यह बात भी इतिहास में दर्ज है कि इंद्रपत गांव आजादी के पहले तक पुराने किले में ही बसा रहा। उस समय पुराने किले में हुए उत्खनन कार्य की वजह से ही इस गांव को सरकार ने विस्थापित कर बदरपुर बॉर्डर के पास बसाया।
भारत में इतिहास को तीन चरणों में बांटा गया है। प्राचीन इतिहास, मध्यकालीन इतिहास और आधुनिक इतिहास। इन तीनों कालखंड से जुड़ी समृद्ध विरासत के स्थलों की देश में भरमार है। इन ऐतिहासिक स्थलों में दिल्ली का पुराना किला ऐसा एकमात्र पुरातात्विक महत्व का स्थल है, जिसमें भारतीय इतिहास के तीनों कालखंडों की विरासत मौजूद है।
एएसआई के सेवानिवृत्त वरिष्ठ पुरातत्वविद् के.के. मोहम्मद ने उत्तर भारत में खासकर, मध्य प्रदेश और दिल्ली में भूली-बिसरी विरासतों को संवारने के लिए उल्लेखनीय काम किया है। ये वही के.के. मोहम्मद हैं, जो अयोध्या में श्रीराम मंदिर के वजूद को साबित करने के लिए उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित एएसआई की टीम का हिस्सा थे।
अयोध्या में विवादित ढांचे के आसपास की उत्खनन के दौरान मिले प्राचीन अवशेषों के आधार पर मंदिर के अस्तित्व को साबित करने वाली रिपोर्ट, इस टीम ने न्यायालय में प्रस्तुत की थी। वामपंथ की ओर झुकाव वाली तत्कालीन सरकारों के दौर में इस तरह की रपट अदालत में प्रस्तुत करने का पुरस्कार के.के. मोहम्मद को मध्य प्रदेश के बीहड़ इलाके में तबादले के रूप में मिला। उन्होंने मुरैना के डकैत प्रभावित जंगली इलाकों में डकैतों से जूझते हुए बटेसर गांव के आसपास जमींदोज हो चुके महाभारत कालीन मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया। फिर उनका दिल्ली मंडल में तबादला हुआ।
दिल्ली आकर के.के. मोहम्मद ने पुराने किले में बिखरी पड़ी विरासत को संवारना शुरू कर दिया। उस समय वरिष्ठ पत्रकार सुफल कुमार ने दिल्ली के प्राचीन ऐतहिासिक स्थलों पर एक पुस्तक ‘डेल्ही : द सिटी आफ योगिनी’ लिखी थी। इस किताब में उन्होंने दिल्ली में महाभारत काल के विरासत स्थलों में शुमार योगमाया मंदिर से लेकर निगमबोध घाट के पौराणिक महत्व का बेहद रोचक जिक्र किया था।
के.के. मोहम्मद ने एक बार बताया था कि दिल्ली का पुराना किला देश का एकमात्र ऐसा ऐतिहासिक स्थल है, जिसमें महाभारत काल से लेकर स्वतंत्रता प्राप्ति तक का इतिहास सुरक्षित है। तब तक मुझे यह मालूम था कि एएसआई का कोई अधिकारी अपने मुंह से ‘महाभारत’ और ‘रामायण काल’ जैसे शब्दों का जिक्र तक नहीं करता। पता चला कि देश को आजादी मिलने के बाद एएसआई के अधिकारियों से ‘महाभारत काल’ और ‘रामायण काल’ जैसे शब्दों का प्रयोग, लिखित या मौखिक तौर पर न करने की आजादी, आपसी सहमति से ले ली गई थी।
एक खबर में के.के. मोहम्मद ने आधिकारिक तौर पर यह कहा कि पुराने किले का इतिहास महाभारत काल से भी जुड़ा है, इसका विधिवत अध्ययन कराने की जरूरत है। के.के. मोहम्मद का दावा है कि दिल्ली में यमुना के तट पर बना पुराना किला ही वह स्थान है, जहां से पांडव अपना राजकाज चलाते थे। कालांतर में मध्यकाल और फिर मुगल काल में हुमायूं के शासन तक इसी पुराने किले से दिल्ली की सत्ता का संचालन होता रहा। पुराने किले में मौजूद इमारत ‘अष्टमंडल’ की सीढ़ियों से गिरकर हुमायूं की मौत हो गई थी।
यह बात भी इतिहास में दर्ज है कि इंद्रपत गांव आजादी के पहले तक पुराने किले में ही बसा रहा। उस समय पुराने किले में हुए उत्खनन कार्य की वजह से ही इस गांव को सरकार ने विस्थापित कर बदरपुर बॉर्डर के पास बसाया। के.के. मोहम्मद द्वारा पुराने किले को महाभारत काल से जोड़ने से हड़कंप मच गया था। इसके कुछ साल बाद दिल्ली मंडल में डॉ. वसंत स्वर्णकार का तबादला हुआ और उन्होंने पुराने किले में उत्खनन का काम प्रारंभ करा दिया। अब एक बार पुन: दिल्ली में इतिहास स्वयं को दोहरा रहा है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
टिप्पणियाँ