1965 में जिहादी आतंकवाद से पीड़ित तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान से आए कुछ हिंदू शरणार्थियों को राजमहल में गंगा के किनारे बसाया गया था। अब उनकी जमीन पर उन्हीं बांग्लादेशी घुसपैठियों को बसाने के लिए षड्यंत्र रचा गया, जिनके बाप—दादाओं ने हिंदुओं को पूर्वी पाकिस्तान से भगाया था।
झारखंड में राजमहल प्रखंड के अंतर्गत पड़ने वाली पूर्वी नारायणपुर पंचायत के हिंदू एक बार फिर से उजड़ने की स्थिति में आ गए हैं। बता दें कि इस पंचायत में चार टोले हैं, जहां 1965 में तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान से आए हिंदुओं को बसाया गया था। उस समय ये लोग शरणार्थी के रूप में आए थे। इंदिरा सरकार ने इन लोगों को भारत की नागरिकता दी थी। यही नहीं, 1987 में बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर ने इन शरणार्थियों के लिए 2,500 बीघा जमीन आवंटित किया था। उसी जमीन के कुछ हिस्से पर 700 हिंदू शरणार्थी परिवार घर बनाकर रह रहे हैं और बाकी जमीन पर खेती कर गुजारा कर रहे हैं। इस समय इनकी कुल जनसंख्या लगभग 5,000 है। अब इन हिंदुओं के सामने एक बार फिर से उजड़ने की स्थिति पैदा हो गई है। इसके दो कारण हैं—एक, जिहादी षड्यंत्र और दूसरा, झारखंड सरकार। विशेषज्ञ मान रहे हैं वोट बैंक को खुश करने के लिए राज्य सरकार ने न्यायालय में इस मामले की सही तरीके से पैरवी नहीं की। इस कारण इन शरणार्थियों के सामने फिर से संकट खड़ा हो गया है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार जिस जमीन पर ये लोग बसे हैं, उसका सर्वेक्षण वर्षों से नहीं हुआ है। कहा जा रहा है कि इसी का लाभ उठाते हुए एक गिरोह ने इस जमीन के फर्जी कागजात बनवा लिए। पहले इस गिरोह का नेतृत्व मोहम्मद यूसुफ करता था। अब वह इस दुनिया में नहीं है। उसकी जगह मखदूम हाजी ने ले ली है। पता चला कि फर्जी कागजातों के आधार पर इस जमीन पर मोहम्मद यूसुफ ने 2012-13 में अपना दावा किया था। इसके बाद उसने साहिबगंज के उपायुक्त न्यायालय में एक वाद दाखिल किया। कुछ वर्ष बाद उपायुक्त न्यायालय ने उस जमीन का सीमांकन कराने का निर्देश दिया, लेकिन कई वर्ष यह कार्य हुआ नहीं। इसके बाद यूसुफ 2019-20 में रांची उच्च न्यायालय पहुंचा। उच्च न्यायालय ने भी 2020 में उपायुक्त को सीमांकन कार्य कराने का निर्देश दिया। लेकिन किसी न किसी कारणवश वह टलता गया। मुसलमान पक्ष ने एक बार फिर से उच्च न्यायालय से गुहार लगाई। इसके बाद उच्च न्यायालय ने उपायुक्त से अपने आदेश के अनुपालन की रिपोर्ट मांगी। यही कारण है कि पिछले दिनों राजमहल के अंचलाधिकारी ने इन परिवारों को नोटिस देकर बताया कि जहां ये लोग रह रहे हैं उच्च न्यायालय के आदेश पर उसका सीमांकन कराया जाएगा।
इसके बाद से ही हिंदू शरणार्थियों को उजड़ने का डर सताने लगा है। हालांकि साहिबगंज के उपायुक्त रामनिवास यादव ने कहा है कि अभी किसी का विस्थापन नहीं होगा, न ही किसी को उनकी जमीन से बेदखल किया जाएगा। लेकिन प्रशासन के प्रति हिंदुओं में भरोसा पैदा नहीं हो पा रहा है।
एक पीड़ित राजकुमार मंडल ने बताया कि मुसलमानों ने फर्जी कागजात बनाकर हमारी जमीन पर दावा किया और दुर्भाग्य से उनके दावे को एक तरह से मान लिया गया है। इस कारण प्रशासन के आश्वासन पर भरोसा नहीं है।
एक अन्य ग्रामीण गौतम राय कहते हैं कि हम लोगों के माता—पिता पूर्वी पाकिस्तान में जिहादी अत्याचार से पीड़ित होते थे। इसलिए 1965 में उन लोगों ने भारत में शरण ली। उन्हें भारत की नागरिकता दी गई और इस जगह पर बसाया गया। अब एक बार फिर से हमें उजाड़ने की कोशिश की जा रही है। जमीन से बेदखल कराने के लिए कुछ भूमाफिया लगे हुए हैं, जो खुद बांग्लादेशी घुसपैठिए हैं। ये लोग इस जमीन पर बांग्लादेशी घुसपैठियों को बसाना चाहते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि ये लोग निरंतर हिंदुओं को परेशान कर रहे हैं। कभी फसल में आग लगा देते हैं, तो कभी और किसी तरीके से परेशान करते हैं। पहले मोहम्मद यूसुफ इस जमीन पर कब्जा करना चाहता था। अब उसकी मौत के बाद मखदूम हाजी इस जमीन की मापी करवाकर इस पर कब्जा करना चाहता है।
इस पूरे मामले को राजमहल के विधायक अनंत कुमार ओझा ने विधानसभा में भी उठाया है। उन्होंने सरकार से मांग की है कि इसका शीघ्र समाधान किया जाए। उनका यह भी कहना है कि सरकार ने हिंदू पक्ष की बात को ठीक से न्यायालय में नहीं रखा। इस कारण यह समस्या पैदा हुई है। उन्होंने यह भी कहा कि पूरे इलाके में जनसांख्यिकी बदलाव तेजी से हो रहा है। बार—बार सरकार और प्रशासन को बताने के बाद भी इसे रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा है।
इस मामले में यह भी कहा जा रहा है कि कुछ लोगों ने हिंदुओं को पूरी तरह से धोखे में रखा। उन्होंने मुसलमान पक्ष से मिलकर एक ऐसा षड्यंत्र रचा, जिसकी जानकारी हिंदुओं को समय पर नहीं हुई। इसलिए वे लोग कहीं अपने पक्ष को नहीं रख पाए।
अब सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वह षड्यंत्रकारियों को सजा दिलाए, ताकि हिंदुओं को फिर से एक बार उजड़ना न पड़े।
दस वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। राजनीति, सामाजिक और सम-सामायिक मुद्दों पर पैनी नजर। कर्मभूमि झारखंड।
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