दो दिन के सरकारी दौरे पर भारत आए जापान के प्रधानमंत्री फूमियो किशिदा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बीच बढ़ती कूटनीतिक अंतरंगता की तस्वीरें 20 मार्च की शाम को मीडिया में प्रसारित हुईं। दोनों नेताओं की ‘बॉडी लैंग्वेज’ बता रही थी कि दिन में हैदराबाद हाउस में हुए महत्वपूर्ण करारों के परिप्रेक्ष्य में नजदीकियां बढ़ रही हैं। किशिदा जिस तरह स्वाद लेकर गोलगप्पे खा रहे थे और मोदी जिस तरह शालीनता से मेजबान की भूमिका में ‘एक और एक और’ का आग्रह कर रहे थे, वह दोनों नेताओं के बीच सरकारी स्तर से इतर, मैत्री का एक पुट दर्शाता है।
स्पष्ट सोच के नेता माने जाने वाले किशिदा ने 20 मार्च को एक मुक्त और खुले हिंद-प्रशांत के प्रति अपना नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। इसमें बंगाल की खाड़ी के एक हिस्से के रूप में उत्तर पूर्व भारत तथा बांग्लादेश का साझा विकास होने की बात भी कही गई।
भारत को जापान का एक ‘अपरिहार्य साझीदार’ बताना किशिदा की शायद इस दृष्टि से आया है कि भारत दक्षिण एशिया में ही नहीं, बल्कि विश्व में एक बड़ी ताकत के नाते पहचाना जा रहा है। मोदी के साथ हैदराबाद हाउस में हुए भारत—जापान शिखर सम्मेलन के फौरन बाद किशिदा ने विश्व मामलों की भारतीय परिषद में अपने भाषण में अपनी नई हिंद-प्रशांत रणनीति सामने रखी। उन्होंने जोर देकर कहा कि टोक्यो दक्षिण एशियाई इलाके में भारत के साथ नजदीकी सहयोग करेगा। किशिदा ने स्वीकार किया कि जापान और भारत वर्तमान अंतरराष्ट्रीय सम्बन्धों तथा विश्व के इतिहास में आज बहुत ही महत्वपूर्ण स्थिति में हैं।
किशिदा की नजर खासतौर पर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में उभरती अर्थव्यवस्थाओं और विकासशील देशों पर टिकी है। इनमें दूरस्थ द्वीपीय क्षेत्र भी हैं, जो जलवायु परिवर्तन तथा प्रशांत क्षेत्र में प्राकृतिक आपदाओं की दृष्टि से संवेदनशील माने जाते हैं।
इस रणनीति में विशेष बात यह है कि उन्होंने महत्व के तीन क्षेत्रों, दक्षिण पूर्व एशिया, दक्षिण एशिया तथा प्रशांत द्वीप समूह को शामिल किया जिनमें पेश आने वाली दिक्कतों को दूर करने में बहुपक्षीय जुड़ाव काम आ सकता है। इससे आर्थिक विकास भी तेजी से हो सकता है।
जापान के नागरिक मामलों के कैबिनेट सचिव नोरियुकी शिकाता ने इसी बारे में बताया कि फिलहाल पूर्वोत्तर भारत और बांग्लादेश पर टोक्यो की विशेष नजर है। म्यांमार में राजनीतिक हलचल थमने के बाद वह भी दोबारा परिदृश्य में दिखने लगेगा। शिकाता ने बताया कि भूमि से घिरे भूटान को भी बंगाल की खाड़ी से जुड़ी इस समग्र पहल में सम्मिलित किया जा सकता है।
प्रधानमंत्री किशिदा ने अपने उस भाषण में बताया कि जापान बांग्लादेश के साथ आर्थिक भागीदारी पर समझौते की संभावनाओं पर काम करने के लिए एक संयुक्त अध्ययन दल का गठन कर चुका है। किशिदा की नजर खासतौर पर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में उभरती अर्थव्यवस्थाओं और विकासशील देशों पर टिकी है। इनमें दूरस्थ द्वीपीय क्षेत्र भी हैं, जो जलवायु परिवर्तन तथा प्रशांत क्षेत्र में प्राकृतिक आपदाओं की दृष्टि से संवेदनशील माने जाते हैं। दिलचस्प बात है कि किशिदा की इस सोच को चरितार्थ करने हेतु टोक्यो हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सार्वजनिक तथा निजी राशि में 75 अरब अमेरिकी डॉलर की व्यवस्था करेगा। यह काम 2030 तक किया जाएगा।
जापान के प्रधानमंत्री ने श्रीलंका की गंभीर स्थिति का संदर्भ देते हुए कहा कि ‘गैरपारदर्शी तथा अनुचित विकास वित्त’ को रोकने के लिए नियमों पर चलना जरूरी है। यह राष्ट्रों के लिए स्वायत्त और स्थायी विकास के लिए बहुत जरूरी है।
विशेषज्ञों का कहना है कि किशिदा ने ऐसी महत्वपूर्ण घोषणा करने हेतु भारत को इसलिए चुना होगा क्योंकि यही वह देश है जहां जापान में सबसे लंबे कार्यकाल तक प्रधानमंत्री रहे स्व. शिंजो आबे ने 2007 के अगस्त माह में भारत की संसद में प्रसिद्ध ‘द कंफ्लुएंस ऑफ़ टू सीज़’ शीर्षक वाला भाषण दिया था। इसी भाषण में पहली बार ‘हिंद-प्रशांत’ का दृष्टिकोण सामने आया था।
किशिदा ने वायदा किया कि जापान जी20 की कामयाबी के लिए भारत के साथ मिलकर काम करने में कोई कसर नहीं छोड़ेगा।
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