घनत्व में छोटे पेड़ लगाए। वे 30-35 नाली में सेब की खेती करते हैं। उनके पास अभी सेब के 800 छोटे पेड़ और बड़े वाले ढाई सौ पेड़ हैं। पहले 400 बड़े वाले पेड़ थे। पहले जहां रॉयल रेड, राइमर जैसी पुरानी किस्में लगी थीं, वहीं उन्होंने किंगरूट, जेरोमाइन, गाला जैसी सेब की किस्में लगाई।
उसी समय लगभग 2017-18 में इंडो-डच कंपनी उत्तरांचल के इलाके में आई जिसने विज्ञापन के जरिए ग्राफ्टिंग के बारे में बताया। जगमोहन ने उस कंपनी से संपर्क किया और उनकी मार्फत 2019 में पहली बार ग्राफ्टिंग की। इसके साथ ही उन्होंने उच्च घनत्व में छोटे पेड़ लगाए। वे 30-35 नाली में सेब की खेती करते हैं। उनके पास अभी सेब के 800 छोटे पेड़ और बड़े वाले ढाई सौ पेड़ हैं। पहले 400 बड़े वाले पेड़ थे। पहले जहां रॉयल रेड, राइमर जैसी पुरानी किस्में लगी थीं, वहीं जगमोहन ने किंगरूट, जेरोमाइन, गाला जैसी सेब की किस्में लगाई।
जगमोहन को इसका लाभ मिला। कुल 450 से 500 पेटी तक उत्पादन होने लगा। सेब की गुणवत्ता अच्छी होने से प्रति पेटी 4000 रुपये तक की कीमत मिलने लगी। उत्पादन भले देखने में बहुत ज्यादा नहीं बढ़ा परंतु गुणवत्ता के कारण कारोबारी मूल्य बहुत बढ़ गया। पहले मेहनत ज्यादा थी, कमाई कम थी। अब अगर प्रति पेटी के तौर पर देखें तो पहले के 10 पेटी की कीमत अब 2-3 पेटी में वसूल हो जाती है। जगमोहन बताते हैं कि पहले जो 50 हजार रुपये की वार्षिक आमदनी होती थी, वह बढ़ कर ढाई लाख रुपये तक हो गई।
जगमोहन ने बताया कि उन्होंने 2015-16 से सेब के बगीचे में तुलसी, लेमनग्रास, तेजपत्ता वगैरह औषधीय पौधे लगाने प्रारंभ किए। उनके यहां खाद्य प्रसंस्करण का भी काम होता था। इन औषधीय पौधों से उन्होंने हर्बल टी बनानी शुरू की। इससे भी लगभग एक लाख की वार्षिक आमदनी हो जाती है।
जगमोहन की मेहनत और नवाचार को काफी सराहना मिली। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय सेव महोत्सव में भी हिस्सा लिया हुआ है। उन्हें किसान श्री सम्मान, किसान भूषण सम्मान, भगीरथ सम्मान, कृषि एवं कृषक कर्मण पुरस्कार जैसे अनेक सम्मानों से नवाजा चुका है।
टिप्पणियाँ